विश्व बंधुत्व के सेतु थे डॉ. टैस्सीटोरी : वरिष्ठ कवि-कथाकार कमल रंगा

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। राजस्थानी युवा लेखक संघ के प्रदेश अध्‍यक्ष व वरिष्ठ कवि-कथाकार कमल रंगा ने कहा कि महान् इटालियन विद्वान, राजस्थानी पुरोधा, डॉ. लुईजि पिऔ टैस्सीटोरी विश्व बंधुत्व के सेतु थे। रंगा सोमवार को डॉ. टैस्सीटोरी की 102वीं पुण्यतिथि पर राजस्थानी युवा लेखक संघ एवं प्रज्ञालय संस्थान द्वारा डॉ. टैस्सीटोरी समाधि स्थल पर आयोजित होने वाले समारोह में ‘पुष्पांजलि’ और ‘शब्दांजलि’ कार्यक्रम को अध्यक्ष के रूप में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि डॉ. टैस्‍सीटोरी ने सभी सीमाओं को लांघकर राजस्थानी भाषा, साहित्य, संस्कृति और पुरातत्त्व के लिए समर्पित भाव से काम किया। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि वे बहुभाषाविद् एवं भाषा वैज्ञानिक थे साथ ही उन्होंने कुशल सम्पादन करते हुए राजस्थानी के महत्त्वपूर्ण ग्रन्थों को प्रकाश में लाने का कार्य किया। ऐसी महान् विभूति को नमन करना अपनी विरासत को याद करना है। उनके कार्यों को जन-जन तक पहुंचाना एक सृजनात्मक दायित्व निर्वहन करना है। इससे पूर्व सभी साहित्यकारों एवं अन्य कला से जुड़े गणमान्यों आदि ने डॉ. टैस्सीटोरी के समाधि स्थल पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें नमन किया।


टैस्सीटोरी के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व पर ‘शब्दांजलि’ में विस्तृत प्रकाश डालते हुए बतौर मुख्य वक्ता वरिष्ठ शाइर क़ासिम बीकानेरी ने कहा की डॉ. टेस्सीटोरी बहु आयामी प्रतिभा के धनी थे वे भारतीय आत्मा थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन साहित्य, संस्कृति, कला, पुरातत्व, शोध एवं भाषा को मान सम्मान दिलाने में लगा दिया था | . वरिष्ठ कवयित्री मधुरिमा सिंह ने राजस्थानी मान्यता के सवाल को उठाते हुए डॉ. टैस्सीटोरी को याद किया। वहीं वरिष्ठ कवयित्री कृष्णा वर्मा ने डॉ. टैस्सीटोरी के नाम से एक सांस्कृतिक और साहित्यिक भवन की मांग रखी। इतिहासविद् डॉ. फारूक चौहान ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी गंभीर पुरातत्त्वविद् थे। कवि गिरिराज पारीक ने डॉ. टैस्सीटोरी समाधि-स्थल की समुचित व्यवस्थाओं की मांग उठाई।


कवि डा.तुलसीराम मोदी ने कहा कि राजस्थानी की मान्यता मिलना ही डॉ. टैस्सीटोरी को सच्‍ची श्रद्धांजलि होगी। संस्कृतिकर्मी सय्यद बरकत अली कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी महामानव थे और राजस्थानी संस्कृति के गहरे उपासक थे। कवि शमीम अहमद ‘शमीम’ ने उन्हें नमन करते हुए कहा कि राजस्थानी मान्यता आंदोलन को ऐसे आयोजनों से गति मिलेगी और साथ ही हमें संस्था के साथ जुड़कर राजस्थानी भाषा आंदोलन में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। हरिनारायण आचार्य ने कहा कि डॉ. टैस्सीटोरी सही अर्थों में राजस्थानी के गंभीर अध्येता थे। कार्यक्रम में शामिल प्रबुद्घजनों ने उनकी सेवाओं को रेखांकित करते हुए उन्हें बहुआयामी और समर्थ आलोचक बताया। शब्दांजली कार्यक्रम में आशीष रंगा, तोलाराम सारण, अशोक शर्मा, भवानीसिंह, कार्तिक मोदी आदि सहित सभी राजस्थानी समर्थकों ने डॉ. टैस्सीटोरी के कार्यों को नमन करते हुए उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
संचालन डॉ. फ़ारुक़ चौहान ने किया जबकि सभी का आभार गिरिराज पारीक ने ज्ञापित किया।