छोड़ गए थे पिता जो वसीयत/उसमें कुछ साफ-साफ थे निर्देश….अंगूठे से आसमान पर लकीर खींच कोई उस तरफ फांद गया.. : अनिरूद्ध उमट

गहन संवेदना एवं विविध आयामों की साक्षी है उमट की कविता- डॉ जोशी

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। प्रज्ञालय संस्थान के साहित्यिक नवाचार एवं नव पहल के तहत सहयोगी संस्था  स्व नरपतसिंह सांखला के साझा आयोजन ‘आखर उजास’ की दूसरी कड़ी हिन्दी भाषा को समर्पित  रही। कार्यक्रम में ख्यातनाम वरिष्ठ कवि अनिरूद्ध उमट ने अपने चर्चित काव्य संग्रह ‘कह गया जो आता हूं’ ‘अभी, तस्वीरों से जा चुके चेहरे’ एवं संलाप से अपनी लोकप्रिय कविताओं का वाचन किया जिसमें प्रमुख है- एक-एक कर सभी/उतरे कुंएं में/बनाने भीतर ही दरवाजा/किसी की भी आवाज/नहीं सुनाई दी फिर कभी……., छोड गए थे पिता जो वसीयत/उसमें कुद साफ-साफ थे निर्देश/याद रखना तुम्हारी हठ में मुझे रोना आ जाता था………, प्रेम की खोज में समुद्र भी सूदंक है/पृथ्वी भी संदूक/जो लोग खोज में नहीं है, वे प्रेम में है……. एवं अंगूठे से आसमान पर/लकीर खींच/कोई उस तरफ फांद गया……. के साथ अपनी अनेक रचनाओं की शानदार प्रस्तुति से यह साफ हो जाता है कि उमट जीवन की नम और सबसे महीन वस्तुओं को कविता में प्राण देना जीवन में मरम को पोसने का कवि कर्म करते है, तभी तो हम कह सकते है कि उमट अपनी घनीभूत संवेदनाओं के चलते महीन चीजें पकडने में सक्षम है।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार-रंगकर्मी मधु आचार्य ‘आशावादी‘ ने कहा कि उमट की कविताएं हिन्दी कविता के प्रचलित मानको और मुहावरों को तोड़कर अपना रास्ता बना रही है और हिन्दी कविता में एक नया परिदृश्य रचने का प्रयास कर रही है। उन्होने आगे कहा कि उमट की कविताएं जितना भारी यथार्थ रचती है, उससे कहीं अधिक मनुष्य मात्र के भीतरी यथार्थ की परतों को खोलती है। इस अवसर पर आचार्य ने कहा कि आखर उजास आयोजन के लिए आयोजक साधुवाद के पात्र है। क्येांकि ऐसे गंभीर एवं महत्वपूर्ण आयोजनों की आज जरूरत है। जिससे नई पीढ़ी अपनी परंपरा और अग्रज पीढ़ी के रचना संसार से रूबरू हो सके।
  साहित्यिक नव पहल लिये हुए इस आयोजन में अनिरूद्ध उमट की काव्य प्रस्तृति उपरांत आयोजन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ आलोचक एवं कवि डॉ ब्रजरतन जोशी ने अपनी विशेषज्ञ टिप्पणी करते हुए कहा कि उमट की कविताएं संवेदना का विस्तुत फलक लिए हुए तो है साथ ही अनंत क्षितिज और चिंता के विविध आयाम भी साक्षी है। आपकी कविता के भीतर जो भाव तरंगे होती है, वो पाठक की संवेदनात्मक चेतना से टकराकर प्रभाव तरंगो में तब्दील हो जाती है। जोशी ने आगे कहा कि उमट अपने समय का जटिल मुहावरा घड़ने का हुनर रखते है। उमट की कविताएं पिछली काव्य-पीढ़ियों से आगे की  जीवन के ज्यादा विस्तारों को देखती पहचानती हुई कविता का सृजनात्मक उपक्रम करने का प्रयास करती है।
कार्यक्रम में अपना सानिध्य देते हुए राजस्थानी के वरिष्ठ कवि-कथाकार एवं आलोचक कमल रंगा ने इस अवसर पर कहा कि उमट की कविताएं में महीन बुनाई की तरह भीतरी तहों में बुना गया भाव-विचार इतना सूक्ष्म और इतना अपारदर्शी होता है कि वह संवेदना कि मिट्टी में  नमी सा घुल जाता है और ह्रदयस्पर्शी अंनुगुंजे पैदा कर हर गंभीर पाठक के संवेदनात्मक बोध को न जाने कितने-कितने व्यंजनात्मक स्वरूप सोंप देता है। सोंप कर अपनी काव्य की आंतरिक लय में बांध कर श्रोताओ को मंत्रमुग्ध कर देता है।
कार्यक्रम के प्रारंभ में वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं संस्कृतिकर्मी संजय सांखला ने बतौर स्वागताध्यक्ष सभी का स्वागत करते हुए कहा कि आखर उजास के माध्यम से साहित्य की महत्वपूर्ण विधा काव्य को केन्द्र में रखकर एक कवि को सुनना और उस पर विशेषज्ञ टिप्पणी से लाभान्वित होना सुखद तो है कि साथ ही नई पीढ़ी के लिए प्रेरणादायक है।
कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए हिन्दी राजस्थानी के साहित्यकार-आलोचक संजय पुरोहित ने अनिरूद्ध उमट के व्यक्तित्व और कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि आज के संवेदनहीन संसार में इतनी नजाकत भरी कविताएं लिखना, खांडे की धार पर चले जैसा है, ऐसा चुनौती पूर्ण कार्य उमट कर रहे है।
कार्यक्रम की खास बात यह रही कि देश के ख्यातनाम कवि-आलोचक एवं नाटककार डॉ नंदकिशोर आचार्य की गरिमामय में साक्षी रही।
कार्यक्रम में दीपचंद सांखला, अविनाश व्यास, अमित गोस्वामी, डॉ अजय जोशी, जाकिर अदीब, हरीश बी शर्मा, गिरिराज पारीक, डॉ जियाउल हसन कादरी, गोपाल कुमार कुंठित, प्रेम नारायण व्यास, राहुल रंगा, राजस्थानी, कमल किशोर पारीक, मधुरिमा सिंह, माजीद खां गौरी, कपिला पालीवाल, इसरार हसन कादरी, जुगल किशोर पुरोहित, बुनियाद हुसैन जहीन, धीरेन्द्र आचार्य सहित विभिन्न कला अनुशासनो के गणमान्यों ने काव्य धारा का आनंद लिया।
कार्यक्रम में सभी का आभार ज्ञापित करते हुए वरिष्ठ शायर एवं कथाकार एंव कासिम बीकानेरी ने आखर उजास के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि आखर उजास की तीसरी कड़ी राजस्थानी भाषा को समर्पित होगी।