विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। संगीत और संस्कृति एक दूसरे के पूरक है। इसलिए संगीत
संस्कृति की अभिव्यक्ति का श्रेष्ठ माध्यम है। ये उद्बोधन साहित्य
अध्येता डाॅ. उमाकांत गुप्त ने परंपरा प्रांगण में उपस्थित सुधि श्रोताओं
के समक्ष अभिव्यक्त किए।
अवसर था – संस्कृति एवं कला के संरक्षण एवं संवर्धन को समर्पित संस्था
परम्परा, बीकानेर द्वारा प्रख्यात लोकअध्येता कीर्तिशेष डाॅ. श्रीलाल
मोहता की पावनस्मृति में आयोजित कला-सृजनमाला के तहत डाॅ.श्रीलाल मोहता
एवं डाॅ.ब्रजरतन जोशी द्वारा सह-संपादित ग्रंथ संगीत: संस्कृति की
प्रकृति पर आधारित मुख्यवक्ता डाॅ. उमाकांत गुप्त के व्याख्यान के आयोजन
का।
मुख्य वक्ता डाॅ.गुप्त ने अपने व्याख्यान में अभिव्यक्त किया कि प्रस्तुत
ग्रंथ संगीत व संस्कृति के प्रति हमारे सवालों का बवाल नहीं करता वरन्
उन्हें प्रामाणिक तथ्यों से शांत करता है। जिज्ञासाओं के नए द्वारा खोलता
है। संस्कृति की मूल प्रकृति संगीत ही है। यह गं्रथ हमारी अनुभूति को मैं
से हम की ओर अग्रसर करता है। मनुष्यों ने भाषा सीखने से पूर्व संगीत को
अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। पृथ्वी पर व्याप्त समस्त जीव जन्तुओं,
पशुपक्षियों, पेड़-पौधों आदि सभी की अपनी-अपनी संस्कृति है और उसका मूल
आधार संगीत है। संगीत ही संस्कृति को निरंतर जीवंत रखता है। उसे आगे की पीढ़ी तक प्रवाहित एवं संवाहित करता है। सभ्यता से सुखों के साधन जुटाए जा
सकते हैं लेकिन हमें आनंद की अनुभूति संस्कृति से ही होती है। इस पुस्तक
में संकलित एक-एक आलेख सुधि पाठक की पठन यात्रा के विश्राम की आनंदशाला
है।
अध्यक्षीय उद्बोधन के तहत डाॅ. ओम कुवेरा ने कहा कि यह गं्रथ हमारी
संस्कृति और संगीत को बाजारवाद से बचाता है और हम इंवेंट मैनेजमेंट की
सुविधा के आगोश में अपनी संस्कृति की मूल भावना से कितना दूर हो रहे हैं
इसके प्रति हमें सजग करता है।
प्रारंभ में प्रस्तुत ग्रंथ के सहसंपादक डाॅ.ब्रजरतन जोशी ने
संगीतःसंस्कृति की प्रकृति ग्रंथ की भूमिका का सारगर्भित वाचन कर देखिया, सीखिया और परखिया की अनुभव यात्रा के साथ इस
पुस्तक के प्रयोजन एवं इसकी सार्थकता की अभिव्यक्ति दी।
आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए एडवोकेट गिरिराज मोहता ने कहा कि
जिस प्रकार से जल की प्रकृति शीतलता है उसी प्रकार संस्कृति की प्रकृति
संगीत है।
आयोजन का संयोजन करते हुए संस्था परिवार के ओमप्रकाश सुथार द्वारा
आगंतकों का स्वागत करते हुए संस्था की गतिविधियों और कार्यक्रम की
अवधारणा की अभिव्यक्ति दी गई।
इस आयोजन में पवन देवाणी, कौशल्या, राजेश, लक्ष्य, उमाशंकर आचार्य, विजय
शर्मा, ललित व्यास, सुशील छंगाणी, लक्ष्मीनारायण चूरा आदि की सक्रिय
सहभागिता रही।