विनय एक्सप्रेस आलेख। विनय एक्सप्रेस के आज अतिथि संपादकीय मे दवा कंपनियों और डॉक्टरों के बीच संबंधों को नियंत्रित करने वाली संहिता और उसके प्रावधानों का विश्लेषण किया गया है। मित्रगण उसे यहां भी पढ़ सकते हैं:
डॉक्टरों की विदेश यात्राएं प्रायोजित करने वाली अमेरिकी दवा कंपनी एबवी हेल्थकेयर की भारतीय शाखा पर ‘यूनिफ़ॉर्म कोड फ़ॉर फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस’ के नियमों का उल्लंघन करने के आरोप है और वह जांच के घेरे में है। इस कंपनी को इसलिए और अधिक परेशानी का सामना करना पड़ सकता है क्योंकि सरकार इस कंपनी के उस कार्यकारी अधिकारी के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने पर विचार कर रही है जिसने नियमों का पालन करने के लिए स्व-घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। पिछले साल जारी इन नियमों के अनुसार, मार्केटिंग प्रैक्टिसेस कोड की अनुपालना में कंपनी के कार्यकारी प्रमुख को हस्ताक्षर करके स्व-घोषणा पत्र देना होता है कि उसकी कंपनी ने इनकी पालना की है। नये नियमों में प्रत्येक वित्तीय वर्ष की समाप्ति के दो महीने के भीतर ऐसा स्व-घोषणा पत्र दिए जाने का प्रावधान है। अमरीकी कंपनी पर सरकार यदि ऐसा कदम उठाती है, तो यह यूनिफ़ॉर्म कोड फ़ॉर फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस के तहत अपनी तरह की पहली कार्रवाई होगी। इस मामले ने भारत के फार्मा हलकों में हलचल पैदा कर दी है और सभी उत्सुकता से सरकार के अगले कदम का इंतजार कर रहे हैं। एबवी हेल्थकेयर इंडिया पर अपने लोकप्रिय एंटी-एजिंग उत्पादों ‘बोटॉक्स’ और ‘जुवेडर्म’ को बढ़ावा देने के लिए 30 डॉक्टरों की पेरिस और मोनाको की विदेश यात्राएं प्रायोजित करने का आरोप है। इसी के लिए नैतिक विपणन संहिता के उल्लंघन की जांच हो रही है। केंद्र सरकार के फार्मास्युटिकल्स विभाग ने कर अधिकारियों से भी इस कंपनी और चिकित्सकों की देयता का आकलन करने के लिए और राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग से पेशेवर कदाचार के लिए डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए भी कहा है। उन डॉक्टरों में से 24 पेरिस और छह मोनाको गए थे। फार्मास्यूटिकल कंपनियों के उत्पादों के विपणन पर नियंत्रण के लिये साल 2014 में जारी संहिता के स्थान पर फार्मास्यूटिकल्स विभाग ने पिछले साल नई संहिता अधिसूचित की थी। वैसे भारत में कंपनियों द्वारा अंतिम उपभोक्ताओं के लिए दवाओं के विज्ञापन और विपणन को विनियमित करने के लिए कई कानून बने हुए हैं, जैसे ‘औषधि और प्रसाधन सामग्री अधिनियम’, ‘औषधि और जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम’, ‘उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम’ आदि। इनके अलावा विज्ञापन में स्व-नियमन के लिए भारतीय विज्ञापन मानक परिषद् की संहिता और भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम के लिए दिशानिर्देश, 2022 की व्यवस्थाएं भी मौजूद हैं। इनके अलावा, भारतीय चिकित्सा परिषद (पेशेवर आचरण, शिष्टाचार और नैतिकता) विनियम, 2002, भी डॉक्टरों और स्वास्थ्य सेवा उद्योग के बीच के संबंधों को विनियमित करता है। ये विनियम कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को मुफ्त उपहार दिए जाने पर प्रतिबंध लगाते हैं। इनके उल्लंघन के परिणाम स्वरूप डॉक्टरों के लाइसेंस भी रद्द किये जाने की व्यवस्था है। परंतु इसमें एक कमी थी। अपनी दवाओं और उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए डॉक्टरों को उपहार और मुफ्त चीजें देने के लिए कंपनियों को दंडित नहीं किया जा रहा था।
