कोविड-19 व्यवस्थाओं का लिया जायजा, प्रेस वार्ता कर दी जानकारी कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने की है आवश्यकता सभी मिलकर प्रयास करेंगे तो हालात सुधरेंगे, यही हमारा लक्ष्य है
विनय एक्सप्रेस समाचार,नागौर। “कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में राज्य सरकार की गाइडलाइन के अनुसार बताया गया प्रोनिंग सिस्टम भी सबसे कारगर रहा है। इस प्रक्रिया को साधारण ढंग से समझकर काम लेने की आवश्यकता थी, जो राज्य में लगभग सफल रहा। नागौर में कोविड-19 के संदर्भ में प्रबंधन बहुत अच्छा रहा व सहयोग भी अच्छा मिला। जन भागीदारी के बिना आईएलआई सर्वे संभव नहीं हो पाता“ यह विचार राजस्व व जिला प्रभारी मंत्री हरीश चौधरी ने शुक्रवार को नागौर जिले के एक दिवसीय दौरे के दौरान पत्रकारों से वार्ता करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कोरोना की संभावित तीसरी लहर को देखते हुए सीएचसी व पीएचसी को इसके मुकाबले के लिए मजबूत किया जा रहा है। साथ ही अस्पतालों में बच्चों के वार्ड भी सुव्यवस्थित किए जा रहे हैं, जिससे कोरोना की संभावित तीसरी लहर से मुकाबला करने में विकेंद्रीकरण व्यवस्था भी ठीक रह सके। संपूर्ण राजस्थान में घर-घर आईएलआई सर्वे के माध्यम से 65 लाख परिवारों तक संपर्क किया गया। जिसमें 5 प्रकार की दवाओं के मेडिसिन किट का सेवन करना लाभकारी रहा है। इन दवाइयों का सेवन करने वाले 95 प्रतिशत से अधिक लोग गंभीर बीमार नहीं हुए। उन्होंने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर में बच्चों के संक्रमित होने की आशंका है। इस प्रकार विशेष रूप से कुपोषित बच्चों के स्वास्थ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कुपोषित बच्चों को सूचीबद्ध कर उन्हें कुपोषण से बाहर निकालें, नागौर में यह कार्य अग्रिम रूप से किया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि कोरोनाकाल में यह ध्यान में आया कि नागरिकों द्वारा जहां पहले निजी अस्पतालों को प्राथमिकता दी जाती थी। वहीं इस बार सरकारी अस्पतालों की ओर बड़ी संख्या में रुझान किया गया। मंत्री चैधरी ने कहा कि अब देश में एक नये प्रकार का संकट ब्लैक फंगस के रूप में सामने आया है जो कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड दिए जाने के कारण से देखने को मिला है। स्टेरॉयड कई देशों में बैन है, भारत में भी इसके उपयोग की माॅनिटंिरंग करना जरुरी है।
प्रभारी मंत्री ने कहा कि जिला कलक्टर के माध्यम से राष्ट्रपति महोदय को ज्ञापन दिया गया है जिसमें 18 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के नागरिकों के टीकाकरण में जो फैसला लिया गया कि यह टीकाकरण राज्य सरकार के माध्यम से होगा। आजादी के बाद पहली बार केंद्र सरकार द्वारा ऐसा कदम उठाया गया है। पहले केंद्र स्वयं अपने स्तर पर ही यह काम करता रहा है। जिसका बजट भी दिया जाता था, लेकिन इस बार यह कदम क्यों उठाना पड़ा यह विचारणीय व चिंता का विषय है। कोविड-19 महामारी आपदा में केंद्र द्वारा ऑक्सीजन प्रबंधन स्वयं के हाथ में लिया गया। इसी प्रकार रेडमेसिविर व अन्य जरूरी इंजेक्शन आवंटन करने का अधिकार केंद्र को था। लेकिन टीकाकरण की इस पॉलिसी में राज्यों को अंतरराष्ट्रीय ग्लोबल टेंडर करने पड़े। इस प्रतिस्पर्धा के कारण वैक्सीन नहीं मिल पाई। इसके साथ ही वैक्सीन की तीन दरें केंद्र, राज्य व निजी अस्पतालों के लिए अलग-अलग तय की गई। यह हर किसी के समझ से परे है और इसका आधार भी सही नहीं है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति महोदय को लिखा गया है कि इस महामारी से लड़ने में आखिरी हथियार वैक्सीन है, इसलिए हमारी मांग है कि इसका निष्पक्ष व प्रमाणिक वितरण राज्यों को किया जाए। उन्होंने कहा कि कोरोना कब तक चलेगा, इसका समय तय नहीं है, लेकिन केंद्र द्वारा जो वैक्सीन की पॉलिसी बनाई गई है, वह सही नही है। भारत में सबसे ज्यादा वैक्सीन बनती है, भारत दवाओं की कैपिटल है, इसके बावजूद भी गलत नीति के कारण चिंताजनक स्थिति बनी हुई है। वैक्सीन उत्पादन की तैयारी पहले से करनी चाहिए थी। दवाओं के विकेंद्रीकरण की व्यवस्था पूर्व में हो जाती, तो कोरोनो के विरुद्ध संघर्ष में सहायता मिलती। ग्लोबल टेंडर होने के कारण दवा कंपनियों की ही शर्तें माननी पड़ रही है। उन्होंने कहा कि सभी मिलकर प्रयास करेंगे तो हालात सुधरेंगे, यही हमारा लक्ष्य है।