राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता के बिना हमारी आजादी अधूरी – डॉ.अर्जुनदेव चारण

स्वतंत्रता के बाद का राजस्थानी साहित्य पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ उद्घाटन

 

विनय एक्सप्रेस समाचार, सुजानगढ़/सालासर । साहित्य अकादेमी नई दिल्ली और मरूदेश संस्थान सुजानगढ़ द्वारा सावरथिया सेवा सदन में आजादी के बाद का राजस्थानी साहित्य पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि मूर्धन्य रचनाकार डॉ. अर्जुन देव चारण ने कहा कि राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता के बिना हमारी आजादी अधूरी हैं। उन्होंने कहा कि जिसके पास अपनी भाषा होगी वो ही राज करेगा। डाॅ. चारण ने राजस्थानी भाषा को विश्व की समृद्ध भाषाओं में से एक बताते हुए कहा कि आजादी के पश्चात राजस्थानी भाषा में अपार साहित्य भंडार मिलता है जो इसके विकास का प्रतीक है। डॉ.चारण बोले कि भाषा की अवधारणा के तहत देखा जाए तो इतिहास इस बात का गवाह है कि अंग्रेजों की सत्ता ने भारत की देशज भाषाओं को खत्म करके अपनी भाषा अंग्रेजी इस देश पर थोपी है। यह सनातन सत्य है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मातृभाषा में बात करने एवं शिक्षा लेने का अधिकार है मगर देश की आजादी के पच्चहतर वर्ष बाद भी राजस्थान प्रदेश के दस करोड़ मायड़ भाषा प्रेमियों की मातृभाषा को संवैधानिक मान्यता नहीं मिली है।राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता बिना हमारी आजादी अधूरी है। डॉ. अर्जुनदेव चारण ने ग्रीक व स्पेनिश भाषा के माध्यम से औपनिवेशिक आधिपत्य के इतिहास का उल्लेख करते हुए स्वभाषा के जनमानस की आवश्यकता को रेखांकित कर भाषा की अवधारणा को उजागर किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता रायसिंहनगर के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मंगत बादल ने की। अध्यक्षीय उद्बोधन में डाॅ. बादल ने कहा कि शब्दों की साधना अद्भुत होती है। शब्द की ताकत होती है जिसे हर कोई समझ नहीं सकता। विषय प्रवर्तन करते हुए साहित्य अकादेमी के संयोजक मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि स्वातंत्र्योत्तर राजस्थानी साहित्य में प्रत्येक कालखंड में साहित्य की विभिन्न विधाओं में परिवर्तन होना स्वाभाविक है इसकी दृष्टि को ध्यान में रखते हुए विगत पच्चहतर वर्षों में देश की आजादी के पश्चात राजस्थानी साहित्य में हुए परिवर्तन रेखांकित करने के लिए इस संगोष्ठी का आयोजन किया गया है।

आयोजन के विशिष्ट अतिथि लक्ष्मीनारायण पुजारी ने प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा राजस्थानी भाषा नहीं शामिल होने पर चिंता व्यक्त की। इससे पूर्व संगोष्ठी के प्रारम्भ में स्वागत वक्तव्य देते अकादेमी के सचिव डॉ. के .श्रीनिवास राव ने कहा कि साहित्य संस्कृति का संरक्षक है ।इस अवसर पर उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वह लोक साहित्य की अनमोल धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए अपनी सकारात्मक भूमिका निभाए। उद्घाटन सत्र में मरूदेश संस्थान के अध्यक्ष डॉ घनश्याम नाथ कच्छावा ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम संचालन हरीश बी शर्मा ने किया। दीप प्रज्जवलित कर शुरू हुए आयोजन में आगन्तुको का साफा , प्रतीक चिन्ह व माल्यार्पण से स्वागत संस्थान के सचिव कमल नयन तोषनीवाल, संरक्षक भंवर सिंह सामौर , प्रोफेसर हीरालाल गोदारा, अकादेमी के सहायक संपादक ज्योतिकृष्ण वर्मा, लेखाकार अमित कुमार, मानसिंह सामौर, कुबेर पारीक , पूनाराम बिस्नोई , रामचंद्र आर्य , किरण बादल ,डॉ.शर्मिला सोनी ,जीवन कुमावत, पूनमचंद सारस्वत आदि ने किया।

यह रहे उपस्थित –

दो दिवसीय इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में डाॅ गजेसिंह राजपुरोहित जोधपुर, सीमा राठौड़ जयपुर,सीमा भाटी बीकानेर, विजय जोशी कोटा, कुंदन माली उदयपुर, डॉ राजेश कुमार व्यास जयपुर, डॉ रामरतन लटियाल मेडता, डॉ गीता सामौर चूरू, डॉ मदन सैनी श्रीडूंगरगढ़, संतोष चौधरी जोधपुर आदि उपस्थित रहे।

समारोह में इस वर्ष अकादमी अनुवाद पुरस्कार विजेता बीकानेर के साहित्यकार संजय पुरोहित का मरूदेश संस्थान ने अभिनंदन किया।इस दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के चार सत्रों में राजस्थानी साहित्य के काव्य,गीत, छंद, उपन्यास,कहानी,नाटक , आलोचना, निबंध , अनुवाद, पत्रकारिता बाल,कथेतर व युवा साहित्य पर पत्रवाचन होंगे।