विनय एक्सप्रेस समाचार, आलेख -अनिल सक्सेना। गुलाम नबी आजाद जम्मू-कश्मीर में नई पार्टी बनाने का दावा कर रहे हैं और उनके साथ पूर्व मंत्री सहित कांग्रेस के 5 पूर्व विधायकों ने भी इस्तीफा दे दिया है। लेकिन यह भी तय है कि सोनिया गांधी का इलाज के लिए विदेश जाना और उनके पीछे से इस्तीफा देना राजनीतिक शुचिता की नजरों से तो नही देखा जा सकता है ।* वैसे शुचिता की बात करना ही आज के दौर में बेमानी हो चुका है। आजाद भी क्या करे , अब नई पार्टी बनाकर भाजपा की रणनीति पर काम जो करना है। अब देखते हैं कि आजाद का हाल पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह जैसा होता है या वे नई पार्टी बनाकर भाजपा के साथ जम्मू-कश्मीर पर राज करते हैं।
यहां यह बताना भी जरूरी है कि कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में सोनिया गांधी का कार्यकाल पार्टी के इतिहास में सबसे लंबा रहा है। इन्होने फोर्ब्स की सबसे शक्तिशाली महिलाओं की सूची में अनेकों बार जगह बनाई है। जब सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन सकती थी तब उन्होने खुद प्रधानमंत्री नही बनकर मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनवा दिया ।
इधर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी हिंदु नेता के रूप में देशभर में उभरे । साल 2013 के बाद कांग्रेस का डाउनफाॅल शुरू हुआ । विपक्षियों ने सोशल मीडिया पर राहुल गांधी को मुस्लिम बताना शुरू कर दिया और उनकी इमेज को पप्पू के रूप में प्रचारित किया । कांग्रेस की कथित तुष्टीकरण की नीति को जनता के सामने लाने का कार्य कर यह भी बताया कि सच्चे हिंदुस्तानी तो भाजपाई ही है। उन दिनों सोशल मीडिया पर कांग्रेस की उपस्थिति शून्य थी जिसका फायदा नरेन्द्र मोदी और उनकी टीम ने भरपूर उठाया ।
कुछ कांग्रेसी नेताओं की अपरिपक्वता के कारण शुरू हुआ हिंदुस्तान के दूसरे राज्यों से कांग्रेस का पतन और अब सिर्फ दो राज्यों में ही कांग्रेस सिमट कर रह गई। आज देखा जाए तो कांग्रेस में अशोक गहलोत के बाद के.सी.वेणुगोपाल, अविनाश पांडे जैसे दो-चार ही ऐसे नेता रहे हैं जो कांग्रेस को मजबूत कर सकते हैं। इसमें भी कोई दो राय नही है कि कांग्रेस कभी खत्म नही होगी ।
यह माना जा रहा है कि आज की राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए राजस्थान में गहलोत के बाद कोई नेता प्रदेश में कांग्रेस सरकार को बरकरार नही रख पाएगा। युवाओं में सचिन पायलट लोकप्रिय जरूर है लेकिन वर्तमान में गहलोत के पक्ष में ज्यादातर कांग्रेसी विधायक है । सचिन पायलट को शांति कुमार धारीवाल जैसे दर्जनों वरिष्ठ कांग्रेसी विधायक कभी भी मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार नही करेंगे।
राजनीतिक जानकार यह भी बताते हैं कि गांधी परिवार गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर दूसरे को मुख्यमंत्री बनाने की दिशा में कार्य करते हैं तो राजस्थान में कांग्रेस की सरकार विधानसभा चुनाव से पहले ही ताश के पत्तों की तरह ढह जाएगी। यह भी सच है कि गहलोत कांग्रेस राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के योग्य हैं लेकिन अभी की स्थितियों में गहलोत का प्रदेश को छोड़कर दिल्ली जाना राजस्थान की कांग्रेस सरकार के हित में नही है। आज के दौर में जिस तरह से कांग्रेस नेता एक-एक कर पार्टी को छोड़ कर जा रहे हैं इसमें सबसे बड़ा कारण कांग्रेस केन्द्रीय आलाकमान का कमजोर होना भी है और इसी कारण गहलोत को दिल्ली भेजने के बाद गांधी परिवार राजस्थान में स्थितियों को संभाल ही नही पाएगा।
