जूनागढ़ से पारंपरिक रस्मों के साथ निकली राजमाता सुशीला कुमारी की अंतिम यात्रा

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर।पूर्व बीकानेर रियासत की राजमाता सुशीला कुमारी की अंतिम यात्रा जूनागढ़ किले से सुबह शाही लवाजमे के साथ रवाना हुई। लवाजमे में घोड़े, ऊंट, बग्घी, बैंड शामिल थे।

लवाजमा जूनागढ़ से गंगा थिएटर तक पहुंचा। यहां से सुशीला कुमारी की पार्थिव देह वाहन के माध्यम से देवी कुंड सागर ले जाई गई। देवीकुंड सागर में राजपरिवार के पैतृक श्मशान गृह में पारम्परिक रस्मों के साथ अंतिम संस्कार हुआ।

इस दौरान शिक्षा मंत्री डॉ बुलाकीदास कल्ला, उप नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ ,नोखा विधायक बिहारी बिश्नोई, पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी,पूर्व महापौर नारायण चौपड़ा, डॉ. आर पी कोठारी, उप महापौर राजेन्द्र पंवार, अखिलेश प्रताप सिंह सहित अन्य उपस्थित रहे।

राजमाता सुशीला कुमारी के निधन पर शनिवार को जूनागढ़ किले के मुख्य द्वार पर लहरा रहे बीकानेर रियासतकालीन ध्वज को आधा झुका दिया गया। वहीं दो दिन के लिए जूनागढ़ किले को पर्यटकों के लिए बंद कर दिया गया है। जिला कलेक्ट्रेट परिसर में पूर्व न्यास अध्यक्ष महावीर रांका की अगुवाई में पुष्प वर्षा अंतिम विदाई दी गई।

 

समाजसेवा में रहीं सक्रिय
सुशीला कुमारी लोकहितार्थ कार्यों में सदैव अग्रणी रहीं। राजपरिवार से संबंधित विभिन्न ट्रस्टों की अध्यक्ष के रूप में रहते आमजन हित और व्यवस्था निर्माण के लिए जीवन पर्यन्त कार्य किए। महाराजा रायसिंह ट्रस्ट जूनागढ़ फोर्ट बीकानेर की अध्यक्ष, राजमाता बागेलीजी सुदर्शना कुमारी चेरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्ष, महारानी सुशीला कुमारी ऑफ बीकानेर रिलिजियस एवं चेरिटेबल ट्रस्ट की अध्यक्ष रहीं।


राजस्थानी, गुजराती व अंग्रेजी की जानकार
सुशीला कुमारी ने अपने जीवन में सदैव राजस्थानी भाषा को प्रमुखता दी। सामान्यत: बोलचाल में राजस्थानी में बात करती थीं। उन्हें हिन्दी, गुजराती और अंग्रेजी बोलने में महारत हासिल थी।
घंटों कार्यों का निष्पादन
राजपरिवार से जुड़े हनुवंत सिंह दाऊदसर के अनुसार सुशीला कुमारी का पूरा जीवन सादगीपूर्ण रहा। सुबह जल्दी उठना, नित्य पूजन, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन दिनचर्या के अंग थे। वे ट्रस्ट संबंधित पत्रावलियों सहित अन्य कार्यालय कार्य में घंटों व्यतीत करती थीं। कई बार तो रात तक पत्रावलियों का निस्तारण करते देखी जाती थीं।