विनय एक्सप्रेस आलेख, मनोज व्यास।
बीकानेर के प्रसिद्ध ज्योतिष आचार्य एवं पंडित मनोज व्यास अपने इस आलेख से श्री कृष्ण जन्म अष्टमी मनाने को लेकर स्थिति को क्लियर किया है। पढ़े उनका यह आलेख :
वैष्णवों और स्मार्तों के व्रत में फर्क
प्रायः पंचांगों में भगवान विष्णु से जुड़े एकादशी या जन्माष्टमी जैसे व्रत त्योहार स्मार्त जनों के लिए एक दिन पहले और वैष्णव लोगों के लिए दूसरे दिन होता है. इसी तरह स्मार्त जन यदि अर्ध्दरात्रि को अष्टमी पड़ रही हो तो उसी दिन जन्माष्टमी मनाते हैं. जबकि वैष्णव संन्यासी उदया तिथि जन्माष्टमी मनाते हैं एवं व्रत भी उसी दिन रखते हैं.
धर्मराज सावित्री से कहते हैं : “ भारतवर्ष में रहनेवाला जो प्राणी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का व्रत करता है वह १०० जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है |”
चार रात्रियाँ विशेष पुण्य प्रदान करनेवाली हैं
१ )दिवाली की रात २) महाशिवरात्रि की रात ३) होली की रात और ४) कृष्ण जन्माष्टमी की रात इन विशेष रात्रियों का जप, तप , जागरण बहुत बहुत पुण्य प्रदायक है |
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा जाता है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान,नाम अथवा मन्त्र जपते हुए जागने से संसार की मोह-माया से मुक्ति मिलती है। जन्माष्टमी का व्रत व्रतराज है। इस व्रत का पालन करना चाहिए।(शिवपुराण, कोटिरूद्र संहिता अ. 37)