बीएसएफ और ऊंट : सीमा रक्षा चौकसी में ऊंटों का घटता महत्व : पढ़ें युवा लेखक राजेन्द्र आचार्य का यह आलेख

विनय एक्सप्रेस समाचार, आलेख। रेगिस्तानी जहाज नाम से प्रचलित पशु ऊंट का भावी भविष्य और सीमा रक्षा चौकसी में ऊंटों के घटते प्रभाव को लेकर खाजुवाला के युवा लेखक ने अपने आलेख के माध्यम से चिंता प्रकट की है। सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और नीति निर्धारण करने वाले नेताओं को ऊंटों के महत्व से जागरूक करने के उद्देश्य से आचार्य द्वारा लिखा गया यह आलेख आम जनता के अवलोकनार्थ प्रस्तुत है।

राजेंद्र आचार्य : युवा लेखक

रेगिस्तान का जहाज कहे जाने वाले ऊंट बॉर्डर पर तैनात बीएसएफ का अभिन्न अंग है। राजस्थान के रेत के टीलों पर आसानी से चल सकने वह एकाध दिन तक पानी ना मिलने पर भी ऊंटआराम से अपना जीवन चला सकता है ।
अपनी ऊंचाई व मजबूत कद काठी के कारण बीएसएफ बटालियन ने इस पशु का चयन किया ।आज से 10 वर्ष पहले तक ऊंट पर बैठकर बीएसएफ के जवान राजस्थान की सीमा की रखवाली करते थे। 1948 में ही भारतीय सेना में ऊंट दस्ते को शामिल कर लिया था परंतु 1975 में भारतीय सेना ने इसे बीएसएफ को सुपुर्द कर दिया ।
परंतु जैसे-जैसे समय बदला आज बीएसएफ में ऊंट का महत्व बहुत कम हो गया। जहां उसका काम बीएसएफ के लिए सीमा निगरानी में अति महत्वपूर्ण था। अब वही यह पशु राजपथ पर परेड तथा मेहमानों का स्वागत और सम्मान के लिए ही प्रयुक्त हो रहे हैं।


राजस्थान में ऊंट को राज्य पशु का भी दर्जा प्राप्त है इसकी घटती संख्या और घटता महत्व इस पशु के लिए भविष्य पर ही प्रश्नचिन्ह लगा रहा है। बीएसएफ के पोस्टों पर आज भी ऊंट देखने को मिलते हैं पर उनसे किसी भी प्रकार की सीमा रखवाली में कार्य नहीं लिया जाता है ।हां , अक्सर ऊंटों को सक्रिय रखने के लिए ऊंटों के पीछे सवागा बांधकर पोस्ट के आस-पास और अंदर की जमीन को समतल करने में जरूर काम में लिए जाते हैं। ताकि खाली बैठा ऊंट किसी प्रकार की हिंसक घटना ना करें।

वर्तमान में ऊंट जिस बीएसएफ की पोस्ट चौकी पर होता है वहां वह एक तरह से भार बनकर ही रह रहा है। क्योंकि ऊंट का प्रयोग सीमा चौकसी में ना होने से बीएसएफ के जवान भी इनके आचार व्यवहार से अधिकांशतः अनभिज्ञ ही रहते हैं।
एक समय था जब बीएसएफ बटालियन का नाम आते ही रेगिस्तान के जहाज का परिदृश्य का मन में अंकन हो जाता था । पर आज वर्तमान परिदृश्य में ऐसा नहीं है भारत सरकार वह डिफेंस सेक्टर को इस अनमोल पशु के ऊपर दोबारा चिंतन कर डिफेंस सेक्टर में इसका किस तरह से समुचित उपयोग हो। इस पर चिंतन जरूरी है ताकि इस प्रजाति को बढ़ावा और लुप्त होने से बचाया जा सके।