सच तो यह है कि अभी के दौर में भाजपा में नरेन्द्र मोदी-अमित शाह की तरह मजबूत स्थिति में कांग्रेस में गांधी परिवार नही है । इसका उदाहरण महाराष्ट्र है जहां शाह के एक फोन पर पूर्व मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस को उपमुख्यमंत्री बनना पड़ा जबकी वहां भाजपा के विधायकों की संख्या सबसे ज्यादा है । देखा जाए तो राजस्थान में अंसतोष की बात ही नही उठती अगर कांग्रेस आलाकमान कमजोर नही होता और उनकी निर्णय क्षमता मजबूत होती ।
कांग्रेस में रहे और अब भाजपा नेता असम के मुख्यमंत्री हिमंत बस्वा सरमा ने कहा कि गुलाम नबी आजाद और मेरे लिखे गए पत्र में काफी समानता है । उन्होने कहा कि सबको पता है कि राहुल अपरिपक्व और अप्रत्याशित नेता है। सोनिया गांधी ने अब तक बस अपने बेटे को ही आगे बढ़ाने का काम किया है, जो अब तक विफल रहा ।
सवाल यह है कि क्या राजस्थान से अशोक गहलोत को हटाकर राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का फैसला वर्तमान परिस्थितियों में प्रदेश के लिए गांधी परिवार का अपरिपक्व फैसला नही होगा ? क्या गांधी परिवार विधानसभा चुनाव से पहले ही राजस्थान में कांग्रेस की सरकार को गिराने का कार्य करना चाहेंगे ? वैसे यह भी तय है कि गांधी परिवार के द्वारा कांग्रेस की कमान छोड़ने के बाद उनके संकट और बढ़ने लगेंगे । वहीं गांधी परिवार से अलग राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस एकबार फिर टूटेगी ।
कांग्रेस की कमान गांधी परिवार के पास होने के कारण अभी संकट की घड़ी में पूरी कांग्रेस गांधी परिवार के साथ खड़ी दिखी लेकिन गांधी परिवार से अलग कमान देने पर स्थितियां बदल जाएगी । दूसरी ओर कांग्रेस को एकबार फिर टूटता हुआ नही देखना चाहते हैं तो राहुल गांधी को चाहिए कि वे राष्ट्रीय अध्यक्ष बने या अपनी बहन प्रियंका को कांग्रेस की कमान सौंपे और अशोक गहलोत, अविनाश पांडे, के.सी.वेणुगोपाल जैसे दूसरे अन्य नेताओं की सलाह से पार्टी को नये सिरे से देश भर में मजबूत करे ।
वहीं अगर गांधी परिवार सच में वंशवाद के आरोपों को खत्म कर कांग्रेस की कमान दूसरे को सौंपना चाहते हैं तो कुशल संगठक के.सी.वेणुगोपाल या अविनाश पांडे जैसे किसी अन्य भरोसेमंद योग्य नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर संदेश देने का कार्य करे । इससे राजस्थान में अभी कांग्रेस सरकार बनी रहेगी और भरोसेमंद नेता राष्ट्रीय अध्यक्ष बनकर उनके निर्देशों पर कांग्रेस को मजबूत करने का कार्य भी कर सकेगा। शर्त यह भी है कि कांग्रेस में नये युवाओं को आगे लाने का कार्य भी किया जाए । गांधी परिवार से अलग का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर वे अप्रत्यक्ष रूप से अपनी कमान कांग्रेस पर बनाए रखने का कार्य भी कर सकते हैं। इस सबके बाद अब भी सवाल यही है कि क्या वर्तमान दौर में गांधी परिवार को परिपक्व फैसला लेने की जरूरत नही है ?