राजस्थानी कहाणी नै नवी जमीन सूंपतो संग्रै : भरखमा

विनय एक्सप्रेस समाचार, नागौर। कोई पाठक कहाणी बांचती बरियां जे कहाणी री दुनिया मांय बैवतो जावै, आंख्यां साम्हीं अेक रील-सी चालबो करै अर पछै बो उण दरसावां मांय लांबै बगत तांई खोयो रैवै, सालां पछै बा पोथी साम्हीं पड़ी दिखै, कोई उणरो नाम लेवै का पछै उण सारू बात करै तो फेरूं बां री छिब मंड ज्यावै, जियां सासरै सूं सालां पछै पी’र बावड़ी छोरी रै मन मांय मांय अतीत रा चितराम मंडबो करै, तो समझो बा कहाणी लांठी होवै।

Dr Jitendra kumar

डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी रै कहाणी संग्रै ‘भरखमा’ री घणी सारी खासियतां रामस्वरूप किसान गिणाई है। बां री आ बात साव साची है कै राजस्थानी रै आधुनिक कहाणी खेतर मांय लांबी अर महानगरीय परिवेस री कहाणियां पैली बार आई है। म्हैं इण मांय आ बात जोड़ूं कै राजस्थानी कहाणी पैली बार राजस्थान री सींव तोड़’र बारै रै परिवेस री कथावां कैवती लखावै। इण संग्रै मांय राजस्थान रो कथ्य ई नईं है। अेक पच्छमी बंगाल री भोम सूं, दूजी मध्यप्रदेश अर तीजी हिमाचल री धरती सूं उपजी है।
महानगरां री आधुनिक जीवण सैली में बरतीजता अर कई तकनीकी सबद जिकां रो उल्थो नीं हो सकै, वै नवी पीढी रा पाठक अर लिखारां सारू साव नवादी चीज है। अै सबद ई कंठी में मोती-सा पोयोड़ा लखावै। बांचती वेळा पाठक नै जाबक ई अबखा नीं लागै। मांडणा मांडती-सी, बैवती-सी भासा में कहाणियां रा दरसाव इयां लखावै जियां कोई चालती गाडी सूं स्हैर रो मिनख खेत अर जंगळ देख राजी होवै अर गांव-ढाणी रो मिनख स्हैर री रचळ-पचळ देख आणंद उठावै। हियै मांय उतरती, चित्त नै बांधती भासा में ठेठ लोक रा कई सबद, मुहावरा अर कहावतां बीच-बीच मांय जीवसोरो कर नाखै। संग्रै री तीनूं कहाणियां में मानवीय प्रेम, करूणा अर बात माथै कायम रैयनै जीवण रो जुद्ध जीतण री बात है। प्रेम आं रै मूळ मांय रैयो है। सनेसो ओ ई जावै कै प्रेम बिना जीवण अर जग सूनो है। राजस्थानी मांय प्रेम रो पर्याय प्रीत है। प्रेम होवै अर प्रीत पाळीजै है। प्रीत रा अै संदेस मिनख रै घमंड, गळतफैमी अर दुनिया री करतूतां नै भूंडता थकां अेक व्हाली दुनिया बणावता निगै आवै। संग्रै री सरूआत में कहाणियां सूं पैली ढोला-मारू रै अेक दूहै सूं बात सरू करीजी है। ओ दूहो प्रेम रूपी देव नै मनावण सारू कथीज्यो मंगळाचार-सो लखावै। दूहो है-
धरती जेहा भरखमा, नमणा जेहि केळि।
मज्जीठां जिम रच्चणां, दई, सु सज्जण मेळि।।
मतलब जिका धरती-सा सहणसील, केळी-सा नमणसील अर मजीठै-सा राचणा है, हे विधाता, अैड़ै प्रेमियां रो मेळ कराई। ओ संग्रै अैड़ै ई प्रेमियां री कथा कैवै।
संग्रै री सिरैनांव अर पैली कहाणी है- ‘भरखमा’। मध्यकालीन साहित्य में नारी अर धरती भरखमा बखाणीजी है। भरखमा धीरता अर सहनसीळता रो गुण है। धीजै रो फळ मीठो होवै, पण जिकै री जूण-जातरा करड़ै संघर्षां मांय कटै, उण जातरी नै आछा-माड़ा लोग हरेक ठौड़ मिलता जावै, पण छेकड़ ‘भरखमा’ री नायिका री जीत उणनै जस दिरवावै।
आं कहाणियां री भासा पाठक नै इण भांत बांध्यां राखै जियां दादी, नानी, मां का गूगल गुरु-सो कोई आपरो सांचो साथी आपनै खुद रै जीवण रो राज बताय’र हळको हुवतो हुवै। धरती मां रो ई नाम है। मां अर बाबो घर, संस्कार, खेचळ रा दो चक्का है, जिणां माथै दुनिया री गाडी गुड़कै। अबखाइयां रै रोड़ां मांय रुकती राह मांय मारगदरसक बणी मां धीरता साथै जगती नै जीवण रो गैलो सुझावै।
‘गंगा दादी’ कद ई नीं भूलै जैड़ो चरित्र है। नाम लेवतां ई आखी कहाणी आंख्यां आगै मंड जावै। कद ई नीं भूलीजण वाळी। राजस्थानी मांय अैड़ै चरित्रां वाळी कहाणियां आई है, पण इणरो अंत इण कहाणी नै सगळां सूं अलायदी ऊभी करै। कहाणी रा नायक दिखण वाळा चरित्र अचाणचक खलनायक बण ऊभा हुवै अर खलनायक दिखती दादी अचाणचक नायक बण ज्यावै। सुखांत अर दुखांत रो अजब मेळ है आ कहाणी। अेक कदैई नीं मिटण वाळो गिरगिराट उण संभ्रांत जोड़ै रै जीव रो जंजाळ बण जावै। उणां री करणी वां नै कचौटती रैवै। मिनख सूं गळती हो ज्यावै, पण गळतफैमी अर झूठ रै परासचित रो मौको ना मिलै, उण मांय बाकी नीं रैवै। बो मर्यै समान ई होय जावै। इण सारू बेबुनियाद इल्जाम लगावण सूं पैलां मिनख नै लाख बार सोचणो चाईजै। गंगा दादी री पीड़ कहाणी रै छेकड़ मांय फगत अेक पैराग्राफ मांय मंडी है, पण ओ पीड़ रो महाकाव्य है। रोवती दादी जद कमलेस नै बतावै उण बगत इण कहाणी मांय पीड़ रो अेक समंदर सुनामी बण पाठक रै अंतस मांय टक्कर मारै अर आंसुवां री झड़ी लाग ज्यावै। हरेक पाठक आईज सोचै स्यात, कै दादी रै साम्हीं इण बात रो खुलासो होवतो, पण जीम्यां पछै चळू होवै। गई सो बावड़ै नईं। पछतावै री लाय मांय भुळसीज्या बिसवास अर महिमा पाठकां सारू अेक सनेसो बण ज्यावै।

