विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। सादूल राजस्थानी रिसर्च इन्स्टीट्यूट , बीकानेर के तत्वावधान में इटली मूल के राजस्थानी विद्वान डॉ. एल. पी. तैस्सितोरी की 102वीं पुण्यतिथि पर सोमवार को स्थानीय म्यूजियम परिसर स्थित डॉ. तैस्सितोरी की प्रतिमा पर पुष्पांजली ,उनके व्यक्तित्व एवं कृत्तिव्व पर कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता कवि-कथाकार राजेन्द्र जोशी ने की तथा कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी एन. डी. रंगा थे तथा विशिष्ट अतिथि कवि-आलोचक डॉ. नीरज दइया एवं सम्पादक डॉ. अजय जोशी रहे।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अतिथियों , सामाजिक कार्यकर्ताओं , शिक्षाविदों, साहित्यकारों एवं शोधार्थियों ने डॉ. तैस्सितोरी की मूर्ति पर माल्यार्पण किया ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए राजेन्द्र जोशी ने कहा कि इटली निवासी विद्वान डॉ. तैस्सितोरी बीकानेर में रहते हुए राजस्थान के इतिहास , संस्कृति , साहित्य तथा पुरातत्व संबंधी शोध कार्य में तत्पर रहे । जोशी ने कहा कि उन्होनें यहां के ऐतिहासिक साहित्य हस्तलिखित ग्रन्थ , शिलालेख एवं जैन साहित्य को एक सूत्र में पिरो कर साहित्य मर्मज्ञों के लिए प्रस्तुत किया ।
जोशी ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी राजस्थानी लोकगीतों के प्रेमी थे वे मूमल , मरवण , पद्मिनी आदि कथाऐं और गीत सुनते और रात – रात भर गांवों में रहकर वहां की भाषा और संस्कृति का अध्ययन करते रहे । पल्लू गांव की दसवीं-ग्यारवी शताब्दी के दौरान सरस्वती प्रतिमा ( 10वी -11वीं शती ) को तलाशने का श्रेय भी डॉ. तैस्सितोरी को ही जाता है ।
मुख्य वक्ता साहित्यकार राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि बीकानेर के भ्रमण और यहां के इतिहास को पढ़ने से स्पष्ट हो गया कि यहां साहित्यक जागरूकता वर्तमान में भी है, और पूर्व में भी रही है ऐसे में बीकानेर की माटी से प्रेरणा लेकर डॉ. तैस्सितोरी ने राजस्थानी भाषा के लिए कार्य किया ।
मुख्य अतिथि श्री एन.डी.रंगा ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी की राजस्थान की मरूधरा एवं मरूवाणी की संस्कृति एवं साहित्य के प्रति असीम अनुरक्ति थी, यही कारण है कि वे शनैः-शनैः यही के होकर रह गये ।
इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि डॉ. नीरज दइया ने कहा कि अब समय आ गया है , जब राजस्थानी भाषा को मान्यता मिल जानी चाहिए । कवि चन्द्रशेखर जोशी ने कहा कि उदीने एवं बीकानेर को जुड़वां शहर के रूप में स्थापित करने के लिए नगर निगम एवं नगर के साहित्यकारों एवं कला साहित्य एवं संस्कृति जगत के लोगो को प्रयास करने की जरूरत है ।
लेखक ड़ॉ. अजय जोशी ने कहा कि शोधार्थियों को डॉ. तैस्सितोरी के शोध कार्य का अध्ययन करना चाहिए और उनके द्वारा किए गये शोध से अपने द्वारा किये जाने वाले शोध को गुणवत्तायुक्त बनाया जा सकता है ।
पत्रकार डॉ. नासिर जैदी ने कहा कि डॉ. तैस्सितोरी भाषा के प्रति जुड़ाव के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में याद किए जाएगें ।
साहित्यकार जुगल पुरोहित ने कहा कि इटली निवासी डॉ. तैस्सितोरी राजस्थानी संगीत के भी प्रेमी थे ।
कार्यक्रम में संस्कृतिकर्मी बृजगोपाल जोशी ने उनके व्यक्तित्व एवं कृत्तित्व पर विचार रखे। आभार युवा कवि संजय जनागल ने ज्ञापित किया।