डॉ टैस्सीटोरी महान् कर्मयोगी एवं भारतीय आत्मा थे-रंगा

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। राजस्थानी पुरोधा डॉ. लुईजि पिऔ टैस्सीटोरी असल में भारतीय आत्मा थे, वे बचपन से ही भारतीय संस्कृति और सभ्यता के संदर्भ में बातें करते थे। यही कारण रहा कि उनका जन्म इटली के उदिने शहर में हुआ। परन्तु उनकी कर्म-स्थली बीकाणा शहर रही वे महान् कर्मयोगी थे। यह उद्गार आज प्रातः टैस्सीटोरी की समाधि स्थल पर आयोजित उनकी 135वीं जयंती पर पुष्पांजलि एवं विचारांजलि कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी के वरिष्ठ कवि कथाकार एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने व्यक्त किए।


कमल रंगा ने आगे कहा कि डॉ टैस्सीटोरी कुशल संपादक महत्वपूर्ण भाषाविद् एवं उच्च स्तर के पुरातत्वविद् तो थे ही साथ ही वे राजस्थानी भाषा मान्यता के प्रबल समर्थक रहे है। ऐसी स्थिति में राजस्थानी भाषा को प्रदेश सरकार दूसरी राजभाषा बनाकर एवं केन्द्र सरकार संवैधानिक मान्यता प्रदान कर डॉ टैस्सीटोरी को सच्ची श्रृद्धांजलि दे। क्योंकि यह करोड़ों लोगों की अस्मिता-जनभावना एवं पहचान का सवाल है।


आयोजन के मुख्य अतिथि कर्नल हेम सिंह शेखावत ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी के द्वारा दी गई राजस्थानी सेवाओं को कभी भुलाया नहीं जा सकता। यह भी सुखद है कि आयोजक संस्था गत 42 वर्षो से टैस्सीटोरी के व्यक्तित्व और कृतित्व को जन-जन तक पहुंचाने का सकारात्मक प्रयास कर रही है। इसके लिए वह साधुवाद की पात्र है।
कार्यक्रम की विशिष्टि अतिथि वरिष्ठ कवयित्री मधुरिमा सिंह ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी स्थल समाधि को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करते हुए इस महत्वपूर्ण स्थान का सौंदर्यकरण शीघ्र होना चाहिए।


कार्यक्रम के संयोजक युवा शायर कासिम बीकानेरी ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी बहुभाषाविद् थे, उन्होने अनेक ग्रंथों का सम्पादन किया। राजस्थानी मान्यता के लिए अलख जगाई।
युवा कवि गिरिराज पारीक ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी ने तुलसीदास एवं बालमिकी रामायण पर तुलनात्मक अध्ययन किया। साथ ही उन्होंने भारतीय दर्शन पर अनेक पत्रवाचन किए।
इतिहासविद् डॉ फारूक चौहान ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी ने 1914 से 1919 के छोटे काल खंड में वह कार्य किया जिसे भुलाया नहीं जा सकता। डॉ टैस्सीटोरी की राजस्थानी के हर क्षेत्र में कि गई सेवाएं उल्लेखजोग है।
वरिष्ठ कवयित्री डॉ वर्मा ने डॉ टैस्सीटोरी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर केन्द्रित अपनी काव्य रचना के माध्यम से टैस्सीटोरी की सेवाओं का बखान किया।
वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी घनश्याम सिंह ने समाधि स्थल की दुर्दशा पर दुख व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे महान् पुरोधाओं के प्रति प्रशासन और सरकार को संवेदनशील होना चाहिए।
इस अवसर पर उर्दू अकादमी के सदस्य शायर असद अली असद ने कहा कि डॉ टैस्सीटोरी बहुआयामी व्यक्तित्व तो थे ही साथ ही राजस्थानी के प्रबल सर्मथक थे। हमें सामूहिक प्रयास कर राजस्थानी को मान्यता दिलानी चाहिए।
पुष्पांजलि और विचारांजलि कार्यक्रम में कवि जुगल पुरोहित, राजेश छंगाणी, प्रदीप सिंह चौहान, गंगाबिशन विश्नोई, कार्तिक मोदी, हरिनारायण आचार्य, भवानी सिंह, आशिष रंगा, हेमलता, संजय सांखला आदि ने भी समाधि स्थल पर उपस्थित होकर अपनी पुष्पांजलि अर्पित करते हुए डॉ टैस्सीटोरी को प्रबल राजस्थानी समर्थक बताया।
कार्यक्रम में राजस्थानी को दूसरी राजभाषा बनाने एवं संवैधानिक मान्यता के साथ-साथ टैस्सीटोरी स्थल को विकसित करने बाबत एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया।
कार्यक्रम का संचालन युवा शायर कासिम बीकानेरी ने किया एवं सभी का आभार प्रज्ञालय संस्थान के राजेश रंगा ने ज्ञापित किया।