रामपुरिया जैन विधि महाविद्यालय में संविधान आपके द्वार गोष्ठी का हुआ आयोजन

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। भारतीय संविधान एक औपनिवेशिक दस्तावेज न होकर एक मौलिक एवं जीवन्त दस्तावेज है जो कि भारत में लोकतन्त्र की स्थापना का मुख्य आधार है। यह कथन डॉ. दिनेश गहलोत, सहायक आचार्य जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर ने आज जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधपुर के लोक प्रशासन विभाग एवं अम्बेडकर अध्ययन केन्द्र तथा महाविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना की दोनों इकाईयों के तत्वावधान में महाविद्यालय में आयोजित संविधान आपके द्वार विषयक गोष्ठी में कहे। गोष्ठी में मुख्य वक्ता के रूप में जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान के सहायक आचार्य डॉ. दिनेश गहलोत थे।


गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए डॉ. गहलोत ने कहा कि संविधान के निर्माण के समय संविधान निर्माताओं ने आजादी के समय की परिस्थितियों के साथ ही भविष्यकालीन परिस्थितियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर इसका निर्माण किया। डॉ. गहलोत ने अपने उद्बोधन में संविधान निर्माण प्रक्रिया के दौरान हुए 12 अधिवेशनों के बारे में भी चर्चा की। डॉ. गहलोत ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अधिवेशनों के दौरान दिए गए उद्बोधनों के बारे में बताते हुए कहा कि संविधान निर्माण के समय से ही कुछ प्रश्न तथा संशय संविधान निर्माताओं के दिमाग में भी थे और यही संशय तथा प्रश्न आज भी कई व्यक्तियों के मन में है कि भारत का संविधान कॉपी-पेस्ट की करामात है या एक औपनिवेशिक दस्तावेज है या वास्तव में एक मौलिक एवं जीवन्त दस्तावेज है।
डॉ. गहलोत ने विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से स्वयंसेवकों तथा विद्यार्थियों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि भारतीय संविधान लोकतंत्र की स्थापना, सामाजिक न्याय की संकल्पना तथा राष्ट्र की सुरक्षा सुनियोजित करने के उद्देश्य से बनाया गया एक जीवन्त एवं मौलिक दस्तावेज है। जिसमें विभिन्न राष्ट्रों के संविधान से अनेक प्रावधान लिए गए जिन्हें भारतीय संस्कृति एवं प्रथाओं परम्पराओं के अनुरूप भारत की भविष्यकालीन परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बनाया गया है।
डॉ. गहलोत ने सभी स्वयंसेवकों को यह बताने का प्रयास किया कि जिस समय संविधान का निर्माण किया गया उस समय की परिस्थितियों के बारे में भी भारत के सभी नागरिकों तथा विधि विद्यार्थियों को अवगत रहना चाहिए। जिससे संविधान के प्रावधानों को सही तरीके से समझने में सहायता मिल सकेगी तथा संविधान की व्याख्या को संवैधानिक नैतिकता के परिप्रेक्ष्य में किया जा सके।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. अनन्त जोशी ने स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि संविधान को हमें सिर्फ एक दस्तावेज या पुस्तक के रूप में न लेकर एक धार्मिक ग्रन्थ की भांति की सम्मान करना चाहिए तथा संविधान पर उसी भांति ही आस्था करनी चाहिए। डॉ. जोशी ने कहा कि विधि विद्यार्थी होने के नाते हम सभी का यह प्रथम कर्तव्य है कि हमें संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप जीवन आचरण करते हुए सामान्य नागरिकों को भी संविधान के प्रति आस्था और विश्वास हेतु प्रेरित भी करना चाहिए।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए मोटिवेश्सनल गुरू तथा बीकानेर के विख्यात अंग्रेजी शिक्षक श्री किशोर सिंह राजपुरोहित ने स्वयंसेवकों को बताया कि आज हमारे समाज को सामाजिक नैतिकता की आवश्यकता है क्योंकि प्राचीन भारत में अधिकार सभी व्यक्तियों को दायित्व के रूप में प्राप्त थे। प्रत्येक व्यक्ति यदि अपने दायित्वों को सही और भारतीय संस्कृति और विरासत के अनुरूप पालना करता है तो सभी व्यक्तियों के अधिकार स्वतः ही सुरक्षित हो जाएंगे।

कार्यक्रम में अम्बेडकर अध्ययन केन्द्र के श्री सुरेन्द्र सिंह राजपुरोहित ने इस कार्यक्रम के सफल आयोजन हेतु महाविद्यालय परिवार तथा सभी विद्यार्थियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम के अन्त में महाविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. शराफत अली तथा डॉ. प्रीति कोचर ने आगन्तुकों का शॉल तथा श्रीफल देकर सम्मान किया तथा महाविद्यालय परिवार की तरफ से संविधान की प्रस्तावना का मोमेंटो भी सम्मान स्वरूप प्रदान किया गया।
कार्यक्रम में महाविद्यालय के व्याख्याता डॉ.बालमुकुन्द व्यास, डॉ. पीयूष किराडू, श्रीमती सुनीता लूणिया, सेवानिवृत्त श्रम कल्याण अधिकारी श्री भवानी सिंह तथा महाविद्यालय के विद्यार्थी तथा रासेयो स्वयंसेवक उपस्थित थे।
कार्यक्रम के अन्त में महाविद्यालय के वरिष्ठ व्याख्याता श्री सुरेश कुमार भाटिया ने सभी आगन्तुको तथा अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम का संचालन महाविद्यालय के व्याख्याता डॉ. रीतेश व्यास ने किया।