‘ओळूं री अंवेर’ में कवि सम्मलेन का यादगार आयोजन

माँ कहती मन खिड़कियां कभी न करना बंद: लय भंग हो जाएंगे सब रिश्तों के छंद.!

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर : रिपोर्ट-भैराराम तर्ड। लूणकरणसर के निकटवर्ती ग्राम कालू में ‘ओळूं री अंवेर’ में आयोजित कवि सम्मलेन में वीर, श्रृंगार व हास्य रस की त्रिवेणी बही। घण्टों तक श्रोता हिंदी व मायड़ भाषा राजस्थानी के काव्य सागर में गोते लगाते रहे। कवि सम्मलेन में कवियों ने श्रोताओं को रचनाओं से बांधे रखा। कार्यक्रम की अध्यक्षता रामजीलाल घोड़ेला ने की। वहीं जितेंद्र निर्मोही बतौर मुख्य अतिथि मौजूद रहे। कवि सम्मलेन में चर्चित कवि डॉ. हरिमोहन सारस्वत ने ‘हरियल खेजड़ल्यां री छांव, लारै छूट्या म्हारा गांव’ गीत सुनाकर श्रोताओं को विस्थापन की पीड़ा से जोड़ दिया। राजूराम बिजारणियां ने ‘माँ कहती मन खिड़कियां कभी न करना बंद, लय भंग हो जाएंगे, सब रिश्तों के छंद!’ और ‘आते जिनके नेह में दौड़े-दौड़े पांव जेठ दुपहरी धूप में माँ तरुवर की छांव। तथा ‘मिलो ना कभी फिर उसी मोड़ पर.!’ सुनाना शुरू किया तो सबकी आँखें नम हो गई।

मदन गोपाल लढ़ा ने ‘चालीस के चौखटे में प्रेम’ रचना से प्रेम को नए देर रंगों में ढाल दिया। कमल पीपलवा ने गद्य रचना सुनाई।कान्हा शर्मा की कविता ‘बादळीयै चक्की पूंछ अर लगाई एड, फगत ढळतै री दीसी पीठ, पन्न काका’ळी पड़ाल में!’ ने नए बिम्ब गढ़े। गीतकार छैलू चारण छैल को उनके गीत ‘जयवंता रै जायोड़ै री ओळ घणेरी आवै।’ पर खूब दाद मिली। पूनम गोदारा’पुन्नू बीकानेर’ ने ‘उमड़ी देख कळायणा,किरसै थामी रास’ शीर्षक दोहे सुनाए। जितेंद्र निर्मोही ने ‘यह जिंदगी जो पूछती सवाल, दीजिए जवाब दीजिए।’ ग़ज़ल पेश की। वहीं रामजीलाल घोड़ेला ने मतदान जागरूकता के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम के अंत मे आमंत्रित कवियों का साफा,श्रीफल एवं प्रतीक चिन्ह से सम्मान कर उत्साह बढ़ाया।