एक मेडिकल जर्नल में प्रकाशित निष्कर्षों के अनुसार, एक मुफ्त पिज्जा भी डॉक्टर के पर्चे को प्रभावित कर सकता है। भारत में कंपनियों द्वारा डॉक्टरों के साथ संबंध बनाने की प्रचलित प्रथा के संदर्भ में इन निष्कर्षों को देखें तो यह मुद्दा काफी चिंताजनक हो जाता है। दर्द निवारक गोली डोलो-650 के निर्माता पर दवा लिखने के बदले में डॉक्टरों को 10 हजार मिलियन रुपये के मुफ्त उपहार वितरित करने का आरोप लगा था। अपनी 2019-20 की रिपोर्ट में, संसद की लोक लेखा समिति ने उल्लेख किया था कि सात भारतीय राज्यों में कर निर्धारण अधिकारियों ने कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को दिए गये उपहार और उन पर किये गये खर्चों को कर कटौती योग्य के रूप में अनुमति दी गई, जिसके परिणामस्वरूप सरकारी खजाने को 551 मिलियन रुपयों का नुकसान हुआ। सीधे शब्दों में कहें तो कंपनियां डॉक्टरों से जो सबसे ज्यादा दवा लिखवाती है वह दवा बाज़ार में सबसे महंगी हो जाती है। “बिक्री संवर्धन” की आड़ में, डॉक्टरों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष लाभ दिए जाते हैं, जिसमें वास्तविक उपहार/मुफ्त, प्रायोजित विदेशी यात्राएं, आतिथ्य और मानद पद शामिल होते हैं। इन पर नियंत्रण तथा फार्मा उद्योग के भीतर विपणन प्रथाओं का मार्गदर्शन करने के उद्देश्य से सरकार ने 2014 में एक स्वैच्छिक कोड के रूप में यह आचार संहिता जारी की थी। मगर इसे सीमित रूप से अपनाया गया, और उसे बहुत कमजोर भी माना गया था। वर्ष 2017 में, आवश्यक वस्तुएं (दवाओं के विपणन में अनैतिक प्रथाओं का नियंत्रण) आदेश, 2017 प्रस्तावित किया गया था, लेकिन यह अधिनियमित नहीं हुआ। वर्ष 2021 में 2014 की आचार संहिता को वैधानिक आधार देने के लिए सरकार को निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी। इसके अलावा, 2022 में, एक कर मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने माना कि कंपनियों द्वारा डॉक्टरों को दिए जाने वाले मुफ़्त उपहारों के खर्चे को आयकर अधिनियम, 1961 के तहत कटौती के रूप में दावा नहीं किया जा सकता है। इस मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की थी कि इस तरह की मुफ्त आपूर्ति की लागत को आम तौर पर दवा में शामिल किया जाता है, जिससे इसकी कीमतें बढ़ जाती हैं। चिकित्सा उपकरणों को अलग से विनियमित करने के लिए 2022 में यूनिफ़ॉर्म कोड फ़ॉर मेडिकल डिवाइस मार्केटिंग प्रैक्टिसेस का मसौदा प्रकाशित किया गया। हालांकि वह फिर से स्वैच्छिक अनुपालन के रूप में ही था। इसके बाद, सरकार ने इस क्षेत्र में समग्र विनियमन लाने के लिए एक समिति बनाई जिसकी सिफारिशों के अनुसार, सरकार ने यूनिफ़ॉर्म कोड फ़ॉर फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस 2024 जारी किया। यह नई आचार संहिता दवा कंपनियों की सख्त अनुपालन की व्यवस्था करने के साथ-साथ चिकित्सा उपकरणों पर भी लागू होती है। यह संहिता कहती है कि विपणन के लिए दवा के प्रचार को निर्दिष्ट शर्तों की पालना करनी चाहिए तथा किसी दवा के बारे में जानकारी भ्रामक नहीं होनी चाहिए। इसमें यह दोहराया गया है कि दवाओं के संबंध में “सुरक्षित” शब्द का इस्तेमाल लापरवाही से नहीं किया जा सकता है, और यह कि “नया” शब्द भारत में एक वर्ष से अधिक समय से उपलब्ध या प्रचारित दवाओं के लिए उपयोग में नहीं लिया जा सकता है। यह संहिता कंपनियों के बिक्री प्रतिनिधियों के लिए भी नैतिक मानकों को स्थापित करती है और कंपनियों को अपने कर्मचारियों द्वारा संहिता की अनुपालना के लिए जिम्मेदार ठहराती है। इसके अलावा, संबंधित गतिविधियों में कंपनियों द्वारा नियोजित तीसरे पक्ष को भी अनुपालन की पूरी समझ रखने की आवश्यकता की व्यवस्था देती है।
