विनय एक्सप्रेस समाचार, जयपुर। राज्य सभा सांसद श्री नीरज डाँगी ने संसद में विशेष उल्लेख के माध्यम से आईआईएम द्वारा अनियमित शुल्क वृद्धि के विषय पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा कि आईआईएम की अवधारणा देश के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहर लाल नेहरू ने 1960 में योजना आयोग की सिफारिश पर देश में औद्योगीकरण को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक प्रबंधकीय और निर्णय लेने के कौशल के साथ मानव पूँजी का उत्पादन करने के उद्देश्य से शुरू की गई थी।
सांसद ने अवगत कराया कि आईआईएम अधिनियम, 2017 फीस नियमों और छात्रों के प्रवेश के लिए आईआईएम को स्वायत्तता प्रदान करता है। आईआईएम में दो साल के पूर्णकालिक पाठ्यक्रम के लिए शैक्षणिक वर्ष 2020-2022 के लिए शुल्क वृद्धि, पुराने आईआईएम में औसत शुल्क 20.7 लाख रुपये और नए आईआईएम में 13.7 लाख रुपये हैं। दूसरी ओर, भारत सरकार की एक मई, 2020 की अधिसूचना के अनुसार एआईसीटीई द्वारा यूजीसी और एएलसीटीई के तहत प्रबंधन संस्थान शुल्कवृद्धि के लिए प्रतिबंधित हैं।
श्री डांगी ने कहा कि सरकारी हस्तक्षेप की अनुपस्थिति के कारण जवाबदेही की कमी उत्तर से कहीं अधिक प्रश्न खडे करती है। आईआईएम द्वारा अनियमित शुल्कवृद्धि एक गंभीर चिंता का विषय है।
उन्होंने कहा कि शिक्षा का एक बहुत ही मौलिक उद्देश्य संभावित और मौजूदा कार्य बल को पहुंच और सामथ्र्य प्रदान करना है। परन्तु वर्तमान परिदृश्य में हम इस उद्देश्य से समझौता करते नजर आ रहे है। आईआईएम में शुल्कवृद्धि विशेष रूप से मध्यम वर्ग के योग्य उम्मीदवारों के लिए एक बाधा है, जो योग्य होने के बावजूद प्रबंधकीय कौशल हासिल करने से वंचित रह जाते है।
सांसद श्री डाँगी के अनुसार आईआईएम की फीस बढ़ने से कर्ज लेने की प्रव्रति काफी बढ़ गई है। प्रमुख प्रबंधन संस्थानों में शुल्कवृद्धि के कारण अधिकांश मध्यम वर्ग के पात्र उम्मीदवारों के पास अपने सपनों को पूरा करने के लिए ऎजुकेषन लोन ही एकमात्र विकल्प रह जाता है।
श्री डांगी ने इस बात पर जोर दिया कि राष्ट्रीय हित में नीति निर्माताओं के लिए आईआईएम के शुल्क ढांचे में संशोधन का गंभीर रूप से निरीक्षण करने का समय आ गया है। अगर अभी ऎसा नहीं किया गया तो व्यावसायिक पाठ्यक्रमों के शुल्क में अत्यधिक वृद्धि, प्रबंधकीय कौशल और प्रतिष्ठित पेशेवर पद प्राप्त करने के उम्मीदवारों के सपनों को विफल कर देगी।