डॉ श्रीलाल मोहता की स्मृति में कला -सृजनमाला के तहत रेत समाधि: नई राह व्याख्यान का आयोजन

रेत-समाधि उपन्यास समस्त निराशाओं में जीवन को नई उम्मीद देता है: अनिता गोयल

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर।  ‘‘रेत-समाधि उपन्यास नारी के प्रति सामाजिक बंदिशों को, हदों को सरहदों को पीछे छोड़कर अपने जीवन को नई उम्मीद देता हैै। यह समस्त नहीं और निराशाओं में से नई राहों को तलाशता है।’’ ये उद्बोधन मुख्यवक्ता युवाअध्येता एवं वरिष्ठ प्रवक्ता श्रीमती अनिता गोयल ने अंतराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार प्राप्त कृति रेत-समाधि: नई राह विषय पर अपने व्याख्यान में अभिव्यक्त किए।

अवसर था – बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति एवं परम्परा, बीकानेर के सह-आयोजन में कीर्तिशेष डॉ.श्रीलाल मोहता की पावनस्मृति में कला-सृजनमाला की द्वितीय कड़ी में स्थानीय प्रौढ़ शिक्षा भवन सभागार में आयोजित अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार 2022 प्राप्त गीतांजलि श्री की कृति रेत समाधि पर केन्द्रित रेत समाधि: नई राह विषयक व्याख्यान का।

मुख्यवक्ता अनिता गोयल ने बुकर पुरस्कार प्राप्त कृति रेत-समाधि उपन्यास के तीन खंडों पीठ, धूप और हद-सरहर और उपन्यास के मूल पात्रों चंदा, रोजी, अनवार, बेटी आदि के माध्यम से बताया कि यह उपन्यास मूलतः मानवीय संवेदनाओं का अख्यान है। उपन्यास का शिल्प, कथानक और संदेश निश्चित ही नवीन और विशिष्ट है। यह मौन के भीतर की मुखरता है। लेखिका ने लोक बोलियों एवं लोक शब्दों को पुनः स्थापित किया है। उपन्यास की मूलपात्र अम्मा जिस प्रकार से दादी, पत्नी और चंदा के रूप में ढलती जाती है वह बहुत-ही मार्मिक और मर्मस्पर्शी है। वक्ता ने उपन्यास के माध्यम सेे साहित्य को साहित्य के रूप में स्वीकार करने का आग्रह किया है। रेत-समाधि को साहित्य का सर्वश्रेष्ठ बुकर पुरस्कार प्राप्त होना देश के लिए गर्व और गौरव की बात है।

अध्यक्षीय उद्बोधन के तहत वरिष्ठ साहित्यकार मधु आचार्य ने कहा कि रेत-समाधि उपन्यास स्त्री मन की संवेदना, पीड़ा, संत्रास को अपनी संवेदना बनाना और उसके पश्चात् उसे सामाजिक संवेदना के रूप में अनूभूत कराने का विशिष्ट रचनाकर्म है। यह उपन्यास पाठक  और सामाजिक संवेदना के मध्य अभिव्यक्ति का सेतू बनाती है। इस विशिष्ट ग्रंथ पर इतनी सार्थक चर्चा होना डॉ.श्रीलाल मोहता के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है।

आयोजन के सान्निध्य उद्बोधन में बीकानेर प्रौढ़ शिक्षण समिति के अध्यक्ष डॉ.ओम कुवेरा ने कहा इस प्रकार के सार्थक आयोजन कला-सृजनमाला के माध्यम से डॉ.मोहता के कार्यों को आगे बढ़ाने का सद्प्रयास है।

प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ.ब्रजरतन जोशी ने कहा कि हमें रचनात्मक होने के साथ सहृदयी होना ही चाहिए। सहृदयता ही हमारे लिए संवेदना को समझने का मार्गप्रशस्त करती है।

आगंतुकों का स्वागत करते हुए एडवोकेट गिरिराज मोहता ने कला-सृजनमाला की अवधारणा से अवगत कराया। एडवोकेट मोहता ने कहा कि इस सृजनमाला के तहत कीर्तिशेष डॉ.मोहता के बहुविध कार्यों को निरंतरता देने का प्रयास किया जाएगा।

 

जन शिक्षण संस्थान के अध्यक्ष एवं परम्परा के कोषाध्यक्ष श्री अविनाश भार्गव ने आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कला-सृजनमाला के आगामी आयोजनों की सफलता की शुभकामनाएं दी।

इस अवसर पर संस्था परिवार से उषा मोहता, सुशीला ओझा, विभा बंसल, ओम सोनी, अजय पुरोहित, मुकेश व्यास, जीतेन्द्रश्रीमाली, असित गोस्वामी, राजेश सुथार, ओम प्रकाश सुथार, महेश उपाध्याय, उमाशंकर आचार्य, तलत रियाज, लक्ष्मीनारायण चूरा, श्रीमोहन आचार्य, विष्णुदत्त मारू आदि की सक्रिय सहभागिता रही।