विनय एक्सप्रेस, आलेख। विष्णु दत्त जी निड़र, दबंग, सहासिक ओर ईमानदार ओफीसर थे विष्णु दत्त जी ईमानदार अधिकारी को आम जनता भी काफी पसंद करती थी। लेकिन संदिग्ध परिस्थितियों में विष्णु दत्त जी ने आत्महत्या कर ली थी। हालांकि अधिकारी की आत्महत्या पर लोगों ने गंभीर सवाल खड़े किए|
उनका खौफ अपराधियों में इस कदर था कि अपराधी उनके जिले में तैनात होते ही भाग जाते थे। यही वजह है वह हमेशा से अधिकारियों के चहेते पुलिसकर्मी रहे है।
विष्णु दत्त जी का मानना था- लातों के भूत बातों से नहीं मानते।
विष्णु दत्त जी के बारे में कहा जाता है कि वह जिस जिले में तैनाती पाते हैं वहां से अपराधी या तो बेल तुड़वाकर जेल चले जाते हैं या फिर जिला छोड़ देते हैं।
कई बार डराने की कोशिशों के बाद भी विष्णु दत्त जी का इरादा कमज़ोर नहीं हुआ। कई वाकये हुए जब अपराधियों पर सख्ती के कारण उनका तबादला भी हुआ, लेकिन उन्होंने कभी भी अपनी शैली में बदलाव नहीं किया|
लेकिन अब यह अधिकारी हमारे बीच नहीं है
विष्णु दत्त जी को अपराधियों के खिलाफ सख्त रवैये के लिए जाना जाता था।
अगर कोई व्यक्ति भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान छेड़ता है तो पूरी व्यवस्था ही उसके खिलाफ हो जाती है।
इनके अलावा भी छोटे-बड़े स्तर पर कितने ही अधिकारियों ने भ्रष्टाचार की मुखालफत करने का खामियाजा भुगता है, कभी अपनी जान देकर तो कभी सिस्टम से प्रताड़ित होकर।
ऐसे में सवाल उठता है कि एक तरफ तो सरकारें भ्रष्टाचार खत्म करने की बात करती हैं, वहीं दूसरी तरफ भ्रष्टाचारियों को क्षय (Shelter) दी जा रही है ? बहरहाल यदि हमें देश से भ्रष्टाचार को मिटाना है तो ईमानदार अधिकारियों का समर्थन करना होगा और सरकारों पर दबाव बनाना होगा ताकि भ्रष्टाचारियों को राजनैतिक समर्थन ना मिल सके।
उन मामलों का भी पता नहीं चलता जिनके बारे में खुलासा करते हुए ये अफसर जान देते हैं।
एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि अब इस देश में ईमानदारी से काम करना कठिन होता जा रहा है.
दरअसल अब मान लेना चाहिए कि भ्रष्टाचार को लेकर समाज और सियासत का पक्का गठजोड़ है। जब तक इस गठजोड़ को नहीं तोड़ा जाएगा, ईमानदार अफसर मारे जाते रहेंगे।
आज की इस व्यवस्था में ऐसे जांबाज और ईमानदार और तथा सजग और कर्तव्यनिष्ठ सिपाही हम लोगों ने खो दिया । सरकार से सी बी आई जांच की मांग जिससे वास्तविकता सामने आये|
आशीष नाथ-अधिवक्ता