केन्द्रीय बजट किसानों के लिए कुछ नहीं-भाटी : बुनियादी सवालों के जवाब बजट में नहीं

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। ऊर्जा मंत्री भंवर सिंह भाटी ने कहा है कि बजट में किसानों के लिए कुछ नहीं, एमएसपी की बात नहीं है। उन्होंने कहा कि बजट में मनरेगा, गरीब, ग्रामीण श्रम, रोजगार और महंगाई का कोई जिक्र नहीं है। उन्होंने कहा कि कुछ बुनियादी सवालों के जवाब बजट में नहीं दिए गए। उन्होंने कहा कि हर साल 2 करोड़ लोगों को रोजगार देने की कोई योजना नहीं देखी।


मंहगाई के दौर में टैक्स में छूट की सीमा 2.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख कर दी यानि सिर्फ 50 हजार का ही लाभ दिया। उन्होंने सवाल किया कि क्या किसानों की एमएसएमई दोगुना करने का कोई ऐलान बजट में हुआ ?
केंद्रीय बजट को ‘जनविरोधी’ करार देते कहा कि इसमें गरीबों का ध्यान नहीं रखा गया। उन्होंने दावा किया कि आयकर स्लैब में बदलाव से किसी की मदद नहीं होगी। उन्होंने कहा, ‘‘यह केंद्रीय बजट भविष्यवादी नहीं है। पूरी तरह से अवसरवादी, जनविरोधी और गरीब विरोधी है। यह केवल एक वर्ग के लोगों को लाभान्वित करेगा। यह बजट देश की बेरोजगारी के मुद्दे को हल करने में मदद नहीं करेगा। इसे 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है।


उन्होंने बजट को महंगाई बढ़ाने वाला करार दिया है। इस बजट में महंगाई से कोई राहत नहीं। उल्टे इस बजट से महंगाई बढ़ेगी। बेरोज़गारी दूर करने की कोई ठोस योजना नहीं।
शिक्षा बजट घटाकर 2.64% से 2.5% करना दुर्भाग्यपूर्ण। स्वास्थ्य बजट घटाकर 2.2% से 1.98% करना गंभीर है।
भाटी ने कहा कि पिछले साल के बजट में कृषि, स्वास्थ्य, शिक्षा, मनरेगा और अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए आवंटन के लिए सराहना की गई थी। आज हकीकत सामने है। वास्तविक व्यय बजट की तुलना में काफी कम है। यह हेडलाइन मैनेजमेंट की मोदी की ओपीयूडी रणनीति है।

वादा ज्यादा, काम कम।
ऊर्जा मंत्री ने कहा यह बजट देश की वास्तविक भावना को संबोधित नहीं कर रहा है जो कि महंगाई और बेरोजगारी है। इसमें केवल फैंसी घोषणाएं थीं जो पहले भी की गई थीं लेकिन कार्यान्वयन के बारे में क्या? पीएम किसान योजना से सिर्फ बीमा कंपनियों को फायदा हुआ किसानों को नहीं। किसानों के लिए, रेलवे के लिए धर्म की राजनीति से ध्यान भटका कर संविधान खत्म कर रही है। नाम बदलने के अलावा इन्होंने कुछ किया? इससे किसे रोजी-रोटी मिली? मध्यम वर्ग महंगाई से परेशान है। टैक्स में छूट आंखों में धूल झोंकने के बराबर है। आधी से ज्यादा आबादी गांव में बसती है लेकिन उनके लिए कुछ नहीं किया है। ये बहुत ही निराशाजनक बजट है।