रचनात्मकता में है मनुष्य-जीवन की सार्थकता : डीआरएम

निर्मल शर्मा की तीन कृतियों का लोकार्पण

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। वरिष्ठ साहित्यकार निर्मल कुमार शर्मा की तीन कृतियों खोल क़फ़स, दिव्याशा और धुन व्यंजन की का लोकार्पण रविवार को स्थानीय रेलवे प्रेक्षागृह में हुआ। पारायण फाउंडेशन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मधु आचार्य ‘आशावादी” ने की। मुख्य अतिथि उत्तर-पश्चिम रेलवे के डीआरएम डॉ.आशीष कुमार और विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ आलोचक डॉ.उमाकांत गुप्त व वरिष्ठ शायर जाकिर अदीब थे।
डीआरएम डॉ.आशीष कुमार ने इस अवसर पर कहा कि मनुष्य जीवन की सार्थकता रचनात्मकता से होती है। हर व्यक्ति, चाहे वो किसी भी कार्य से जुड़ा हो। अगर रचनात्मक होता है तो न सिर्फ उसके कार्य में कुशलता आती है बल्कि अनुशासन भी आता है। उन्होंने कहा कि इसी रचनात्मकता की वजह से निर्मलजी ने साहित्य को साधा है।
कार्यक्रम अध्यक्ष मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि अपने नाम की तरह निर्मल जी रचना के पेटे निर्मल नहीं बल्कि कई बार सख्त और निर्मम भी हो जाते हैं। यही एक रचनाकार की पहचान भी है कि वह अपने रचे हुए के मोह में नहीं पड़ते हुए वह रचे जो समय की संवेदना को व्यक्त करे। उन्होंने कहा कि मनुष्य पर जन्म के साथ ही कुछ सत्ताएं आधिपत्य जमाना चाहती है, रचनाकार इन सत्ताओं के प्रतिकार का स्वर लिए होता है।
विशिष्ट अतिथि डॉ.उमाकांत गुप्त ने कहा कि तीन कृतियों के माध्यम से निर्मलजी ने यह साबित कर दिया है कि व न सिर्फ निरंतर सृजन कर रहे हैं बल्कि अपने लिखे हुए को आजमाइश में भी डालते हैं। एक रचनाकार की यही पहचान होती है कि वह कभी अपने लिखे को अंतिम नहीं मानता बल्कि एक प्रक्रिया बताता है।
विशिष्ट अतिथि जाकिर अदीब ने कहा कि परंपरा का निर्वहन करते हुए किए जाने वाले प्रयोग हर युग में स्वीकारे गए हैं। इसीलिए साहित्यकार को प्रगतिशील कहा जाता है। निर्मलजी का रचना-संसार नयी धारा की पैरवी करता है, लेकिन परंपराओं से टूटता नहीं है।
इस अवसर पर शायर इरशाद अज़ीज़ ने ‘खोल क़फ़स’ पर पत्रवाचन करते हुए हुए इस संग्रह में शामिल ग़ज़ल व नज़मों को जन की जुबां में कही गई ऐसी रचनाएं माना, जिसे हर व्यक्ति अपने करीब पाता है।
कहानी संग्रह ‘दिव्याशा’ पर पत्रवाचन करते हुए कहानीकार ऋतु शर्मा ने कहा कि ये कहानियां समाज की विसंगतियों को न सिर्फ सामने लाती है बल्कि गहरे कटाक्ष भी करती है, जिससे पढऩे वाले के अंदर भी प्रतिक्रिया जन्म लेती है। बाल कविता संग्रह ‘धुन व्यंजन की’ पर पत्रवाचन में कवि आनंद पुरोहित ‘मस्ताना’ ने कहा कि निर्मलजी की यह कविताएं सिर्फ बच्चों या किशोरों के लिए नहीं बल्कि उन सभी के लिए है जो हिंदी के प्रयोग को लेकर संशय में रहते हैं।
प्रारंभ में स्वागत उद्बोधन कवि-कथाकार संजय पुरोहित ने दिया। आभार वरिष्ठ समाजसेवी आर.के.शर्मा ने स्वीकारा। संचालन पत्रकार-साहित्यकार हरीश बी.शर्मा ने किया। इस अवसर पर शहर के अनेक गणमान्यजन उपस्थित थे।