विनय एक्सप्रेस समाचार, नागौर। जयमल जैन पौषधशाला में गुरुवार को पर्वाधिराज पर्युषण की आराधना के दौरान साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा ने प्रवचन में कहा कि विनय धर्म का मूल है। जिस प्रकार जड़ के बिना वृक्ष नहीं टिक सकता है, उसी प्रकार विनय के बिना धर्म नहीं टिक सकता। जहां विनय है, वहां सारे सद्गुण है, वहां आत्मा का उत्थान है। जहां अहं है, वहां निश्चित ही पतन है। विनय के साथ विवेक भी जुड़ जाने से व्यक्ति पाप से बच जाता है। केवल गुरु की आज्ञा ही नहीं, घर के बुजुर्गों की आज्ञा का पालन करना भी उतना ही जरूरी है। आज्ञा का पालन करना ही सबसे बड़ा धर्म है। इस गुण से घर में शांति बनी रहती है। समर्पणता होगी तो ही बड़ों की आज्ञा का पालन हो पाएगा। आज्ञा की अवहेलना करने से आशातना होती है, जो कर्म बंध का कारण बन जाती है। किसी की आराधना कर सके या नहीं, पर किसी की आशातना तो कदापि नहीं करनी चाहिए। सेनापति के आदेश पर जिस तरह सेना मर मिटने के लिए तैयार रहती है। उसी प्रकार विनीत शिष्य को भी गुरु की आज्ञा मानने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए। गुरु कभी अनुचित आज्ञा नहीं देते हैं। गुरु के निर्देशन में ही शिष्य को ज्ञानार्जन, तपस्या आदि करनी चाहिए। गुरु के आदेश, उपदेश, निर्देश को समझ कर उसके अनुरूप आचरण करना ही विनीत शिष्य का लक्षण होता है। जहां विनय होगा, वहां सेवा का गुण भी प्रकट हो जाएगा। अपने से बड़े गुणीजनों की सेवा करना तप है। विनय एवं वैयावृत्य रुपी तपों से कर्मों की निर्जरा होती है। विनीत के लक्षणों को प्रस्तुत करते हुए साध्वी ने कहा कि सामने वाले के इशारों को समझ कर कार्य कर लेना चाहिए। क्योंकि हर बात कहने की नहीं होती है। समझदार को तो इशारा ही काफी है। अनेक बार व्यक्ति इशारा तो दूर, स्पष्ट कहे जाने पर भी जानबूझकर उसके विपरीत आचरण करता है, जो अविनीत है। विनय धर्म ही भारतीय संस्कृति की अमूल्य देन एवं धरोहर है, जिसका संरक्षण होना जरूरी है। संचालन संजय पींचा ने किया। प्रवचन और चौपाई की प्रभावना तथा प्रश्नोत्तरी विजेताओं को पुरस्कृत करने के लाभार्थी निर्मलचंद, लोकेश, निकेश चौरड़िया परिवार रहें। प्रवचन प्रश्नों के उत्तर विनीता पींचा, रसीला सुराणा, शारदा ललवानी, जयेश पींचा, परम ललवानी एवं धनराज सुराणा ने दिए। संघ मंत्री हरकचंद ललवानी ने बताया कि शनिवार को संवत्सरी महापर्व मनाया जाएगा। पांचीदेवी ललवानी ने 7 उपवास एवं निशिता बोहरा और तोषिना ललवानी ने 6 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण किए। आगंतुकों के भोजन का लाभ ललित, विदित सुराणा परिवार ने लिया। इस मौके पर कन्हैयालाल ललवानी, नरेश चौरड़िया, महेश गुरासा, नौरतन सुराणा सहित सैंकड़ो श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित थे।