पुनीत द्वारा सृजित प्रकृति काव्य चुनौतीपूर्ण उपक्रम है-डॉ. चारण

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। भारतीय ज्ञान परंपरा में समृद्ध काव्य की विरासत है। खासतौर से जब कोई कवि प्रकृति को केन्द्र में रखकर काव्य सृजन करता है तो वह चुनौतीपूर्ण उपक्रम है। क्योंकि प्रकृति काव्य व्यक्ति केन्द्रित न होकर प्राणी मात्र की वेदना और संवेदना को स्वर देती है। ऐसा ही सृजन उपक्रम युवा कवि पुनीत कुमार रंगा ने अपनी राजस्थानी काव्य पुस्तक ‘लागी किण री नजर’ के माध्यम से किया है। यह उद्बोधन प्रज्ञालय संस्थान द्वारा नागरी भण्डार में आयेाजित पिता-पुत्र की दो राजस्थानी पुस्तकों के लोकार्पण समारोह के मुख्य अतिथि देश के ख्यातनाम नाटककार-साहित्यकार डॉ. अर्जुनदेव चारण ने व्यक्त किए।


डॉ. चारण ने आगे कहा कि पुनीत रंगा अपनी कविताओं के माध्यम से सवाल खड़े करते हैं, जो कि एक सकारात्मक सृजन प्रयास है। इसी क्रम में डॉ. चारण ने कमल रंगा द्वारा सम्पादित बाल संस्मरण की पुस्तक ‘अपणायत रा अलायदा रंग’ को स्मृति को केन्द्र मे रखकर सम्पादित की गई महत्वपूर्ण विधागत कार्य है।

लोकार्पण समारोह के अध्यक्ष राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी के अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने कहा कि पिता-पुत्र की महत्वपूर्ण राजस्थानी पुस्तकों के माध्यम से राजस्थानी सृजन धारा में एक नव-पहल है। जिससे राजस्थानी के प्रचार-प्रसार पर बल मिलेगा।


लोकार्पण समारोह के विशिष्ट अतिथि केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली में राजस्थानी भाषा परामर्श मण्डल के संयोजक एवं वरिष्ठ साहित्यकार मधु आचार्य ने कहा कि पुनीत रंगा की कविताएं सकारात्मक दीठ के साथ नवभाव एवं गहरी संवेदनाओं से गुंथित है। रंगा की कविताएं दार्शनिक दृष्टि के साथ अपने अलग मुहावरें की रंगत रखती है। आचार्य ने आगे कहा कि आज लोकार्पित हुई कमल रंगा की दूसरी पुस्तक ‘अपणायत रा अलायदा रंग’ कथेत्तर साहित्य कि अच्छी पहल है। जिसके माध्यम से तीन पीढ़ियों से बाल संस्मरण को एक साथ पढ़ने का सुखद अनुभव मिलेगा।


प्रारंभ में सभी का स्वागत करते हुए समारोह के स्वागताध्यक्ष ख्यातनाम आलोचक डॉ. उमाकान्त गुप्त ने कहा कि यह समारोह एक नवाचार है। जिसके लिए आयोजक संस्था साधुवाद की पात्र है।


इस अवसर पर कमल रंगा ने अपनी बात रखते हुए कहा कि बाल संस्मरण की इस पुस्तक के माध्यम से प्रदेश की तीन पीढ़ियों के बाल संस्मरण पाठकों को समर्पित हुए है। रंगा ने इस अवसर पर अपने बाल संस्मरण का वाचन किया। इसी क्रम में युवा कवि पुनीत रंगा ने अपनी लोकार्पित कृति से चुनिंदा काव्य रचनाओं का वाचन कर प्रशंसा प्राप्त की।


प्रारंभ में देानों राजस्थानी पुस्तकों का लोकार्पण अतिथियों, रचनाकारों के साथ सुषमा प्रकाशन गु्रप की प्रबंधक श्रीमती सुषमा रंगा ने किया। दोनों लोकार्पित कृतियों पर क्रमशः पत्रवाचन वरिष्ठ साहित्यकारा डॉ संजू श्रीमाली एवं वरिष्ठ आलोचक डॉ. गौरीशंकर प्रजापत ने किया।


इस अवसर पर प्रज्ञालय संस्थान द्वारा अतिथियों का मालार्पण, प्रतीक चिन्ह आदि अर्पित कर सम्मान किया गया। लोकार्पण समारोह में मालचंद तिवाड़ी, डॉ. बृजरतन जोशी, नंदकिशोर सोलंकी, आत्माराम भाटी, हरीश बी शर्मा, अमित गोस्वामी, सागर सिद्दकी, संजय वरूण, डॉ. कृष्णा आचार्य, संजय पुरोहित, रमेश भोजक, डॉ फारूक चौहान, गिरिराज पारीक, सरोज भाटी, मधुरिमा सिंह, डॉ. कृष्णा वर्मा, असीत गोस्वामी, योगेन्द्र पुरोहित, शंभुदयाल व्यास, डॉ रेणुका व्यास, डॉ. अजय जोशी, राजाराम स्वर्णकार, अरूण जे. व्यास, आशीष रंगा, मनमोहन व्यास, गंगा बिशन बिश्नोई, अंकित रंगा, घनश्याम ओझा, तोलाराम सारण, आबिद हुसैन, बी.एल. नवीन, डॉ. चंचला पाठक, हरिनारायण आचार्य, कन्हैयालाल सुथार, इंजि. कासिम अली, विनय थानवी, ओम स्वामी, चन्द्र प्रकाश व्यास, विजय किराडू, जितेन्द्र व्यास, किशन इनखईया, डॉ यश, मालकोश आचार्य, चन्द्रकांत पंवार, पुरूषोत्तम जोशी, अतिम व्यास, अजय आचार्य, मदनमोहन व्यास, मनीष भाटी, सुनील पुरेाहित, शंकरलाल सोनी, चन्द्रशेखर आचार्य, हरि किशन व्यास, गिरधर किराडू, दिनेश श्रीमाली, विजेन्द्र सिंह, महेश कुमार रंगा, आनन्द मस्ताना, योगेश व्यास, डॉ नरसिंह बिन्नाणी, एड. महेन्द्र जैन, कपिला, संजय सांखला, प्रेम नारायण व्यास, डॉ. तुलसीराम मोदी, छगन सिंह, गोपाल महाराज सहित नगर के विभिन्न कला अनुशासनों के गणमान्य लोगों की गरिमामय साक्षी रही। कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने किया एवं सभी का आभार प्रज्ञालय के राजेश रंगा ने ज्ञापित किया।