आँवला व कुष्मांडा नवमी आज : जाने आज के दिन का महत्व पण्डित नितेश व्यास के साथ

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। कार्तिक शुक्ला नवमी को कुष्मांडा नवमी ओर आंवला नवमी आती है । पण्डित नितेश व्यास बताते है कि आज  के दिन भगवान विष्णु ने कुष्मांडक दैत्य को मारा था कहते है उसके रोम से कुष्मांडा(काशीफल) की बेल उत्पन्न हुई । तबसे इस दिन कुष्मांडा का पूजन के के दान किया जाता है।

आंवला या अक्षय नवमी

कार्तिक शुक्ला को अक्षय नवमी या आंवला नवमी आती है। इस दिन आंवले के व्रक्ष की पूजा करने का ओर कुष्मांडा दान का विशेष महात्म्य है।
यह नवमी युगादि तिथि है उस दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था। इस दिन किया हुवा जप पूजा पाठ दिया दान का पुण्य अक्षय होता है। इस दिन गो, पृथ्वी, सोना, वस्त्र, आभूषण, था 9 फल आदि दान से ब्रह्महत्या जैसा महापाप भी दूर होता है।

महात्म्य

कार्तिक मासम् अब तीर्थ ऋषिदेवत ओर यज्ञ जब सूर्य तुला राशि मे रहब तब आँवले के व्रक्ष में वास करते हैं जो मनुष्य कार्तिक मास में आंवले के पत्ते और फलों से देवता का पूजन करते है उनको सुवर्ण मणी ओर मोती के समूह द्वारा पूजन का फल मिलता है । आंवले की छाया में जो पिंडदान करता है उसके नरक में पड़े हुए पितर भी तृप्त हो जाते है । माथे में मुख में, देह में, जो आंवलो को धारण करता है वह स्वम् हरि है। जो कार्तिक मास में आंवले की छाया में भोजन करता है उसके एक वर्ष के अन्न संसर्ग से उत्पन्न दोष नष्ट हो जाते है । कार्तिक मास में आंवले के स्पर्श करने से ओर खाने से शरीर पवित्र हो जाता है।


आंवले का महात्म्य पद्मपुराण में बहुत विस्तार से बताया गया ह आंवला का फर्क सब लोक में प्रसिद्ध ओर उत्तम है यह व्रक्ष लगाकर स्त्री पुरूष जन्म और म्रत्यु के बंधनों से मुक्त हो जाता है। यह पवित्र फल भगवान विष्णु को प्रशन्न करने वाला है । इसके भक्षण से मनुष्य के सब पापो का छुटकारा होता है। आंवला खाने से आयुष्य बढ़ता है। उस का जल ग्रहण करने से धर्म संचय होता है । उसके स्नान करनेसे दरिद्री दूर होति है । सभी प्रकार के ऐश्वर्य मिलता है। जिस घर मे आंवला होता होता है उस घर मे दैत्य ओर राक्षस नही रहते। एकादशी जो अगर एक आंवला भी मिला तो भी उसका महत्व गंगा, गया, काशी, पुष्कर, आदि तीर्थो से ज्यादा है । जो आंवले के मुरब्बे का प्रसाद देता है उस पर भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते है।

विधि

इस दिन प्रातः स्नान आदि कर्म से निवर्त होकर शुद्धात्मा से आंवले के वृक्ष की पूजा करना चाइये। 8 या 108 परिक्रमा करनी चाहिए, दुग्ध ओर जल धारा देनी चाइये। व्रक्ष की नीचे बैठकर कथा कहानी सुननि चाइये। इस दिन आंवला खाना चाइये, इसके जल से स्नान करना चाइये इसका दान करना चाइये। वैज्ञानिक दृष्टि कोण से भी इसका बहुत महत्व है आंवले में अम्लीय गुण से खुन का शुद्धिकरण होता है।। आंवले की आहुति कनकधारा स्त्रोत से देने से आदि गुरु शंकराचार्य ने स्वर्ण प्राप्त किया था।

पण्डित नितेश व्यास( ऐस्ट्रो भा)
भागवत, नानी बाय मायरा वाचक
अधिष्ठता महागणपति साधना पीठ बीकानेर
अध्यक्ष ज्योतिष ग्लोबल पुंज बीकानेर
महासचिव विश्व सनातन वाहिनी