विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। कला-साहित्य के क्षेत्र में कोई घुड़दौड़ नहीं होती। इसमें कोई पहले, दूसरे या तीसरे स्थान पर नहीं होता। हर लेखक का अपना वैशिष्ट्य होता है। इसलिए हमें उनके वैशिष्ट्य अध्ययन करना चाहिए। ये उद्बोधन देश के जाने-माने कवि-चिंतक डॉ. नन्दकिशोर आचार्य ने शहर के प्रबुद्धजन से आकंठ स्थानीय महाराजा नरेन्द्रसिंह ऑडिटोरियम में अभिव्यक्त किए।
अवसर था सिटिजन्स सोसाइटी फॉर एज्यूकेशन, जोधपुर द्वारा कवि-चिंतक डॉ. नन्दकिशोर आचार्य को इस वर्ष के प्रोफेसर डी.डी. हर्ष स्मृति उच्च प्रज्ञा सम्मान -2023 प्रदान करने का। इस अवसर पर उर्दू साहित्यकार अरशद अब्दुल हमीद द्वारा रचित कृति खड़ी बोली की सरहद पर का भी मंचस्थ अतिथियों द्वारा विमोचन किया गया। अरशद अब्दुल हमीद ने इस कृति के माध्यम से डॉ. नंद किशोर आचार्य के उर्दू भाषा एवं साहित्य के विभिन्न आलेखों, विचारों और टिप्पणियों आदि का उर्दू भाषा में अनुवादि किया गया है।
डॉ. आचार्य ने अपने उद्बोधन में कहा कि यह सम्मान जिनके नाम से विभूषित है वह मेरे लिए कृतज्ञता अवसर है। इसके साथ ही उन्होंने उर्दू साहित्य को अपनी पहली पसंद बताते हुए कहा कि वे गालिब को न केवल भारतीय स्तर पर अपितु वैश्विक स्तर पर प्राथमिक रूप से आधुनिक लेखक मानते हैं। उन्होंने कहा कि कला और साहित्य कभी भी दर्शन के मोहताज नहीं होते। दर्शन सिद्धांत की रचना करता है और कला-साहित्य संवेदना को रचते हैं। दर्शन कभी भी किसी मनुष्य पर शत-प्रतिशत लागू नहीं होता। इसलिए हमें कविता का अर्थ नहीं कविता की संवेदना और उसके अनुभव की प्रक्रिया को महसूस करना चाहिए। एक अच्छे शेर को रचने के लिए शाइर को अपने जीवनानुभवों का सारा रस निचोड़ना पड़ता है।
अध्यक्षीय उद्बोधन में राजस्थान रत्न प्रख्यात उर्दू शाइर शीन काफ निजाम ने कहा कि काव्य में नया कुछ नहीं होता। बस नई होती है तो उसके मुहावरों की महक और उससे गुजरने वाला अनुभव और यह असीमित होती है। असल में तो जो आपकी कल्पना है वही सत्य है। आधुनिक साहित्य में सत्य क्या है उसकी आवश्यकता नहीं है सत्य कितना उपयोगी है इसकी तलाश रहती है। उन्होंने चुनाव लड़ना है और शुद्ध के लिए युद्ध जैसी उक्तियों के माध्यम से आजकल शब्दों में जिस प्रकार से हिंसा का प्रभाव नजर आ रहा है – उसके प्रति भी गहरी चिंता व्यक्त की।
मुख्य अतिथि अरशद अब्दुल हमीद ने कहा कि डॉ.नन्दकिशोर आचार्य और शीन काफ निजाम ने अपनी साहित्य साधना के माध्यम से अन्य साहित्यकारों के लिए साहित्य रचने एवं समझे की कठिनाइयों को दूर किया है। इन्होंने कठिन से कठिन अनुशासनों को पानी तरह सहज ग्राह्य बना दिया है।
आयोजन के संयोजक डॉ.ब्रजरतन जोशी ने डॉ. आचार्य के कृतित्व को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. आचार्य ने साहित्य के विभिन्न क्षेत्रों एवं अनुशासनों में अपना अपना मौलिक दिया है। आयोजन का संचालन करते हुए आयोजक संस्था के अध्यक्ष किशन गोपाल जोशी ने कार्यक्रम की अवधारणा से आगंतुकों को अवगत कराया। आयोजन के सह-संयोजक एडवाकेट गिरिराज मोहता ने आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त किया।