हरिदेव जोशी विवि में महिला दिवस पर मुक्त संबोधन सत्र : मीडिया में महिलाओं की आवाज़ के लिए वह ख़ुद आगे आएं

विनय एक्सप्रेस समाचार, जयपुर। महिला अगर मीडिया में आएगी तो वह अपने संघर्ष को वाणी दे सकेगी। मीडिया में महिलाओं के स्पेस को विस्तृत करने की आवश्यकता है। हरिदेव जोशी पत्रकारिता और जनसंचार विश्वविद्यालय में महिला दिवस पर आयोजित मुक्त संबोधन सत्र में विद्यार्थियों ने यह विचार व्यक्त किए।


‘मीडिया में महिलाओं की भूमिका‘ विषय पर आयोजित सत्र में बीए की छात्रा अरुंधति चारण ने कहाकि फिल्मों और टेलीविज़न की प्रोग्रामिंग में जेंडर का अन्तर स्पष्ट नज़र आता है। टेलीविज़न के सोप में प्रगतिशील महिलाओं को विलेन दिखाया जाता है, जो अच्छी बात नहीं है। सिनेमा और टेलीविज़न भी मीडिया का ही हिस्सा है। फादर्स ऑव नेशन की बजाय मदर्स ऑव नेशन की परिकल्पना क्यों नहीं की गई? छात्रा रूपल राठौड़ ने कहाकि घर में हर काम लड़की को बताया जाता है। महिलाओं की ज़िम्मेदारी का घर में बंटवारे में भी लिंगभेद है। यह स्थिति बदलने की आवश्यकता है। छात्रा लिशिका ने कहाकि महिलाओं के लिए एक ही दिन क्यों तय है। महिलाओं को विशेष सुविधा नहीं चाहिए लेकिन न्याय चाहिए। संतोष सोनी ने कहाकि महिला अपना इतिहास खुद बनाती है। इतिहास महिला के इर्द गीर्द घूमता है, वही समाज की धुरी है।
बीए के छात्र विनम्र कूलवाल ने कहाकि महिलाओं को चाहिए कि वह योग्यता के आधार पर अपना स्थान बनाएं जबकि बीए तृतीय सेमेस्टर के विद्यार्थी दीपक सिंह ने कहाकि योग्यता का पैमाना क्या होगा? क्या ऊंटों को हांकने या खेत में काम करने वाली महिला की दक्षता पर आप सवाल कर सकते हैं? छात्रा प्रसिद्धि ने कहाकि महिलाओं को सर्किल आउट नहीं करना चाहिए। यह दिवस औपचारिकता मात्र नहीं रहना चाहिए।


शैक्षणिक परिसर के निदेशक डॉ. अजय सिंह ने कहाकि ऐसे आयोजन से विद्यार्थियों को लाभ मिलता है। इस तरह के आयोजन से विश्वविद्यालय समृद्ध होते हैं। विचारों का प्रकटीकरण करना ही विश्वविद्यालय का काम है। ऐड्जंक्ट प्रोफ़ेसर त्रिभुवन ने कहाकि दुनिया में सबसे अधिक समस्या पुरुषों ने खड़ी हैं और यही अपराधी न्याय के लिए चिल्लाती रहती है। ऐड्जंक्ट प्रोफ़ेसर नासिरुद्दीन ख़ान ने कहाकि महिला दिवस टोकनिज़्म नहीं है। क्या स्वतंत्रता और गणतंत्र दिवस टोकनिज़्म है या यह आज़ादी को याद करने का आयोजन है? संघर्ष के इतिहास को याद करने के लिए महिला दिवस की याद दिलाती है।
फैकल्टी संगीता शर्मा ने कहाकि पत्रकारिता में महिलाओं के आने की वजह है कि वह संवेदनशील होती हैं। पत्रकारिता में सिर्फ भावना के साथ हिम्मत भी चाहिए और वह पत्रकारिता में आगे बढ़ रही हैं। फैकल्टी तसनीम ख़ान ने कहाकि फ़ेमिनिज़्म सिर्फ़ महिलाओं से जुड़ा मुद्दा नहीं बल्कि यह मानवीय भावना है। समानता की बात करना ही महिलावाद है। यह दिन वैचारिक दृष्टिकोण को विकसित करना है। असिस्टेंट प्रोफेसर अनिल मिश्रा ने कहाकि पितृसत्ता साम्प्रदायिक रूप लेकर महिलाओं को शिक्षा से वंचित करती है। युद्ध में अपराध का बदला सबसे अधिक महिलाओं और बच्चों ने चुकाया है।
अकादमिक सलाहकार श्रीमती पूजा सिंह ने कहाकि परिवार और समाज हम सबसे मिलकर बना है। महिलाओं में भी पुरुषवाद पाया जाता है। ऐड्जंक्ट प्रोफ़ेसर संजय शर्मा ने कहाकि प्रयोग के तौर पर जब जनजाति महिलाओं को कैश ट्रांसफर मिलने लगा तो उनमें बहुत प्रगतिशीलता देखने को मिली। प्रकृति ने महिला को ही अपना पार्टनर चुना। महिला के सेंसर में जो क्षमता है वो प्रकृति ने सिर्फ महिला को दी है।


फैकल्टी प्रेरणा साहनी ने कहाकि शिक्षा की टेक्स्ट बुक से लेकर हर रचना में महिलाओं के प्रति पुर्वाग्रह नज़र आता है। उभरती महिला पत्रकारों को चाहिए कि वह लिंगभेद का प्रतिनिधित्व नहीं करें।
ऐड्जंक्ट प्रोफ़ेसर तबीना अंजुम ने कहाकि इस विश्वविद्यालय में बहुत लड़कियाँ पढ़ रही हैं। यह अच्छी बात है। पत्रकारिता की पढ़ाई बहुत ज़िम्मेदारी की बात है। नर्मदा आंदोलन हो या शराबबंदी, हर मुद्दे पर महिलाओं का विरोध देखने में आता है। इसे मीडिया में स्थान मिलना चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन संगीता शर्मा ने किया।