नई संहिता दो श्रेणियों में ब्रांड रिमाइंडर की अनुमति देती है। पहली सूचनात्मक और शैक्षिक आइटम और दूसरी कंपनियों द्वारा चिकित्सा पेशेवरों को प्रदान किए गए मुफ्त नमूने। सूचनात्मक और शैक्षिक माध्यम से ब्रांड रिमाइंडर में किताबें, कैलेंडर, डायरी आदि जैसे आइटम शामिल हैं, जिनका उपयोग स्वास्थ्य देखभाल सेटिंग्स में पेशेवर उद्देश्यों के लिए किया जाता है। मगर इसके लिए प्रति आइटम एक हजार रुपये सीमा तय की गई है। नई संहिता में भी पहले की तरह ही नि:शुल्क नमूने केवल योग्य व्यक्तियों को प्रदान किए जा सकते हैं जो ऐसे उत्पादों को लिख सकते हैं। वितरित सभी नि:शुल्क नमूनों का विवरण बनाए रखने की जिम्मेवारी भी कंपनियों पर रखी गई है। नि:शुल्क नमूनों की अनुमति देते हुए ऐसे नमूनों के मौद्रिक मूल्य को कंपनी की प्रति वर्ष घरेलू बिक्री के दो प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है। प्रतिबंधित नमूनों की सूची से अवसादरोधी दवाओं को हटाना भी इस संहिता में शामिल है। संहिता में सतत चिकित्सा शिक्षा का एक नया प्रावधान जोड़ा गया है जो सम्मेलनों, संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि के लिए दवा उद्योग और स्वास्थ्य पेशेवरों के बीच जुड़ाव को नियंत्रित करता है तथा विदेशों में आयोजन पर प्रतिबंध लगाता है। शोध के लिए सहायता का भी एक नया प्रावधान जोड़ा गया है जो कंपनियों और स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के बीच सहयोग के लिए दिशा-निर्देश देता है। संक्षेप में कहें तो किसी भी शोध को सक्षम अधिकारियों से मंजूरी लेनी होगी और उसे मान्यता प्राप्त स्थानों पर ही आयोजित किया जाना होगा। परामर्शदाता-सलाहकार के रूप में स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों की नियुक्ति वास्तविक शोध सेवाओं के लिए होनी चाहिए, जिसमें परामर्श शुल्क या मानदेय-आधारित भुगतान शामिल हो, जो सभी कर कानूनों के अनुपालन के अधीन हो। अनुसंधान पर कंपनियों के व्यय को स्वीकार्य माना गया है। स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों के साथ दावा कंपनियों के संबंध में कई पुराने प्रावधानों को नवीनीकृत किया गया है, जिसमें कंपनियों या उनके एजेंटों को स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों या यहां तक कि उनके परिवार के सदस्यों को उपहार या लाभ देने से प्रतिबंधित किया गया है। इसमें किसी भी प्रकार का आर्थिक लाभ, यात्रा व्यवस्था, आतिथ्य या मौद्रिक अनुदान शामिल है, जब तक कि, नए पेश किए गए अपवाद के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा पेशेवर सतत शिक्षा कार्यक्रम में वक्ता के रूप में भाग नहीं ले रहा हो। यूनिफ़ॉर्म कोड फ़ॉर फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिसेस 2024 दवा उद्योग को विनियमित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो वर्तमान में सार्वजनिक स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालता है। नई व्यवस्था में संहिता के नैतिक जिम्मेवारियों को निभाने ले अलावा अब दवा कंपनियों को ऑडिट की तत्परता भी सुनिश्चित करनी होगी। हालांकि, कंपनियों के लिए इसके प्रावधानों का अनुपालन करने के लिए कोई समयसीमा निर्दिष्ट नहीं की गई है। बहुतों को लगता है कि दवा उद्योग का प्रपंच इतना जटिल है कि उसकी काट निकालना आसान नहीं है फिर भी सरकार के नये कदम का स्वागत ही होगा।