‘‘डिजिटल टेक्नोलोजी और असमानता’’ पर संवाद आयोजित

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा में जबरदस्ती टेक्नोलोजी को घुसेड़ने से हमारी असमानता की लड़ाई खड़ी हो गयी है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस असमानता को व्यापक रूप से देखा गया है। यह शब्द थे अजित फाउण्डेशन द्वारा आयोजित संवाद श्रृंखला की मुख्य वक्ता डॉ. रीतिका खेरा के। डॉ. खेरा ने डिजिटल टेक्नोलोजी में षिक्षा, स्वास्थ्य एवं सामाजिक सुरक्षा तीन विषयों पर अपनी बात रखते हुए कहा कि ‘‘आधार कार्ड’’ की अनिवार्यता से पिछड़े वर्ग एवं आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए काफी दिक्कते खड़ी कर दी। इस संदर्भ में उन्होंने कई उदाहरण देते हुए कहा कि सरकार ने मनुष्यता की पहचान को ‘‘आधार कार्ड’’ से जोड़ दिया है। उन्होंने राजस्थान एवं बिहार में हुए सर्वे की जानकारी देते हुए कहा कि खाद्य वितरण प्रणाली में ‘‘आधार’’ की अनिवार्यता से कई जगहों पर मृत्यु भी हुई है। उन्होंने कहा कि जन वितरण प्रणाली मंे टेक्नोलोजी के आने के बाद भी राषन डिलर द्वारा गबन के केस चारो और देखे जा सकते है। टेक्नोलोजी के साथ-साथ भ्रष्टाचार के नए नए तरीके भी सामने आए है जोकि असंगठित वर्ग हेतु बहुत ही मुष्किल पैदा करते है।
डॉ. रीतिका ने कहा कि टेक्नोलोजी से काम प्रफूल्लित हुआ लेकिन यह देखना होगा कि इससे किन लोगों फायदा मिल रहा है। आज भी कई लोग पढे-लिखे नहीं है उनके लिए टेक्नोलोजी के नाम पर सब कुछ ऑनलाईन काम करवाना, टेक्नोलोजी को जबरन घुसेड़ना जैसा है।
उन्होंने शिक्षा पर बात करते हुए कहा कि कोराना काल में लगभग दो साल स्कूले बंद रही। षिक्षा का पूरा ढांचा चरमरा गया। इस दौरान शहरों में केवल लगभग 25 प्रतिशत एवं ग्रामीण क्षेत्र में 8 प्रतिशत ही शिक्षा ले सके। इसी प्रकार कोविड में स्वास्थ्य को लेकर आरोग्य सेतु ऐप डाउनलोड करने हेतु बाध्य किया। वेक्षिन हेतु भी ‘‘आधार’’ की अनिवार्यता को सुनिष्चित करना बहुत ही गलत था।
डॉ. रीतिका ने बताया कि इस प्रकार हमारा डेटा सरकार एवं अन्य लोगों तक पहुंच जाता है जिसका वह इस्तेमाल विज्ञापन आदि भेजने में करते है, तो इस प्रकार हम अपने डिजिटल पदचिन्ह छोड़ रहे है।
कार्यक्रम की अध्यक्ष्यता करते हुए कवि चिन्तक डॉ. नंदकिशोर आचार्य ने कहा कि वर्तमान में ‘‘आधार’’ को मनुष्य का अस्तित्व बना दिया गया हैं। ‘‘आधार’’ को ही मनुष्य की पहचान माना जा रहा है, जबकि होना यह चाहिए कि ‘‘मनुष्य को मनुष्य की तरह व्यवहार में लाना चाहिए।’’ मनुष्य को आंकड़ा मान लिया गया है। आज हमें सोचना होगा कि पारिस्थितिकि की समस्या क्यों है ? इस पर विचार करते है तो पाते है कि प्रत्येक टेक्नोलोजी में कुछ खतरे भी छुपे हुए होते है और कुछ संभावनाएं भी। हमें उसे समझना होगा।
कार्यक्रम के शुरूआत में संस्था समन्वयक संजय श्रीमाली ने संस्था की गतिविधियों के बारे में बताया। डॉ. विक्रम व्यास ने संवाद कार्यक्रम के सार संक्षेप के बारे में जानकारी प्रदान की।