विनय एक्सप्रेस आलेख -नविन जैन। हमारे देश में दीपावली सबसे बड़ा उत्सव है. यह एक दिन हम सबको मौका देता है कि देश-दुनिया के किसी भी कोने में हो, अपने घर-परिवार के साथ इकट्ठा होकर खुशियाँ साझा करे. बडो से आशीर्वाद ले, छोटो को प्यार दें. यह त्यौहार सच में बहुत सारी खुशियां और अपनापन लेकर आता है I बहुत से भाग्यशाली लोग बहुत पहले से ही इस मौके पर होने वाले कार्यक्रम का लेखा-जोखा करने बैठ जाते हैं और कुछ लोग आखिर तक कुछ भी तय ही नहीं कर पाते हैं I कुछ के पास समय होता है तो साधन नहीं तो कईयों को रोटी की फिक्र त्यौहार पे भी जकडे रखती हैं I
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कितने ही मजदूर पूरा साल कैलेंडर पर कांटा लगा-लगा कर इस त्यौहार के महीने का इंतजार करते हैं कि वह अपने सेठ जी से उनकी अब तक की जोड़ी गई पसीने की कमाई लेकर बाजार में जाएं और अपने घर वालों के लिए अपनी हैसियत के हिसाब से खुशियां खरीद ले। बहन के लिए नया सूट सलवार, बच्चे के लिए खिलौना कार, बाबूजी के लिए कुर्ते-पाजामे का कपड़ा, छोटे भाई के लिए छोटी ही सही पर समय बताने वाली घड़ी। लिस्ट लंबी होती जाती है और उसकी अंटी खाली होती जाती है परंतु दिल के अरमान ऐसे है कि आज अपने घर वालो के लिए पूरा बाजार खरीद लें, पर जेब इसकी इजाजत नहीं देती. इसी समय पर वह फिर से मन में ठान लेता है कि वह इस साल और ज्यादा मेहनत करेगा, इतनी ज्यादा मेहनत करेगा कि बहन के लिए वही वाला सूट लेगा जो दुकान वाले ने बेमन से दिखाया था परंतु उसकी बिचारी औकात उसे दिला नहीं पाई I बाबूजी के लिए बाटा की चप्पल इस साल नहीं तो अगले साल तो ले ही लूंगा क्योंकि अभी तो पिछले वाली पूरी नहीं घिस पाई है I उसे यह भी ध्यान आ रहा था कि पिताजी बहुत सारे मौकों पर तो नंगे पांव ही चले जाते हैं कि मैं कौन सा ऐसा सेठ-साहूकार हूं जो हर समय चप्पल में घूमूँ I
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दिल कहता है कि अपने घर वालों के छोटे-छोटे सपनों को आज कोई ले तो खुद को गिरवी कर पूरा कर डालो परंतु उसका दिमाग फिर से उसे रिमाइंडर दे डालता है- सारा पैसा बाजार में खर्च कर दूंगा तो फिर गांव की बस लेने और आगे के खर्च के लिए रोकड़ा नहीं बचेगा और फिर यह सब भी यही रह जाएगा। और फिर उसे याद आती है अपनी उस घरवाली की जो उसका सारा दिन इंतजार करती है परंतु किसी फिल्मी हीरोइन की तरह स्पष्ट शब्दों में उसको बयान नहीं कर सकती है I असली जैसी नजर आने वाली चमकीली सी क्रीम, पाउडर, लाली उसके दोस्त ने उसे उसी दिन दिला दी थी, जब उसका दोस्त भी अपनी होने वाली पत्नी के लिए यह सब सामान खरीद रहा था I दिल यह कह रहा था कि यार यह सामान काफी तो नहीं लग रहा है पर उसका बजट परमिशन नहीं दे रहा है कि और पैसा खर्च किया जाए I जिन लोगों के साथ शहर में छोटा सा कमरा शेयर कर रहा है उनसे भी पैसा मांगने की हिम्मत नहीं है क्योंकि वह जानता है कि उन सब की भी लिमिट कितनी है I उसे यह भी एहसास था की दिवाली केवल उसके घर के लिए ही नई डिमांड लेकर नहीं आती है बल्कि उन सब के दिलों में भी उसी प्रकार के अरमान है और शायद उसकी तरह उन्हें भी अपने कुछ या बहुत सारे अरमानों को कहीं ना कहीं दबाना ही पड़ता है I
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अपने बच्चे के लिए जब वह फुटपाथ बाजार से कार खरीद रहा था तो उसके दिमाग में बार-बार यही तस्वीर आ रही थी कि जब गांव में जाकर गली में खेलते हुए अपने बच्चे को वह बुला कर लाएगा और अपने बैग में से इस पीले रंग की कार को उसके हाथ में पकडायेगा तो बच्चे के चेहरे पर किस तरह की खुशी आएगी और उस खुशी के उस दुर्लभ क्षण को सोचते-सोचते उसके चेहरे पर जो मुस्कान आती है उसका उसके जीवन में बहुत महत्व है क्योंकि ऐसी मुस्कान उसके चेहरे पर बहुत कम आती है I वह आगे और भी बातें सोचने लगता है कि जब उसका बेटा उस कार को लेकर गली में दूसरे बच्चों को उसे दिखाएगा तो उसे भी अपने पिता पर थोड़ा गर्व होगा और कितने ही बच्चों को वह उसे हाथ भी नहीं लगाने देगा। अपनी जान से ज्यादा संभाल कर वे उस कार को रखेगा और साथ सोते हुए भी उसे अपने से अलग नहीं होने देगा I आज हमारे घर में बच्चों को हमने क्या कुछ मयस्सर नही करा दिया है पर उनके चेहरों
पर भाव बदलने की इंतजार ही करते रह जाते हो I
बेटे के लिए, बीवी के कुछ, सब घरवालो के लिए ही दिल में सपने तो और भी बहुत बड़े हैं और उसके दिल में यह भी आता है कि काश मैं इतना बड़ा इंसान होता कि किसी दिन अपने बीवी बच्चों को एक असली कार में घुमा पाता चाहे वह खुद की ना होकर किसी किराए वाले की ही होती I वो तो लेकिन कभी किराया पूछने का भी दुस्साहस भी करने में डरता हैI भगवान ने हम सब को दिल दिया है और इस दिल में चाहत भी आती ही हैं और हम सब लोग इन चाहतों के लिए अपना सब कुछ न्यौछावर करने के लिए तत्पर भी रहते हैं परंतु हमारी नियति हमें उतना ही देती है जितना शायद हमारी किस्मत में लिखा होता है I उसने बचपन से सुना है कि सपने औकात में रहकर देखने चाहिए और बार-बार उसके जेहन में यह बात आती है कि गांव में रहने वाले हर इंसान ने और शहर में मिलने वाले हर इंसान ने बार-बार उसे ये याद दिलाया है कि सपने औकात में रहकर ही देखे जाते हैं, लेकिन उसका दिल है कि वह बार-बार यह बगावत करता है कि मैं इस बात को बिल्कुल भी मारने के लिए तैयार नहीं हूं। सपने अपनी औकात में रहकर देखने ही नहीं चाहिए, क्योंकि उसका यह मानना रहा कि सपने तो इसीलिए तो देखे जाते हैं कि वह उसकी औकात को बढ़ा कर जाएं I क्या औकात बढ़ाने के लिए बड़ा सपना देखना गलत है, कोई जुर्म है और अगर यह जुर्म है तो आखिर यह सब बातें किस इंसान ने सोचकर निकाली होंगी I वो इंसान खुद कभी ऐसे हालातों से रूबरू नही हुआ होगा …ये पक्का है I