परिस्थिति नहीं मनस्थिति को बदलें : साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा

विनय एक्सप्रेस समाचार, नागौर। जयगच्छीय साध्वी डॉ.बिंदुप्रभा ने जयमल जैन पौषधशाला में शुक्रवार को प्रवचन में कहा कि संसार संयोग और वियोग का चक्र है। जहां कभी अपने प्रिय, इष्ट, कांत का संयोग होता है। तो उसी का वियोग भी हो जाता है। संयोग से सुख की अनुभूति होती है। तो वियोग मनुष्य को दुखी कर देता है। कभी अनिष्ट का संयोग एक व्यक्ति को व्यथित कर देता है। तो किसी अनिष्ट का वियोग सुखाभास भी करा सकता है। हर साधक का लक्ष्य होना चाहिए कि संयोग और वियोग के घेरे से बाहर निकलकर अयोग की स्थिति तक पहुंचे। जहां मन-वचन और काया रूपी योग को पूर्णत: विराम लग जाए। उन्होंने कहा कि परिस्थिति को बदलना आसान नहीं है। किंतु परिस्थिति के अनुरूप अपने आप को ढ़ालना सरल है। विचारों की धारा को मोड़ देते हुए जिस समय संयोग-वियोग के कारण उत्पन्न सुख-दुख में साधक समभाव रखता है। उस समय उसकी मंजिल निकट आ जाती है। इसलिए परिस्थिति नहीं मन की स्थिति को बदलने की जरूरत है। यह चिंतन करना चाहिए कि जिस किसी का भी संयोग हो रहा है, उसका वियोग एक न एक दिन अवश्य होगा। तो फिर क्यों संयोग के समय खुशी मनाएं और वियोग के समय गमगीन रहें। संचालन संजय पींचा ने किया। प्रवचन की प्रभावना निर्मलचंद, लोकेश चौरड़िया परिवार द्वारा वितरित की गयीं। प्रश्नोत्तरी के विजेताओं को नरपतचंद, भरत चौरड़िया परिवार द्वारा पुरस्कृत किया गया। प्रवचन प्रश्नों के उत्तर मुदित पींचा, हरकचंद ललवानी, हिरल भूरट एवं मंजू ललवानी ने दिए। आगंतुकों के भोजन का लाभ कमलचंद, हर्षित ललवानी परिवार ने लिया। खांगटा से कोठारी परिवार साध्वी वृंद के दर्शनार्थ पधारें। इस मौके पर संतोष चौरड़िया, शांतादेवी ललवानी, रसीला सुराणा, संगीता पींचा आदि उपस्थित थे।