विनय एक्सप्रेस समाचार, नई दिल्ली। आज साल 2022-23 का बजट पेश होने वाला है. कोरोना काल में पैदा हुई मुश्किलों के अलावा सरकार के किए वादे भी इस बार वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने चुनौतियां बनकर खड़े हैं. चुनावी मौसम भी उनकी परीक्षा लेने वाला है. बजट से पहले वित्त मंत्री ने जो आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया उससे बजट की रूपरेखा का अंदाजा मिल रहा है. एक रिपोर्ट देखते हैं कि वित्त मंत्री के सामने बजट से पहले कैसे हालात हैं.
महंगाई, बेरोजगारी और आम आदमी कमाई लगातार घट रही है. ऐसे में जनता की नजर वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन के हाथों पेश होने वाले बजट पर लगी हैं. जन्म से लेकर मृत्यु तक टैक्स के जाल में फंसे आम आदमी की ख्वाहिश बस इतनी है कि टैक्स पर राहत मिल जाए जो पिछले कई वर्षों से बजट में नहीं मिली है.
महंगाई बढ़ी, सालाना आय घटी
महंगाई का हाल ये है कि देश में 9 महीने से थोक महंगाई दर दस फीसदी के ऊपर है. आम आदमी की घटी हुई कमाई का हाल जब ये है कि सबसे गरीब 20% भारतीय परिवारों की सालाना आय भी पांच साल में 52 फीसदी तक घट गई है. बेरोजगारी का दर्द ये है कि पिछले चार महीने में देश में बेरोजगारों की तादाद 3 करोड़ 18 लाख पता चली है. तब क्या जो लाख दुखों की एक दवा है. क्यों ना टैक्स घटाए वाली तर्ज पर सरकार बजट में राहत देगी ?
8 साल से टैक्स पर नहीं मिली राहत
पांच साल में सरकार बदल जाती है. लेकिन यहां तो आठ साल से सरकार ने टैक्स में कोई बड़ी राहत देश की जनता को नहीं दी है. 2014 में आखिरी बार टैक्स में छूट वाली बड़ी घोषणा हुई थी. उसके बाद से कोई कटौती नहीं की गई. हां 2018 में अरुण जेटली के वित्त मंत्री रहते स्टैंडर्ड डिडक्शन में सरकार ने राहत दी तो थी तो जनता को मेडिकल बिल और ट्रांसपोर्ट अलाउंस से मिलने वाले 30 हजार के फायदे को खत्म कर दिया था. यानी बात घूम फिर के वहां की वहीं आ गई.
कितना टैक्स भरता है आम आदमी
आम आदमी जो कमाता है उस कमाई पर सीधे 5 फीसदी से 30 फीसदी तक इनकम टैक्स भरता है. फिर अपनी कमाई से ही 4% का हेल्थ और एजुकेशन सेस भी भरता है. पेट्रोल डीजल खरीदा तो 60% पैसा टैक्स में जनता का चला जाता है.
– गाड़ी खरीदी तो खरीदने पर टैक्स
– गाड़ी के इंश्योरेंस पर GST के तौर पर टैक्स
– गाड़ी सर्विस कराई तो भी टैक्स
– गाड़ी सड़क पर लेकर चले तो रोड टैक्स और टोल टैक्स
– घर खरीदने की सोची तो स्टैम्प ड्यूटी पर जीएसटी
– घर के लिए कर्ज लिया तो प्रोसेसिंग चार्ज फिर उस पर जीएसटी
– घर खरीद लिया तो हाउस टैक्स, वॉटर टैक्स, बिजली-मीटर तक पर अलग अलग टैक्स
राशन से कैब और हवाई जहाज की यात्रा तक पर टैक्स
– अपनी गाडी छोड़ बस, मेट्रो, रेल, हवाई जहाज से चले तो टिकट पर भी टैक्स कटाता है .
– फ्लाइट के टिकट में तो कई बार बेस फेयर से ज्यादा फ्यूल सरचार्ज, सर्विस फीस, सर्विस टैक्स का चार्ज होता है.
– कैब में चले तो भी जीएसटी भरती है जनता.
– घर का राशन खरीदा तो एक एक सामान पर GST जुड़ी रहती है, यानी आप टैक्स भरते हैं. दाल चावल से लेकर 5 रुपए के बिस्किट का पैकेट भी बिना टैक्स के नहीं मिलता.
पैसे बचाए, उस पर भी टैक्स
– पैसा बचाकर कहीं सेविंग में लगाने चले या निवेश किया तो भी टैक्स देना पड़ता है. निवेश का पैसा निकालने लगे तो भी टैक्स भरिए. निवेश की कमाई पर शॉर्ट टर्म-लॉन्ग टर्म कैपिटेल गेन टैक्स भी भरिए.
– एटीएम से तय सीमा के बाद पैसा निकालने तक पर आम आदमी सर्विस चार्ज भरते हैं.
जनता पर महंगाई के साथ टैक्स की मार
कुल मिलाकर कहानी ये है कि आम आदमी को जन्म से लेकर मृत्यु तक टैक्स भरने का कर्म करना पड़ता है. इतने तरह के टैक्स भरने के बाद आम आदमी की सीटी बज जाती है. गृहिणियों को समझ नहीं आता कि पेट काटकर घर चलाएं या टैक्स भरकर देश चलाएं ?
महंगाई ने तोड़े सारे रिकॉर्ड
बजट से पहले पेश आर्थिक सर्वेक्षण में महंगाई को लेकर चिंता जताई है.
दिसंबर महीने में थोक महंगाई दर ने 12 साल का रिकॉर्ड तोड़ रखा है.
साल भर में रसोई गैस सिलेंडर भी 250 रुपए तक महंगा हुआ.
बीते साल पेट्रोल डीजल का दाम 25 रुपए प्रति लीटर तक बढ़ा.
खाद्य तेलों के दाम में भी 50 फीसदी तक का छौंक लगा है.
74% जनता चाहती है रिवाइज हो टैक्स स्लैब
एक बड़े ऑनलाइन सर्वे में 74% जनता की बहुमत से राय है कि आयकर में छूट बजट में दी जाए. टैक्स के स्लैब को रिवाइज किया जाए. 11 प्रतिशत जनता चाहती है कि पेट्रोल डीजल के दामों में सरकार टैक्स और घटाए. 11 प्रतिशत जनता ये भी चाहती है कि जीएसटी काउंसिल से बात करके जरूरी आइटम पर टैक्स की दरों में कम किया जाए. हमें पता है कि इलेक्शन हैं उसके बाद दाम हाई होने वाले हैं, मिडिल क्लास चाहता है कि एक्सपेंस नॉर्मल ही जाएं, हम भी टैक्स भरते हैं, टैक्स जस्टीफाइ होनी चाहिए, अमीर टैक्स चुराते हैं, सरकार पेट्रोल के दाम बढ़ा देते हैं, इससे मिडिलक्वास को दिक्कत होती है.
यानी हुआ ये है कि महंगाई बढ़ी है. कोरोना काल में या तो सैलरी घटी है आम आदमी की या फिर सेलरी बढी नहीं. खर्च बढ़ गया तो पैसा है कहां आम आदमी के पास. ऐसे में टैक्स घटौती ही क्या इकलौता मुख्य विकल्प है, जिससे जनता को राहत देना जरूरी है ?