विनोद स्वामी : पुस्तक समीक्षक : भरखमा

‘मोटोड़ी छांटां वाळो मेह’ कहाणी मांय जबरो सस्पेस भर्यो है। लेखक नै आधुनिक अर महानगरीय जीवण री घणी चीज्यां अर तकनीकी नाम याद है। बै इण बात री साख भरै कै उणरी सोच रो विस्तार आखै देस नै कवर करै। बो उण मांय रचै-बसै है, पण बीच-बीच मांय आवता ठेठ गाम, खेत अर रेत रा सबद अर मुहावरा इण बात नै पुख्ता करै कै बो जमीन सूं किण भांत जुड़्यो है। माइक अर नीलोफर री प्रीत धरम अर जातपांत नै धत्तो बतावती सेवट आपरो मुकाम पावै। कबीर री ‘सीस उतारे भुंई धरे’ उक्ति नै सांच करती आ कहाणी साबित करै कै मुहब्बत सूं बड़ी कोई पूंजी कोनी।
सेवट इतरो ईज कैवणो चावूं कै राजस्थानी रा नवा लिखारा इण संग्रै नै अवस बांचै। पसवाड़ो पड़्यो-पड़्यो कोई मिनख ईज नीं फोरै, भासा ई फोरै। गैरी नींद मांय ई अर तोड़ाचूंटी मांय ई। ‘भरखमा’ रै मिस डॉ. जितेंद्र कुमार सोनी राजस्थानी कहाणी नै नवी जमीन सूंपै। बा जमीन फगत भावां री नीं, भासा री पण है। राजस्थानी कहाणी अठै आय’र पसवाड़ो फोरती लखावै। राजस्थानी साहित्य री कीरत नै सवायी करती आ पोथी लोगां रै हियै बसैली। अैड़ो भरोसो जतावूं। पोथी मंगवावण सारू आप kathesar.org माथै आर्डर कर सको हो।