मातृभाषा को समर्पित काव्य त्रिवेणी में रसधारा बहीेेे

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। विश्व मातृभाषा दिवस को समर्पित तीन दिवसीय समारेाह के दूसरे दिन आज ‘भाषा’ पर केन्द्रित त्रिभाषा काव्य गोष्ठी का आयोजन वरिष्ठ कवि कथाकार एवं आलोचक कमल रंगा की अध्यक्षता में हुआ।

‘भाषा‘ को केन्द्र में रखकर आज नगर के विशेष आमंत्रित कवि शायरों ने राजस्थानी हिन्दी और उर्दू भाषा में अपनी कविता, गीत, गजल एवं अन्य काव्य उपविधा के माध्यम से मातृभाषा के महत्व को रेखंाकित किया। साथ ही भाषा के वैभव एवं इसके हमारे जीवन में महत्व को भी अलग-अलग अंदाज से उकेरा गया।
प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ के साझा आयोजन की अध्यक्षता करते हुए कमल रंगा ने कहा कि हर कवि शायर मातृभाषा के माध्यम से अपनी काव्य रचना को बेहतर से बेहतर सृजित कर सकता है। साथ ही अपनी संवेदनाओं और अनुभव संसार को एक नई रंगत देते हुए पाठकों से अपना गहरा रागात्मक रिश्ता जोडता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि कथाकार प्रमोद शर्मा ने कहा कि मातृभाषा के माध्यम से रचनाकार अपनी सशक्त अभिव्यक्ति दे पाता हैं जिससे ही रचनाकार की रचना का पाठक को सृजनात्मक सुख देने का काम करता है।
वरिष्ठ कवि शिवशंकर शर्मा ने अपनी कविता के माध्यम से भाषा वैभव को रेखांकित किया। कवि प्रो. नृसिंह बिन्नाणी ने अपनी रचना के माध्यम से मातृभाषा को समर्पित कविता के रंग श्रोताओं से साझा किए तो कवि जुगल पुरोहित ने अपनी रचना को रखते हुए के जरिये मातृभाषा के संबंध में अपनी बात कही। काव्य गोष्ठी में युवा कवि विपल्व व्यास ने अपनी रचना से मातृभाषा और व्यक्ति के रिश्तों को उकेरा।
वरिष्ठ कवि कमल रंगा ने मातृभाषा को समर्पित अपनी रचना के माध्यम से भाषा मान्यता इतिहास को रेखांकित किया तो कवि कैलाश टाक ने मातृभाषा को समर्पित अपनी रचना के माध्य से राजनेताओं को चेताते हुए भाषा की अनदेखी करने का दर्द बयां किया। काव्य गोष्ठी में कवि गिरीराज पारीक ने अपनी नई काव्य रचना को प्रस्तुत कर मातृभाषा और मानवीय सरोकार को सामने रखा। काव्य गोष्ठी में अन्य कवि शायरों ने एक से एक बढ़कर मातृभाषा पर केन्द्रित अपनी काव्य प्रस्तुतियां पेश कर भाषा के वैभव को रेखांकित किया।
प्रारंभ में सभी का स्वागत युवा शिक्षाविद् राजेश रंगा ने करते हुए मातृभाषा राजस्थानी के अधिकाधिक प्रयोग का अनुरोध किया। कवि गिरीराज पारीक ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए कहा कि मातृभाषा राजस्थानी को शीघ्र मान्यता मिलनी चाहिए। कार्यक्रम में मदनगोपाल व्यास ‘जैरी’, मदनमोहन व्यास, भवानी सिंह, अशोक शर्मा, तोलाराम, कार्तिक मोदी, आशिष रंगा, घनश्याम ओझा आदि ने काव्य रस का आनंद लिया व आभार संस्कृतिकर्मी डॉ. फारूक चौहान ने ज्ञापित किया।