विनय एक्सप्रेस समाचार, जयपुर। कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने कहा कि आदि शंकराचार्य और रामानुजाचार्य ऐसे संत थे, जिन्होंने हिंदू धर्म के पुनरुत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और लोगों को इस संसार में जीवन जीने का सही तरीका बताया। इन्होंने देश की अखंडता और एकता के लिए अमूल्य योगदान दिया है और इनके बताये मार्ग अनंत काल तक भारतीयों के जीवन को प्रेरित करते रहेंगे।
डॉ. कल्ला शुक्रवार को आदि शंकराचार्य एवं रामानुजाचार्य जयन्ती के अवसर पर राजस्थान संस्कृत अकादमी में आयोजित व्याख्यान कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि ये दोनों संत साक्षात् ईश्वर के अवतार हैं, जिन्होंने हमें इस जगत में रहते हुए मोक्ष प्राप्ति का मार्ग बताया। डॉ. कल्ला ने कहा कि आज की दुनिया में लोग अर्थ के लिए जीते हैं और क्रोध, लोभ व मोह में पड़कर जीवन का उद्देश्य भूल जाते हैं। ये संत हमें बताते हैं कि मोक्ष प्राप्त करना व्यक्ति का अंतिम लक्ष्य होना चाहिये। उन्होंने कहा कि आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने का काम किया है, इसके लिए उन्हें सदैव याद रखा जाएगा।
कार्यक्रम में सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के कुलपति प्रो. हरेराम त्रिपाठी ने भगवत्पाद शंकराचार्य का दार्शनिक संसार विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने आदि शंकराचार्य के अद्वैत वेदांत के सिद्धान्तों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने बताया कि शंकराचार्य का मत था कि संसार में ब्रह्म ही सत्य है, जगत् मिथ्या है, जीव और ब्रह्म अलग नही हैं। जीव केवल अज्ञान के कारण ही ब्रह्म को नहीं जान पाता।
प्रो. त्रिपाठी ने कहा कि शंकराचार्य ने चार सिद्ध पीठों का संस्थापना के जरिये भारत देश को एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया है। उन्होंने अपने ज्ञान से पूरे भारत में सनातन संस्कृति के वैभव का जन-जागरण कर समाज को विभिन्न पंथों व विचारों के द्वंद से मुक्ति दिलाई और राष्ट्र में आध्यात्मिक चेतना का संचार किया।
इस अवसर पर श्री लालबहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली में वेद-वेदांग के अध्यक्ष प्रोफेसर जयकान्त शर्मा ने करुणासमुद्र रामानुजाचार्य विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि रामानुजाचार्य ने भक्ति के मार्ग को फिर से स्थापित किया। उन्होंने उनके द्वारा प्रतिपादित विशिष्ट अद्वैत के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि रामानुजाचार्य ने जगत को मिथ्या कहकर उसकी उपेक्षा नहीं की। उनका मानना था कि जगत सत्य है क्यों कि इसका निर्माण पंच महाभूतों से मिलकर हुआ है।
इस अवसर पर आयुर्वेद विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर बनवारी लाल गौड़ ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में दोनों संतों के जीवन दर्शन पर प्रकाश ड़ाला।
कार्यक्रम में राजस्थान संस्कृत अकादमी निदेशक श्री संजय झाला, कला एवं संस्कृति विभाग के संयुक्त शासन सचिव श्री पंकज कुमार ओझा सहित संस्कृत भाषाविद् और शिक्षाविद् और गणमान्य अतिथि उपस्थित थे।