मुख्यमंत्री की भावनाओं के अनुरूप, सरकारी अस्पतालों में मॉनिटरिंग जरूरी, पढ़े वरिष्ठ पत्रकार अनिल सक्सेना का यह आलेख

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विनय एक्सप्रेस, आलेख- अनिल सक्सेना। राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का पहला कार्यकाल हो या तीसरा सभी में उन्होने गरीब को इलाज की सुविधाएं मिले, इस बात का पूरा ध्यान रखा है। गहलोत ने चिरंजीवी योजना का दायरा बढ़ाकर योजना के तहत मिलने वाली राशि को 10 लाख तक कर दी है।

अनिल सक्सेना : लेखक एवं वरिष्ठ पत्रकार

सरकारी अस्पतालों में बिना पैसा दिए पूरा इलाज मिलेगा, काॅकलियर इंप्लांट, ऑर्गन ट्रांसप्लांट भी निशुल्क, बिना कार्ड के पात्र व्यक्ति को मिलेगा फ्री इलाज, सभी सरकारी अस्पतालों मे आउट डोर-इनडोर सुविधा फ्री, 5 लाख का दुर्घटना बीमा और सबसे बड़ी बात यह है कि चिरंजीवी योजना में कलेक्टर को अधिकार दे दिए गये हैं।

अशोक गहलोत : मुख्यमन्त्री, राजस्थान

मुख्यमंत्री गहलोत के द्वारा प्रदेश के आमजन के लिए दी गई ऐतिहासिक चिकित्सकीय सुविधाओं के बाद भी सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या सरकारी अस्पतालों में उनकी भावनाओं के अनुरूप कार्य हो रहा है ? क्या गरीब और मध्यमवर्गीय जनता को इसका लाभ मिल रहा है ?

अभी दो दिन पहले नसीराबाद से मेरे पत्रकार साथी अशोक जैन का मोबाइल आया और मुझे बताया कि जब वे सरकारी अस्पताल में कोविड 19 की रेंडम जांच के लिए पहुंचे तो अस्पतालकर्मियों ने आनाकानी की, जबकी चिकित्सक ने जांच के लिए लिखा हुआ था । पहले तो रेंडम जांच किट के लिए ही मना कर दिया और फिर स्टोर कीपर से बात की तो उसने कहा कि अस्पताल का मुख्य चिकित्सा अधिकारी कहेगा, तभी किट उपलब्ध कराएगा । डाॅ. विनय कपुर को मोबाइल किया तो उन्होने मोबाइल ही नही उठाया। इसके बाद अजमेर मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी डाॅ. इन्द्रजीत सिंह के नाम पर किट उपलब्ध हुआ और फिर जांच हुई।

कल रात को यूथ मूवमेंट के एक पदाधिकारी ने संस्थापक अध्यक्ष शाश्वत सक्सेना को बताया कि उसे पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई है और सरकारी अस्पताल में जैसे ही डिलीवरी हुई उसके बाद रात भर आकर कोई ना कोई अस्पतालकर्मी रूपये की मांग करता रहा ।आपरेशन के नाम पर पैसा लेने की बात तो हर दूसरा बीमार व्यक्ति का परिजन बताता है। कई जगह सत्ताधारी जनप्रतिनिधियों और दूसरे प्रभावशाली लोगों के नाम पर भी सरकारी अस्पतालों में गरीबों का शोषण हो रहा है।

सवाल यह है कि कितने लोग होते है जो प्रभावशाली से संपर्क कर नियमानुसार चिकित्सकीय सुविधा प्राप्त कर लेते है। यह भी ध्यान रखने की बात है कि बीमार व्यक्ति और उसका परिजन भले ही कितना भी शोषण हो फिर भी शिकायत नही करता है क्यों कि उसे डर लगा रहता है कि शिकायत करने पर उसका गलत इलाज कर दिया जाएगा।

चिकित्सक को भगवान का दर्जा दिया जाता है लेकिन इस तरह की घटनाएं होती है तो मन खराब हो जाता है । ऐसा नही है कि सरकारी अस्पतालों में सभी चिकित्सक और दूसरे कर्मी ऐसे ही है । यहां ऐसे भी है जो सच में भगवान का रूप बनकर सच्ची मानव सेवा कर रहे हैं तभी तो आज भी लोग सरकारी अस्पतालों में इलाज के लिए जाते हैं ।

सत्ताधारी राजनीतिक संगठन और जनप्रतिनिधियों को चाहिए कि इस बात की माॅनिटरिंग वे भी करें कि मुख्यमंत्री जी के अनुरूप उनके क्षेत्र में कार्य हो रहा है या नही । इसके साथ ही जिला कलेक्टर के द्वारा जिला स्तर पर एक स्थाई कमेटी बने जो यह देखे कि सरकारी अस्पतालों में सरकार के नियमों के अनुसार आमजन का इलाज हो रहा है या मुख्यमंत्री जी की ऐतिहासिक जनहित की योजनाओं के बाद भी शोषण किया जा रहा है।

आमजन की बुनियादी जरूरतों जैसे पानी, बिजली, शिक्षा, चिकित्सा और स्थानीय निकायों में हो रहे भ्रष्टाचार के कारण सरकार की निंदा होती है और चुनावों में हार-जीत का फैसला भी इसी आधार पर होता है। यह ध्यान रखने वाली बात है इसलिए भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए कोई भी प्रभावशाली राजनीतिज्ञ दखल नही दें ,जो कि अभी चलन में है । मुख्यमंत्री गहलोत की भावनाओं के अनुरूप ही कार्य हो, इस बात की माॅनिटरिंग जरूरी है।