कानों से ही नहीं प्राणों से भी जिनवाणी श्रवण करें- साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा

विनय एक्सप्रेस समाचार, नागौर। जयगच्छीय जैन साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा ने शुक्रवार को कहा कि मनुष्य जन्म प्राप्त करना जितना दुर्लभ है, उससे भी ज्यादा दुर्लभ जिनवाणी श्रवण करना है। क्योंकि सभी मनुष्य इसका श्रवण नहीं कर पाते हैं। वे जयमल जैन पौषधशाला में जयमल जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में प्रवचन सभा को संबोधित कर रही थी। उन्होंने कहा कि जो सुनता है वह श्रावक कहलाता है। श्रोता तीन प्रकार के होते हैं। पहले प्रकार के श्रोता उस चिकने घड़े के समान होते हैं। जिस पर भले ही कितना ही पानी डाल दो एक बूंद भी नहीं टिकती है। वे एक कान से सुनते हैं, दूसरे कान से निकाल देते हैं। दूसरे श्रोता सुनने के बाद उसे कुछ समय तक धारण कर रखते हैं। लेकिन पूरी तरह से आचरण में नहीं उतार पाते हैं। जबकि उत्कृष्ट श्रेणी के श्रोता सुनने के बाद उसे आचरण में भी लेकर आ जाते हैं। हर श्रावक को इसी प्रकार का श्रोता बनते हुए प्रत्येक तत्व को सुनने के बाद उसे समझकर आचरण में उतारना चाहिए। सच्चे श्रावक बनने के लिए श्रावकोचित आचार को आत्मसात करने की आवश्यकता है। जिस प्रकार नल से गिरने वाली पानी की बूंदों से कुछ समय बाद कठोर पत्थर में भी छेद हो जाता है। इसी प्रकार से बार-बार जिनवाणी का श्रवण करने पर कठोर हृदय वाले जीव में भी परिवर्तन आ सकता है। व्यक्ति को कानों से ही नहीं अपितु प्राणों से भी श्रवण करना चाहिए। तभी उसमें परिवर्तन आता है।

जयमल जाप का हुआ अनुष्ठान
प्रवचन की प्रभावना किशोरचंद, पवन, अरिहंत पारख परिवार द्वारा वितरित की गयीं। प्रवचन में पूछे गए प्रश्नों के उत्तर विनीता पींचा, जागृति चौरड़िया, सुनील ललवानी एवं परम ललवानी ने दिए। विजेताओं को नेमीचंद, नरेश चौरड़िया परिवार की ओर से पुरस्कृत किया गया। संचालन संजय पींचा ने किया। आगंतुकों के भोजन का लाभ महावीरचंद, पारस भूरट परिवार ने लिया। दोपहर 2 बजे से 3 बजे तक महाचमत्कारिक जयमल जाप किया गया। इस मौके पर धनराज सुराणा, पी.प्रकाशचंद ललवानी, नरेंद्र चौरड़िया, महेश गुरासा, पार्षद दीपक सैनी सहित अन्य श्रावक-श्राविकाएं उपस्थित रहें।