विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। करोड़ों लोगों की जन भावना उनकी अस्मिता और सांस्कृतिक पहचान उनकी मातृभाषा राजस्थानी को शीघ्र उसका वाजिब हक मिले जिसके तहत राजस्थानी संविधान की आठवीं अनुसूचि में जुड़कर संवैधानिक मान्यता प्राप्त कर सके और साथ ही प्रदेश की दूसरी राजभाषा बनकर राजकाज की भाषा बन सके। इसी महत्वपूर्ण मांग के समर्थन में संस्था द्वारा वर्ष-1980 से निरंतर समर्पित भाव से अहिंसात्मक आंदोलन चलाया जा रहा है। जिसके तहत सभी तरह के अहिंसात्मक आंदोलन संबंधी उपक्रम समय-समय पर किए जाते रहे हैं।
इसी संदर्भ में प्रदेश में गत दिनों हुए विधानसभा चुनाव में नवनिर्वाचित विधायकों से संस्था के प्रदेशाध्यक्ष एवं राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक कमल रंगा ने एक पत्र लिखकर जरिये ईमेल अनुरोध किया है कि वे अपनी मातृभाषा के मान-सम्मान करते हुए बतौर विधायक अपनी शपथ राजस्थानी मातृभाषा में लेवें।
रंगा ने नवनिर्वाचित जिन विधायकों के ईमेल एड्रेस थे उन्हें जरिये ईमेल किया है। साथ ही अन्य निर्वाचित विधायकों से भी अनुरोध किया है कि वे भी मातृभाषा राजस्थानी में शपथ लेकर राजस्थानी मान्यता आन्दोलन को संबल प्रदान करें। रंगा ने यह भी बताया कि पूर्व में भी इस तरह की पहल हुई है जिसमें खासतौर से बीकानेर के पूर्व विधायक देवीसिंह भाटी, डॉ. गोपाल जोशी, डॉ. बी.डी. कल्ला सहित प्रदेश के कई विधायकों ने राजस्थानी में शपथ लेने की पहल की थी जिससे निश्चय ही राजस्थानी मान्यता को बल मिला।
रंगा ने यह भी बताया कि जब छत्तीसगढ़ राज्य की भाषा छत्तीसगढ़ी को संवैधानिक मान्यता नहीं है फिर भी वहां के विधायक अपनी मातृभाषा छत्तीसगढ़ी में शपथ लेते हैं। ऐसी स्थिति में यदि राजस्थानी को संवैधानिक मान्यता नहीं है परन्तु विधायकों को शपथ तो उनकी मातृभाषा में लेने की पहल करनी चाहिए।