श्री कृष्ण जन्माष्टमी का आध्यात्मिक चिंतन : पंडित विजय शंकर व्यास

विनय एक्सप्रेस आलेख, पंडित विजय शंकर व्यास। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी विशेष। आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण ब्रह्म थे। देवकी देह और वासुदेव प्राण और कंस अहंकार के प्रतीक हैं। पंचतत्वों और तीन गुणों के जाल से निकलकर श्रीकृष्ण यानी ब्रह्म को स्वयं में अंगीकार करने का महापर्व है जन्माष्टमी।

पंडित विजय शंकर व्यास

कर्मकांडीय पद्धति में जन्माष्टमी पर मयूर पंख, माखन, बांसुरी और पारिजात पुष्प का विशेष महत्व है। मयूर पंख नकारात्मकता को नष्ट करता है। माखन स्निग्धता और पवित्रता की द्योतक है। बांसुरी प्रेम और सकारात्मकता का प्रतीक है और पारिजात आंतरिक चेतना का प्रतिनिधित्व करता है।
जो अपनी वाणी अपने वर्तन अपने व्यवहार और विचार से दूसरे को आनंदित करता है वही नंद है।

दक्ष मिढा : कान्हा स्वरूप मे

जो अपने जीवन के मांगलिक कार्यों का यश दूसरे को देता है वही यशोदा है जिसका मन विशुद्ध है वही वसुदेव है और जिसकी देवमयी बुद्धि है वही देवकी है।
हमारे शरीर की इंद्रियां ही गोकुल का निर्माण करती है इंद्रियों का संगठन ही गोकुल है।
गौ का अर्थ है इंद्रियां
कुल का अर्थ है संगठन
हमारा शरीर ही इंद्रियों का संगठन है अर्थात शरीर ही गोकुल है।
जो अपनी एक एक इंद्रियों के द्वारा भगवान के रूप का रसपान करता है वही गोपी है।
जीव का जन्म होता है कर्मों के कारण से और परमात्मा का अवतार होता है करुणा के कारण से। परमात्मा के अवतार में करुणा ही कारण बोध है।