अनुवाद भाषा का नहीं, भावों का हो : संजय पुरोहित

विनय एक्सप्रेस समाचार, त्रिचूर। ‘ भाषा का अनुवाद किसी भी कृति के साथ न्याय नहीं है, एक सच्चे और अच्छे अनुवादक को भाषा नहीं भाव के अनुवाद पर जोर देना चाहिए। भाव और भाषा का सही अनुवाद ही रचना को संवेदना देने में सक्षम रहता है। ‘

ये विचार साहित्य अकादमी, नई दिल्ली से राष्ट्रीय अनुवाद पुरस्कार प्राप्त करने के बाद हुई अनुवादक मीट में राजस्थानी लेखक संजय पुरोहित ने व्यक्त किये। अकादमी ने उनको रमा मेहता के अंग्रेजी उपन्यास ‘ इनसाइड द हवेली ‘ के राजस्थानी अनुवाद ‘ हेली रै मांय ‘ पर दिया है। अनुवादक मीट की अध्यक्षता अकादमी उपाध्यक्ष माधव कौशिक ने की।

पुरोहित ने अपने संबोधन में राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता देने की वकालत की तथा अन्य भाषाओं के लेखकों से इसमें सहयोग मांगा। मीट के आरम्भ में अकादमी सचिव के श्रीनिवास राव ने पुरुस्कृत अनुवादकों का स्वागत किया। इस मीट में 24 भाषाओं के लेखकों की भागीदारी रही।