विनय एक्सप्रेस आलेख, तुलसी पूजन दिवस विशेष। सनातन संस्कृति का अनमोल हिस्सा तुलसी पूजन दिवस जो 25 दिसंबर को पूरे भारत मे बड़े हर्ष के साथ मनाया जाता है। पंडित नितेश व्यास तुलसी पूजन विधि, तुलसी नामाष्टक तुलसी मंत्र के बारे मे विनय एक्सप्रेस के सुधि पाठको को बता रहे है, पढ़िये उनका यह विशेष आलेख।
तुलसी पूजन विधि व तुलसी – नामाष्टक
25 दिसम्बर को सुबह स्नानादि के बाद घर के स्वच्छ स्थान पर तुलसी के गमले को जमीन से कुछ ऊँचे स्थान पर रखें | उसमें यह मंत्र बोलते हुए जल चढायें :
महाप्रसाद जननी सर्वसौभाग्यवर्धिनी
आधि व्याधि हरा नित्यम् तुलसी त्वाम् नमोस्तुते
फिर ‘तुलस्यै नम:’ मंत्र बोलते हुए तिलक करें, अक्षत (चावल) व पुष्प अर्पित करें तथा वस्त्र व कुछ प्रसाद चढायें | दीपक जलाकर आरती करें और तुलसीजी की ७, ११, २१,५१ व १०८ परिक्रमा करें | उस शुद्ध वातावरण में शांत हो के भगवत्प्रार्थना एवं भगवन्नाम या गुरुमंत्र का जप करें | तुलसी के पास बैठकर प्राणायाम करने से बल, बुद्धि और ओज की वृद्धि होती है |
तुलसी – पत्ते डालकर प्रसाद वितरित करें | तुलसी के समीप रात्रि १२ बजे तक जागरण कर भजन, कीर्तन, सत्संग-श्रवण व जप करके भगवद-विश्रांति पायें | तुलसी – नामाष्टक का पाठ भी पुण्यदायक है | तुलसी – पूजन अपने नजदीकी आश्रम या तुलसी वन में अथवा यथा–अनुकूल किसी भी पवित्र स्थान में कर सकते हैं |
तुलसी – नामाष्टक
वृन्दां वृन्दावनीं विश्वपावनी विश्वपूजिताम् |
पुष्पसारां नन्दिनी च तुलसी कृष्णजीवनीम् ||
एतन्नामाष्टकं चैतत्स्तोत्रं नामार्थसंयुतम् |
य: पठेत्तां च संपूज्य सोऽश्वमेधफलं लभेत् ||
भगवान नारायण देवर्षि नारदजी से कहते हैं : “वृन्दा, वृन्दावनी, विश्वपावनी, विश्वपूजिता, पुष्पसारा, नंदिनी, तुलसी और कृष्णजीवनी – ये तुलसी देवी के आठ नाम हैं | यह सार्थक नामावली स्तोत्र के रूप में परिणत है |
जो पुरुष तुलसी की पूजा करके इस नामाष्टक का पाठ करता है, उसे अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है | ( ब्रह्मवैवर्त पुराण, प्रकृति खण्ड :२२.३२-३३)
श्री तुलसी नामाष्टक
वृंदा,वृन्दावनी,विश्वपुजिता,विश्वपावनी |
पुष्पसारा, नंदिनी च तुलसी,कृष्णजीवनी ||
एत नाम अष्टकं चैव स्त्रोत्र नामार्थ संयुतम |
य:पठेत तां सम्पूज्य सोभवमेघ फलं लभेत ||
तुलसी नामाष्टक मंत्र : वृंदा वृंदावनी विश्रपूजिता विश्वपावनी । पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी ।
तुलसी जल अर्पित मंत्र
महाप्रसाद जननी, सर्व सौभाग्यवर्धिनी । आधि व्याधि हरा नित्यं, तुलसी त्वं नमोस्तुते ।
देवी त्वं निर्मिता पूर्वमर्चितासि मुनीश्वरैः ! नमो नमस्ते तुलसी पापं हर हरिप्रिये।।
तुलसी पूजा मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया ।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया ।।
*श्री तुलसी स्तोत्र
पापानि यानि रविसूनुपटस्थितानि गोब्रह्मबालपितृमातृवधादिकानि।
नश्यन्ति तानि तुलसीवनदर्शनेन गोकोटिदानसदृशं फलमाशु च स्यात् ॥१॥
या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुः पावनी रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्ताऽन्तकत्रासिनी।
प्रत्यासक्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः ॥२॥
ललाटे यस्य दृश्येत तुलसीमूलमृत्तिका यमस्तं ।
नेक्षितुं शक्तः किमु दूता भयङ्कराः ॥३॥
तुलसीकाननं यत्र यत्र पद्मवनानि च।
वसन्ति वैष्णवा यत्र तत्र सन्निहितो हरिः॥४॥
पुष्कराद्यानि तीर्थानि गंगाद्याः सरितस्तथा।
वासुदेवादयो देवाः वसन्ति तुलसीवने ॥५॥
तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥६॥
पण्डित आचार्य नितेश महाराज(ऐस्ट्रो भा)
अधिष्ठता महागणपति साधना पीठ
कथावाचक, रमल वैदिक ज्योतिषी गोल्ड मेडलिस्ट, उपाध्यक्ष ज्योतिष ग्लोबल पुंज, महासचिव विश्व सनातन वाहिनी