पीड़ा की पराकाष्ठा में भी जो भाषा आपका साथ नहीं छोड़ती, वह मातृभाषा है – पद्मश्री चन्द्रप्रकाश देवल

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। जैविक जन्म, माता की कोख से होता है लेकिन, सामाजिक-सांस्कृतिक जन्म, मातृभाषा से होता है। यही द्विज होना है। देश भले ही आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है लेकिन, हम राजस्थानियों को 1947से ही गूँगा रख कर, गुलाम बनाए रखा गया है। ये बातें, पद्मश्री चन्द्र प्रकाश देवल ने स्थानीय माहेश्वरी भवन में कहीं। वे यहाँ माहेश्वरी पुस्तकालय की 108वर्ष पूर्ति के उपलक्ष्य में, शतदल अर्पण शृंखला के अन्तर्गत आयोजित कार्यक्रम में, “क्यों जरूरी है मातृभाषा?” इस प्रश्न का जवाब दे रहे थे। उन्होंने कहा कि मातृभाषा, हमारी साँसों जैसी है। मातृभाषा हमारा आवरण है, आचरण है, विवेक है और हमारे जीवित होने का सबूत है।
इस अवसर पर, पूर्व राज्यसभा सांसद एवं राजस्थान विरासत संरक्षण और संवर्द्धन प्राधिकरण के पूर्व अध्यक्ष, ओंकार सिंह लखावत ने कहा कि यह प्रश्न, अत्यन्त कठिन भी है और महत्त्वपूर्ण है। मातृभाषा को भूलने की तुलना, नमकहरामी से करते हुए उन्होंने संविधान की आठवीं अनुसूची में राजस्थानी को सम्मिलित किये जाने की राह में खड़ी, संसदीय बाधाओं की चर्चा की। अपनी जड़ों को पहचानने का आवाहन करते हुए उन्होंने बताया कि हिन्दी की माँ है राजस्थानी।
सुपरिचित कवि, लेखक, समालोचक और गीताञ्जलि के, राजस्थानी गीति अनुवादक, मालचन्द तिवाड़ी ने मातृभाषा को मनुष्य का बुनियादी सरोकार बताते हुए कहा कि संस्कृति का पर्याय है मातृभाषा। अपने होने की अनुभूति, मातृभाषा से ही होती है। मनुष्य की संवेदना, मातृभाषा में ही अधिक प्रखरता और तेजस्विता से व्यक्त होती है। इस अवसर पर उन्होंने विश्वविख्यात भाषाविद् डॉ. सुनीति कुमार च्याटुर्ज्या द्वारा राजस्थानी भाषा के लिए किये गये कार्यों का स्मरण भी किया।
राजस्थान सरकार के सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग के सहायक निदेशक, हींगलाजदान रतनूँ ने कहा कि आज का आयोजन, चिरस्मरणीय रहेगा। युवा कवि कैलाश सिंह रतनूँ ने, डिंगळ की रचना परम्परा का उल्लेख करते हुए, अपनी रचना, शिवार्चन का पाठ किया।
अध्यक्षीय वक्तव्य रखते हुए, वरिष्ठ कहानीकार, राजेन्द्र केडिया ने मातृभाषा की पूजा को भगवान की पूजा के समान बताते हुए, दुःख प्रकट किया कि महानगर में, राजस्थानी घरों के बच्चे अब अंग्रेजी में रोते हैं। संस्कारहीनता की पराकाष्ठा है यह।
पुस्तकालय अध्यक्ष, विश्वनाथ चाण्डक ने सबका स्वागत करते हुए, कार्यक्रम को समर्थन देने के लिए आभार प्रकट किया। माहेश्वरी सभा के सभापति बुलाकीदास मिम्माणी ने धन्यवाद दिया। संचालन, पुस्तकालय मंत्री, संजय बिन्नाणी ने किया।
कार्यक्रम में, शिवकुमार लोहिया, संदीप गर्ग, मुकुन्द राठी, राधेश्याम झँवर, डा. महेश माहेश्वरी, पुरुषोत्तम दास मूँधड़ा, अशोक कुमार द्वारकाणी, सुरेश बागड़ी, राकेश मोहता, आशा माहेश्वरी, अशोक चाण्डक, वरुण बिन्नाणी, नन्दकिशोर सादाणी, नरेन्द्र करनाणी, गिरिराज जोशी, बसन्त मोहता, राजकुमार तिवाड़ी, ओमप्रकाश चाण्डक, महेश एस नारायण, प्रकाश मूँधड़ा, केशव भट्ठड़, नारायण व्यास, अमिताभ माहेश्वरी, सुभाष मूँधड़ा, गणेश चाण्डक, संतोष कोठारी, अरुण राठी, मुकेश बिन्नाणी, आलोक दम्माणी, राजकुमार मोहता, देवकिशन कोठारी सहित अनेक गण्यमान्य जन उपस्थित रहे। कार्यक्रम को सफल बनाने में, अशोक लढ्ढा, जयन्त डागा, राजू चाण्डक, गोपी मूँधड़ा, पीयूष कोठारी, राम मोहता आदि सक्रिय रहे।