विनय एक्सप्रेस आलेख-शिवकुमार सोनी। बीकमपुर में 4 सितम्बर रविवार को मणिधारी दादा गुरुदेव की जयंती पर रविवार को दादा गुरुदेव के जन्म स्थान विक्रमपुर (बीकमपुर) में मेला व बीकानेर के जिनालयों में संगीतमय पूजा, गुरु इकतीसा का पाठ होगा। बीकमपुर के लिए रविवार को सुबह आधा दर्जन बसों से व विभिन्न वाहनों से श्रावक-श्राविकाएं रवाना होंगे। मेले व ध्वारोहण समारोह के लिए मुंबई, सूरत व चैन्नई व फलौदी आदि से यात्री पहंुंचने शुरू हो गए हैं।
जैन श्वेताम्बर खरतरगच्छ संघ के खरतरगच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी की प्रेरणा से बीकमपुर के दादा गुरुदेव के छठे ध्वजारोहण उत्सव मेले आयोजन, विभिन्न व्यवस्थाओं का संयोजन श्री अखिल भारतीय खरतरगच्छ युवा परिषद कर रहा है। परिषद के बीकानेर इकाई अध्यक्ष बीकानेर के अध्यक्ष राजीव खजांची ने बताया कि मणिधारी दादा गुरुदेव जिनचन्द्र सूरिश्वरजी मेले की तैयारियों को पूर्ण कर लिया है। श्रावक-श्राविकाओं की भक्ति, पूजा, दादा गुरुदेव इकतीसा पाठ, ध्वाजारोहण, जप व तप की सुविधाजनक व्यवस्था की गई है। उन्होंने बताया कि बीकमपुर में मणिधारी दादा की जन्म स्थली है बीकमपुर खरतरगच्छाधिपति आचार्यश्री जिन मणिप्रभ सूरिश्वरजी ने छह वर्ष पूर्व अपने चातुर्मास के दौरान भव्य समारोह आयोजित करवाकर मंदिर व दादाबाड़ी का नवीनीकरण, जीर्णोंद्धार करवाया। छह वर्ष से निरन्तर मेले का आयोजन किया जा रहा है तथा प्रतिमाह बस से श्रावक-श्राविकाएं पूजा अर्चना कर रहे हैं।
बीकानेर, 3 सितम्बर। रांगड़ी चैक के सुगनजी महाराज के उपासरे में शनिवार को साध्वी मृृगावतीश्रीजी, सुरप्रियाश्रीजी व नित्योदयाश्रीजी के सान्निध्य में दीपक शोभायात्रा में श्रेष्ठ दीपक सज्जा करने वाली 36 श्राविकाओं को सुश्रावक यशवंत कोठारी व अनुराग कोठारी परिवार की ओर से सांत्वना पुरस्कार प्रदान किए गए।
साध्वीश्री मृृगावतीजी ने कहा कि मणिधारी दादा गुरुदेव की जयंती पर मंदिरों, घरों में भक्ति भाव से 3 गुरु इकतीसा का पाठ करें तथा मंदिरों में 9 बार परिक्रमा (पदक्षिणा) करें। श्रद्धा भक्ति से गुरु इकतीसा का पाठ करने से रोग,शोक व कष्ट दूर होते है तथा सुख, सम्पति व समृृद्धि आती है। बीकानेर में गंगाशहर रोड स्थित दादाबाड़ी में रविवार को दोपहर भक्ति संगीत के साथ पूजा व उसके बाद प्रसाद का आयोजन रखा गया है।
मणिधारी दादा गुरुदेव का परिचय
जैन जगत में दादा गुरुदेवश्री जिन दत्त सूरि, मणिधारी दादा गुरुदेव जिनचन्द्र सूरि, दादा जिनकुशल सूरि, व जिनचन्द्र सूरि (चारों दादा गुरु) ने साधना और पुरुषार्थ से जैन समाज की दिशा ही बदल दी। उन्होंने कहा कि दादा गुरुदेव श्री जिनदत्त सूरिजी के पटधर, तेजस्वी मणिधारी दादा गुरुदेव जिनचन्द्र सूरि असाधारण व्यक्तित्व व लोकोतर प्रभाव के कारण अल्प आयु में सौहरत प्राप्त कर भगवान महावीर के शासन की स्वर्णिम प्रभावना की। दादा गुरुदेव का जन्म विक्रम संवत 1197 आज से लगभग 882 वर्ष पहले विक्रमपुर (बीकमपुर) में भाद्रशुक्ल अष्टमी को विक्रमपुर में हुआ। दादा गुरुदेव का सांसारिक नाम सूर्य कुमार था । तेजस्वी बालक सूर्यकुमार को धार्मिक संस्कार जन्म से ही विरासत में प्राप्त हुए। बीकमपुर में प्रथम दादा गुरुदेव जिनदत्त सूरि के चातुर्मास के दौरान अपनी माता देल्हण देवी के साथ वे नित्य प्रवचन सुनने जाते थे। कम उम्र में विरक्ती के भाव, शुभ लक्षणों को देखकर ज्ञानबल से प्रथम दादा गुरुदेव ने अपना पट््धर मानकर 6 वर्ष की आयु में संवत 1203 फाल्गुन शुक्ल 9 के दिन अजमेर दीक्षा प्रदान की। दो वर्ष के कम समय में ही दादा गुरुदेव ने कठिन साधना, आराधना व भक्ति से प्रभावित होकर 8 साल की उम्र में संवत 1205 में वैशाख शुक्ल 6 के दिन आचार्य जिनदत्त सूरि ने आचार्य पद प्रदान कर जिनचन्द्र सूरि नाम दिया। आचार्य पद का महोत्सव विक्रमपुर वर्तमान बीकमपुर के भगवान महावीर स्वामी के मंदिर में उनके सांसारिक पिता रासलजी ने भव्य समारोह किया। आचार्य पदवी के पश्चात जिनचन्द्र सूरि ने दादा जिनदत्त सूरि के सान्निध्य में रहकर शास़्त्रों के गूढ रहस्यों ज्ञान हासिल की। दादा गुरुदेव जिनदत्त सूरि ने अपने शिष्य जिनचन्द्र सूरि को योगिनीपुर वर्तमान दिल्ली नहीं जाने की सलाह दी। गुरुदेव जानते थे कि मणिधारी दादा जिनचन्द्र सूरि का अल्पायु योग है। संवत 1211 में प्रथमदादा गुरुदेव जिनदत्त सूरि के स्वर्गवास के बाद गच्छ संचालन व विकास का दायित्व द्वितीय दादा गुरु जिनचन्द्र सूरि हो गया। दूसरे दादा गुदेव ने विभिन्न गांवों व नगरों में विहार करते हुए धर्म का प्रचार किया तथा अनेक श्रावक-श्राविकाओं को दीक्षित किया। दादा गुरुदेव ने अनेक मंदिरों, दादाबाड़ियों की स्थापना की।
दादा गुरुदेव जिनचन्द्र सूरिश्वरजी के लालट पर मणि थीं इसलिए आपको मणिधारी दादा के नाम से प्रसिद्धि मिली। दादा गुरुदेव ने अपनी लौकिक देह त्याग को दिल्ली में त्याग दिया। दिल्ली में उनके पार्थिह देह की अंत्येष्टि महरौली में की गई। महरौली में वर्तमान में दादा गुरुदेव की भव्य दादाबाड़ी दादा गुरुदेव के आदर्शों का स्मरण दिलाते हुए जैन धर्म की प्रभावना कर रही है।