भूविज्ञान के द्वारा ही हम जान सकते है अपने प्रकृति के जीवन की यात्रा – प्रणय लाल

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। हम देखते है कि हमारे आस-पास पहाड़, पर्वत, नदियां कहां से आए ? रेगिस्तान कैसे बने या इसी तरह की अन्य चीजे जो हम और हमारे पूर्वज देखते आए है। इन प्रश्नों के जवाब हम जब खोजते है तब हमारी रूचि और जिज्ञासा दोनो इस ओर बढती है। ऐसी ही रूचि के साथ प्रणय लाल, जीव रहस्य विशेषज्ञ की रही। प्रणय लाल अजित फाउण्डेशन द्वारा आयोजित संवाद श्रृंखला में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि लगभग 4.56 बिलियन साल पहले सूर्य के ईदर्गिद कई ग्रह रोटेट कर रहे थे। वहीं से हमारी पृथ्वी एवं चंद्रमा के बनने की यात्रा का आरम्भ हुआ। यह यात्रा बहुत लम्बी रही। प्रणय लाल ने बताया कि लगभग 300 मिलियन साल पहले एक दिन में 18 घण्टे होते थे न कि 24 घण्टे का। यह सब प्राकृतिक घटनाओं के साथ-साथ बदलता रहा। उन्होंने बताया कि पृथ्वी पर जीवन इसलिए संभव हुआ कि पृथ्वी में से कुछ न कुछ निकलता रहा जैसे लैड, मासर्स, लावा आदि इन्हीं के कारण इस ग्रह पर करोड़ों वर्षों बाद जीवन संभव हुआ। धीरे-धीरे यहां ऑक्सीजन बनना प्रारम्भ हुआ। ऑक्सीजन भी हमें पहले पहल समुद्र की सतहों पर मिलने वाले कीटाणुओं से मिलना प्रारम्भ हुआ। उन्होंने कहा कि अगर हम इस धरती पर से सभी पेड़ हटा दे तो जीवन मुश्किल तो होगा लेकिन अगर समुद्र की सतहों पर रहने वाले किटाणुओं को हटा देवें तो हम जीवित नहीं रह सकते।


राजस्थान पर बात करते हुए प्रणयलाल ने कहा कि कई लोगों के मन में यह धारणा है कि रेगिस्तान का कोई उपयोग नहीं है, वह उसको हेय दृष्टि से देखते है। लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए क्योकि इसी रेगिस्तानी इलाके में हमें सबसे ज्यादा जीवाश्म मिलते है। रेगिस्तान की उपयोगिता भी उतनी ही जितनी अंटाट्रिका में जमी बर्फ का। अगर हमें मानसून की जानकारी पर शोध करना है तो हमें अंटाट्रिका पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। उन्होंने एक उदाहरण से बताया कि सहारा रेगिस्तान की मिट्टी उड़कर अमेजोन तक आती है उसको रोकने के लिए वहां की सरकार ने काफी पेड़ एवं प्लास्टिक की एक लेयर बनाई है जोकि प्राकृतिक असंतुलन को दर्शाती है। हमें देखते है कि रेत, समुन्द्र, पेड़, जंगल इन सभी में आपसी संबंध है जिसको हमें बनाया रखना चाहिए।


उन्होंने अपनी जोधपुर, जैसलमेर एवं बाड़मेेर यात्रा के दौरान पाये जीवाषम के बारे में बताया कि यहां उन्हें छोटे से बड़े कई जीवाश्म मिले जिसमें डायनोसोर के पैरो के जीवाश्म भी प्राप्त हुए। प्रणय लाल ने बताया कि बिच्छु ऐसा पहला जानवर होगा जोकि समुद्र से जमीन पर आया। कई पत्थर ऐसे मिले जिन पर पानी के निशान मिले। अंत में उन्होंने कहा कि हमें विद्यालय एवं महाविद्यालय में जीव विज्ञान को सही तरीके से पढ़ाने की आवश्यकता है। इसको हमें रूचिकर तरीके से पढ़ना होगा तभी हम जैव विज्ञान को रोचक बना सकते है।


कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. विक्रम व्यास कहा कि हमें बिना घमण्ड किए प्रकृति के साथ जुड़ना चाहिए। प्रकृति में छोटी से छोटी चीज एक दूसरे से जुड़ी हुई है। डॉ. विक्रम ने बताया कि पृथ्वी एक अनोखा ग्रह है। पृथ्वी जैसी कोई दूसरी जगह नहीं जहां हम रह सकते है।


कार्यक्रम के अंत में संस्था उपाध्यक्ष्या श्रीमती लक्ष्मी देवी व्यास ने प्रणय लाल को शॉल एवं श्रीफल देकर सम्मानित किया।