विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। खबर हमारी विश्वास आपका।जनकवि बुलाकीदास बावरा की नौंवी पुण्यतिथि के अवसर पर स्थानीय नरेंद्र सिंह ऑडिटोरियम में पाठकार्पण कार्यक्रम आयोजित किया गया। पारायण संस्थान द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में बुलाकीदास बावरा की नई हिंदी कविताओं का कवि-कथाकार व अनुवादक संजय पुरोहित द्वारा राजस्थानी में अनुवाद ‘ओळूं रो उजास’ और 21 सदी की प्रतिनिधि 22 कृतियों की संजय पुरोहित द्वारा की गई समीक्षा की पुस्तक ‘एक किताबी सफर’ का पाठकार्पण कार्यक्रम हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ रंगकर्मी, पत्रकार व साहित्यकार मधु आचार्य ‘आशावादी’ ने कहा कि बावरा जी के गीत और कविताओं पर शोध किया जाए तो यह पता चलेगा कि उनकी कविताएं उनके समकालीन किसी भी राष्ट्रीय स्तर के कवि से कम नहीं थी। वे स्वभाव से जितने मौन थे, उनके शब्द उतने ही मुखर थे। राजस्थानी में उनकी कविताओं के अनुवाद को उन्होंने समय की जरूरत बताते हुए कहा कि न सिर्फ इससे बावरा जी का साहित्य राजस्थानी के पाठकों को उपलब्ध हुआ है बल्कि अनुवाद की श्रेष्ठ कृति भी सामने आई है। ‘एक किताबी सफर’ को उन्होंने समकालीन आलोचना की कृतियों में श्रेष्ठ बताया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए नागरी भंडार ट्रस्ट के समन्वयक नंदकिशोर सोलंकी ने कहा कि साहित्य-सृजन को पवित्र कर्म मानकर ऋषि की भांति रहने वाले बावरा जी ने कभी भी सराहना के लिए कविता नहीं की। साहित्य के ऐसे साधकों की आज भी जरूरत है, जो पूर्ण मनोयोग से रचें ताकि समाज को दिशा मिले। उन्ही की विरासत को संजय पुरोहित ने आगे बढाया है
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि सितार वादक तथा कला-साहित्य मर्मज्ञ असित गोस्वामी ने कहा कि अध्ययन के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बावरा जी जैसे श्रेष्ठ छन्दबद्धता वाले कवि बहुत कम हुए हैं। उन्होंने कहा कि बावरा जी की छंदमुक्त कविताओं में भी एक लय को महसूस किया जा सकता है। यही अनुवाद में भी नजर आता है। बावरा जी कविताओं में दर्शन है, जो गहरे उतरने के लिए मजबूर करता है। उन्होंने कहा कि पढऩे की प्रवृत्ति ही कहने के लिए प्रेरित करती है। आज का यह दौर जब पढऩे वाले तो कम हैं कि पढ़े हुए पर चर्चा करने की प्रवृत्ति भी खत्म होती जा रही है। ऐसे दौर में ‘एक किताबी सफर’ के माध्यम से संजय पुरेाहित ने पढ़े हुए को आलोचनात्मक नजरिये से लिखने सृजनात्मक कार्य किया है, जो सराहनीय है।
संजय पुरोहित ने अपनी रचना-प्रक्रिया साझा करते हुए कहा कि बावरा जी की कविताओं का राजस्थानी मे अनुवाद करते हुए इस बात की बहुत सावधानी रखी कि कहीं कविताओं का भाव सम्प्रेषित होने से नहीं छूट जाए। यह सही है कि उनके द्वारा प्रयुक्त अनेक हिंदी शब्द राजस्थानी में नहीं मिले, लेकिन अच्छा अनुवाद भावानुवाद ही होता है। इसलिए मैंने इसी शैली को अपनाया। उन्होंने कहा कि पढऩा उन्हें संस्कार में मिला है। जो अच्छा पढ़ता हूं, उस पर लिखने का यह क्रम आगे भी जारी रहेगा।
इस अवसर पर ‘जागती जोत’ के संपादक नमामी शंकर आचार्य ने ‘ओळूं रो उजास’ और साहित्यकार-कवि नगेंद्र नारायण किराड़ू ने ‘एक किताबी सफर’ पर पत्रवाचन किया। लेखक संजय पुरोहित द्वारा इन दोनों पुस्तकों को शिक्षाविद श्री विद्यासागर आचार्य तथा श्री नंदकिशोर सोलंकी को समर्पित करते हुए प्रति भेंट की गई। इसके साथ ही पुस्तक समीक्षा संग्रह में शामिल साहित्यकारों को प्रति भेंट की गई। इससे पहले कार्यक्रम के आरम्भ में डॉ.चेतना आचार्य द्वारा स्व. बावरा जी रचित सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। व्यंग्य लेखक आत्माराम भाटी ने स्वागत-वक्तव्य दिया। आभार डॉ.अजय जोशी ने स्वीकार किया। कार्यक्रम का संचालन हरीश बी.शर्मा ने किया। इस अवसर पर दोनो पुस्तकों के लेखक संजय पुरोहित का विभिन्न संस्थाओं के पदाधिकारीगण द्वारा सम्मान भी किया गया। पारायण फाउण्डेशन के समन्वयक आशीष पुरोहित ने जानकारी देते हुए बताया कि कार्यक्रम में सर्वश्री बुलाकी शर्मा, नदीम अहमद नदीम, कमल रंगा, डॉ.चंचला पाठक, डॉ. गौरीशंकर प्रजापत, इरशाद अज़ीज़, डॉ. मो.फारूख चौहान, धीरेन्द्र आचार्य, जाकिर अदीब, अमित गोस्वामी, कासिम बीकानेरी, रवि शुक्ल , अब्दुल शकूर, मनीष जोशी, मनोज व्यास, दीपक स्वामी, डॉ.चन्द्रशेखर श्रीमाली, अभिषेक आचार्य, विजय व्यास, योगेन्द्र पुरोहित, आरजे रोहित, विपिन पुरोहित, बाबूलाल छंगाणी, वली मो.गौरी, ए.आर.चौधरी, राजाराम स्वर्णकार, प्रेमनारायण व्यास, महेश उपाध्याय, राहुल व्यास, बुनियाद हुसैन ज़हीन, अरूण व्यास, संजय श्रीमाली, मो.गफार, राजेन्द्र जोशी, अशोक रंगा, गोविंद जोशी, डॉ. प्रमोद कुमार चमोली, अरूण जोशी, मुकेश व्यास, विनीता शर्मा, के.के.व्यास, अजय कौशिक, आशा शर्मा, सुनील गज्जाणी, डॉ.वंदना आचार्य, श्रीमती अनिता हर्ष, श्रीमती डिम्पल पुरोहित, अजय राजपुरोहित, बीरबल राम, मुन्नीराम, सुकान्त किराडू सुमित शर्मा सहित विभिन्न क्षेत्रों के गणमान्य जन उपस्थित रहे।