संस्कारित परिवार से बनेगा समर्थ राष्ट्र : डॉ. बिस्सा
हरिशंकर आचार्य और शरद केवलिया ने की शोधपरक समीक्षा, रामजी व्यास रहे अध्यक्ष
विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। सिर्फ साथ में निवास करना ही परिवार नहीं है. रहने के साथ ही सहन करना आवश्यक है. सहन करने का अर्थ है परिजनों की विरोधी बातों और विचारों को भी सहन करने की ताकत. ये विचार इंजीनियरिंग कॉलेज के एसोसिएट प्रोफ़ेसर और मैनेजमेंट ट्रेनर डॉ. गौरव बिस्सा ने अजित फाउंडेशन द्वरा आयोजित “ज्ञानोत्कर्ष – पुस्तक समीक्षा कार्यक्रम” में व्यक्त किये.
डॉ. गौरव बिस्सा द्वारा लिखित दो पुस्तकों – “फैमिली मैनेजमेंट सूत्र” और “हौसला हो बुलंद” की समीक्षा के कार्यक्रम में पुस्तकों के लेखक डॉ बिस्सा ने कहा कि अनुशासन, प्रेम, कम्युनिकेशन, सकारात्मक सोच, व्यक्तित्व विकास और सेल्फ मैनेजमेंट का पहला विश्वविद्यालय परिवार ही है.
उन्होंने कहा कि संस्कारित परिवार ही समर्थ और शक्तिशाली राष्ट्र को जन्म देता है. डॉ बिस्सा ने कहा कि प्रयास न करना और पराजय स्वीकार कर लेना हमारी सबसे बड़ी गलती है. समस्या को पहचान कर ज़बरदस्त एफर्ट्स करने वाले को ईश्वर अकेला नहीं छोड़ता. बिस्सा ने कहा कि “श्रम न करने की प्रवृत्ति” और “सब आसानी से मिल जाये” का भाव हमें सफलता पाने से रोकता है. उन्होंने कहा कि पुस्तक हौसला हो बुलंद, व्यक्तित्व के विविध आयामों के विकास के साथ ही व्यक्ति को सदा चौकस, ऊर्जावान, समर्पित, उत्साही और राष्ट्रभक्त बनने की प्रेरणा देती है.
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि सूचना और जनसंपर्क विभाग के सहायक निदेशक और विख्यात राजस्थानी साहित्यकार हरिशंकर आचार्य ने फैमिली मैनेजमेंट सूत्र पुस्तक की विवेचना करते हुए कहा कि परिवार के बिना एक व्यक्ति के सर्वांगीण विकास की परिकल्पना करना ही बेमानी है. उन्होंने कहा कि यदि परिवार संस्कार प्रदान नहीं करेगा तो अंततोगत्वा समाज पतन की ओर बढ़ेगा. आचार्य ने पुस्तक में लिखे दाम्पत्य जीवन और सोशल मीडिया के प्रभाव, संयुक्त परिवारों में कम होते बुज़ुर्ग सम्मान और लालन पालन के सूत्रों को भी शोध के साथ समझाया. सुखी दाम्पत्य के सूत्रों के विशेष लेखन पर आचार्य ने डॉ बिस्सा का साधुवाद जताते हुए कहा कि बिस्सा की लेखनी खरी, और सीधी है जो सामान्य व्यक्ति तक पहुँचती है और यही शैली उन्हें दूसरे लेखकों से अलग और ख़ास बनाती है.
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि राजस्थानी भाषा साहित्य और संस्कृति अकादमी के सचिव और प्रख्यात कथाकार शरद केवलिया ने पुस्तक हौसला हो बुलंद की समीक्षा प्रस्तुत करते हुए डॉ बिस्सा की पुस्तक समझाती है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने अंतस की शक्ति का जागरण कर अपने पुरुषार्थ के साथ जुट जाए तो कोई लक्ष्य असंभव नहीं हो सकता. केवलिया ने कहा कि यह पुस्तक शरीर को श्रेष्ठ बनाने, बुद्धिमत्ता से निर्णय लेने, अपनी क्षमताओं में विस्तार करने और नवीन प्रयोगों से व्यावसायिक समस्या सुलझाने पर बल देती हैं.
कार्यक्रम के अध्यक्ष बेसिक पीजी कॉलेज समूह के चेयरमैन रामजी व्यास ने दोनों पुस्तकों को युवाओं हेतु आदर्श ग्रन्थ बताते हुए कहा कि इन पुस्तकों की मूल विशेषता है – सरल भाषा, प्रत्येक लेख में कथा और सीधे दिल पर आघात करने की शक्ति. व्यास ने कहा कि इन पुस्तकों के अध्ययन के उपरान्त युवाओं में रिजल्ट ओरिएंटेड एप्रोच का विकास होगा. व्यास ने हौसला हो बुलंद को आदर्श पुस्तक बताते हुए कहा कि पैकेज, पैसे और प्रसिद्धि से ज़्यादा मायने रखते हैं व्यक्ति के नैतिक मूल्य और राष्ट्रभक्ति के गुण. उन्होंने कहा कि डॉ. बिस्सा की पुस्तक राष्ट्रीयता से सराबोर है और पुस्तकों को राष्ट्रनायकों को समर्पित किया जाना प्रेरणा देता है.
कार्यक्रम के समन्वयक तथा अजित फाउंडेशन के प्रभारी संजय श्रीमाली ने अजित फाउंडेशन के उद्देश्यों और नीति के बारे में बताया. श्रीमाली ने कहा कि अजित फाउंडेशन का यह नियमित प्रयास है कि पुस्तकों की श्रेष्ठ समीक्षा और मूल्यांकन हो ताकि लेखक अपने लेखन में और सुधार ला सके और समाज हेतु श्रेष्ठ सृजन कर सके. श्रीमाली ने अतिथियों का स्मृति चिन्ह देकर स्वागत किया.
ये रहे साक्षी: – एस एन हर्ष, सन्नू हर्ष, डॉ. अजय जोशी, आरजे रोहित, राजाराम स्वर्णकार, इंजीनियरिंग शिक्षाविद डॉ. युनुस शेख, फाइनेंस गुरु डॉ. नवीन शर्मा, कम्प्यूटर विशेषज्ञ डॉ. अमित सांघी, राजेश व्यास, डॉ. सुभाष घारू, श्याम निर्मोही, गिरिराज खैरीवाल, मुकेश व्यास, आदि समारोह में उपस्थित रहे.