सिंगल सुपर फास्फेट खाद के प्रयोग से सरसों के उत्पादन में होगी बढोतरी

विनय एक्सप्रेस समाचार, भरतपुर। जिले में डीएपी एवं यूरिया की उपलब्धता कम होने के कारण सरसों की बुबाई के समय कृषकों द्वारा अच्छी पैदावर के लिए सिंगल सुपर फॉस्फेट का उपयोग करें। कृषि विभाग के उपनिदेशक सीएल यादव ने बताया कि सरसों की बुबाई के समय आम तौर पर कृषक डी.ए.पी. खाद का प्रयोग करते है, जिसकी उपलब्धता कम है, सरसों की अच्छी पैदावार के लिए गंधक तत्व की आवश्यकता होती है, जो दाने में तेल की मात्रा बढ़ाने के साथ दाने में चमक लाती है। डी.ए.पी. से सिर्फ 46 प्रतिशत फास्फोरस एवं 18 प्रतिशत नाइट्रोजन तत्व मिलता है इसमें गंधक तत्व नहीं होता है।


उन्होंने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों ने अनुसंधान में पाया गया है कि सिंगल सुपर फास्फेट खाद के प्रयोग से सरसों की पैदावार तथा तेल की मात्रा दोनो बढती है। सिंगल सुपर फास्फेट में 16 प्रतिशत फास्फोरस तत्व के साथ 11 प्रतिशत गंधक तत्व मिलता है। सिंगल सुपर फास्फेट का फास्फोरस पानी घुलनशील होने के कारण पौधों को तुरन्त उपलब्ध हो जाता है जबकि डी.ए.पी. का फास्फोरस साइट्रेट में घुलनशील होता है जो भूमि में फिक्स हो जाता है और पूरी मात्रा में पौधों को नहीं मिल पाता जिससे जमीन कठोर हो जाती है।
उन्होंने कृषकों को सलाह दी कि एक बीघा में 40 कि0ग्रा0 सिंगल सुपर फास्फेट पर्याप्त रहता है। इस खाद के साथ 15 कि0ग्रा0 यूरिया प्रति बीघा अंतिम जुताई से पहले खेत में छिडकर जुताई कर दे तथा सुपर फास्फेट खाद मशीन से ओरकर पाटा लगावे इसके बाद कृषक सरसों की लाइनों में बुबाई करें। उन्होंने कहा कि जिले में पर्याप्त मात्रा में सिंगल सुपर फास्फेट खाद उपलब्ध है।