विनय एक्सप्रेस समाचार, फिल्म समीक्षा- राजेंद्र बोड़ा।
कमाई के झंडे गाड रही यशराज फिल्म्स की ‘पठान’ देश भक्ति की भावना को भुनाती है।
फिल्म में एक कंप्यूटर जनित बलशाली महामानव रचा गया है जो अकल्पनीय करतब दिखाते हुए पाकिस्तान के मंसूबों पर पानी फेरता है। पाकिस्तान हो, कश्मीर हो और एक देशभक्त मुसलमान हो तो दर्शकों को लुभाने का मसाला इससे और बेहतर क्या हो सकता है!
दो पक्ष है भारत और पाकिस्तान। दूसरा पक्ष भारत को समूचा नष्ट करने को आमादा है। दर्शक भावनाओं के जाल में बांध दिया जाता है। उन्हें लगता है वे नायक में अपनी छवि उतारते हुए खुद महामानव बन गये हैं। इस जाल को ऐसा बुना जाता है कि एक कुटिल दुश्मन सामने है। देश का ही एक बली ऐसा भी है जिसे लगता हैं उसके साथ अन्याय हुआ है इसलिए वह अपने ही देश का शत्रु हो गया है। जिस प्रकार ऐसी एक्शन फिल्मों में दुनिया को बचाने का मिशन होता है वैसे ही यहां देश को बचाने का मिशन है। दर्शक को जीतना है और नायक उसे विजय दिलाने के लिए अपनी जान की बाजी लगाए हुए है। परदे पर ऐसा महामानव है जो जीवन में नहीं होता वह सिनेमा के बड़े परदे की फंतासी में ही हो सकता है।
यह फिल्म देखते हुए दंगल के एक ऐसे मंच पर कूद जाइए जहां जबरदस्त कुश्ती दिखाई जाने वाली है। परदे पर मारधाड़ वाले एक्शन के दृश्य हैं जो बड़े परदे पर बच्चों के वीडियो गेम्स की तरह लगते हैं।
यह पलायनवादी मनोरंजन नहीं है बल्कि एक ‘किक’ है जिसे पाने के लिए दर्शक ऊंचे दाम के टिकट खरीद कर सिनेमाघर को जाते हैं। नई नई संपन्नता के बोझ तले दबी नई पीढ़ी के एक वर्ग की उदास, बेजान जिंदगी के लिए शायद यह जरूरी है।
देश में पनपे राष्ट्रवाद की नींव पर खड़ी है यह फिल्म। देशाहंकार अंध-राष्ट्रवाद को हवा देती है। इसमें आतंकवादी है, पाकिस्तान है और कश्मीर है और मारधाड़ का एक्शन है। और क्या चाहिए।
ऐसी फिल्म में अभिनय नहीं होता, शॉट्स होते है। कंप्यूटर जेनरेटेड मारधाड़ के एक्शन होते हैं और होता है सेक्स का तड़का। फिर खेल खत्म पैसा हज़म।