सीने में जलन, आंख में तूफान सा क्यू है ? भाग 2 – पढ़िये वरिष्ठ आईएएस नविन जैन का विशेष आलेख

विनय एक्सप्रेस आलेख -नविन जैन। उसके आने की खबर लगते ही उसका छोटा भाई भी भागा हुआ आएगा और उसके पांव छूकर आंखों ही आंखों में पूछेगा कि भैया क्या मेरे लिए भी कुछ लाए हैं I बैग के पॉकेट में से एक नीले रंग का डब्बा निकालकर जब वह घड़ी खुद अपने हाथों से भाई की कलाई पर बांध देगा तो उसे लगेगा मानो बड़ा भाई होने के फर्ज की एक और किस्त अदा कर रहा है I

उसके आगे की कल्पना भी दिमाग सोच ही लेता है और उधर भाई मन ही मन में अंदाजा लगा रहा है कि घड़ी कितनी महंगी होगी I सब लोग हमारी तरह इतने भाग्यशाली नहीं है कि एक मिनट में स्मार्टफोन पर किसी शॉपिंग साइट पर जाकर मॉडल नंबर डालकर सारी डिटेल निकाल ले और फिर सामने वाले आदमी के प्यार की गहराई का अंदाजा लगा सके I तोहफा कुछ भी हो, छोटा भाई तो इसी बात से खुश होगा कि उसके बड़े भाई ने शॉपिंग के समय उसका ध्यान रखा और उसके लिए उसकी जरूरत की चीज लाकर दी है I अब वह समय पर खेत में जा सकता है जहां उसका मालिक उसे हमेशा देर से आने के लिए कोसता रहता है I भाई को भी पता है कि उसका छोटा भाई बहुत समझदार है और खेत में काम करते समय घड़ी को मिट्टी और पानी से बचाने के लिए उसे अपनी जेब में सुरक्षित रख लेगा I अच्छे घरों में पैदा होने वाले किस्मत वाले लोगों को यह सब ज़ददोजहद कैसे पता होगा – जिनके पास हर मौके के लिए अलग घड़ी होती है और जिनका समय हमेशा अच्छा चल रहा होता है .

 

बस में सफर करते समय पूरा समय वही सोचता रहता है कि गांव जाकर उसे मिली हुई तीन दिन की छुट्टी का इस्तेमाल वह किस तरह से करने वाला है I कुछ पुराने साथी भी हैं जिन से मिलना है और उन्हें बताना है कि अब वह शहर में सेट हो गया है और 6 लोगों के साथ मिलकर एक 10 फुट बाय 10 फुट की आरामदायक “हवेली” में रहता है I 7 बजते ही शहर की लोकल बस में टंग जाता है और फैक्ट्री में पहुंचकर केमिकल के साथ अपने खून को मिलाकर तिल-तिल अपने जीवन को इसी आशा में बिता रहा है कि किसी दिन हालात इतने ज्यादा सुधर जाएंगे कि वह गांव लौटेगा और फिर उसे दिवाली का इंतजार नहीं करना पड़ेगा अपने घरवालों से मिलने के लिए I बस में उसकी एक आंख लगातार उसके बैग पर है जिस की एक तरफ की जेब में माउंटेन ड्यू की पुरानी बोतल में पानी भरा हुआ है और उसका मन कितना भरा हुआ है कि पानी की बोतल का ढक्कन बार बार खोलने पर भी उसका ज्यादा पानी पीने का मन नहीं कर रहा है I अपने बैग के इधर उधर हो जाने के डर से बाथरूम का इस्तेमाल करने भी नहीं जा रहा है और जब कोई भरोसे का आदमी दिखाई दिया तो उसे बैग की जिम्मेदारी बता कर निवृत्त हो पाया I उसे पता है कि इस बस से उतर कर कुछ घंटों का इंतजार करने के बाद एक और टूटी सी लोकल बस लेकर उसे अपने गांव तक जाना है और उस बस में उसे कुछ अपने गांव के लोग भी मिलेंगे और फिर सब लोग एक दूसरे के बैग की तरफ देखेंगे और तुलना करेंगे कि आखिर पिछले एक साल में किस का बैग कितना बड़ा हो पाया है I भला हो उसके मालिक का जिसने पिछले त्यौहार पर अपने सभी मजदूरों को काले रंग का यह बैग बांटा था और उसके घर वाले इस बैग को देख कर खुश होंगे और अगर जरूरत लगी तो वे इस बेग को अपने घर पर ही छोड़ देगा और फिर से वही पोटली लेकर शहर में आ जाएगा ताकि फिर से उसे बैग में बदल सके I

उसे इस बात का पूरा विश्वास था कि उसके घरवाली ने दिवाली मनाने का इंतजाम कर लिया होगा और बल्लू कुम्हार से कुछ दिए वह ले आई होगी। लक्ष्मी माता की फोटो वाला एक कैलेंडर बहुत दिनों से घर की रसोई की एक दीवार पर लगा है और कितने सालों से उसी की पूजा वह लोग करते आ रहे हैं I बहन आसपास के पेड़ पौधों से इतने फूल तो इकट्ठे कर ही लेगी के ताजा माला बन जाए I आम के पत्तों की सुतली में डालकर बंदनवार पिताजी हर साल की तरह बना लेंगे जिससे घर की चौखट पर लक्ष्मी माता दर्शन देने आए और परिवार खुशहाल हो जाए I घर के पास ही सत्तू बनिए की दुकान से एक फुलझड़ी का पैकेट बेटे को भी दिलवा दूंगा ताकि वह भी दिवाली के दिन पटाखे छोड़ सके और उसके छोटे-छोटे दोस्तों में उसकी रेपुटेशन बनी रहे I इस बार वे फिर से बड़ी चॉकलेट और रसगुल्ला भी मांग सकता है परंतु लड्डू तो इस बार दिलवाना ही है I यह बात सोचते हुए उसने मन में दृढ़ निश्चय किया की बच्चे को दिवाली पर कुछ मीठा खिला कर मानूंगा I पिताजी को गुड पसंद है और जब सत्तू बनिए से दीए में डालने के लिए तेल आएगा तो 200 ग्राम गुड़ भी आ ही जाएगा I यह सोचते हुए उसे लग रहा था कि उसका जीवन इतना खराब भी नहीं है और उसमें पिछले कुछ सालों में कुछ तरक्की तो कर ही ली है I

इस संतोष के साथ ही उसने अपनी जेब से बीड़ी निकाली और लंबा कश खींच लिया I उसे इस अंदाज में देखकर उसकी तुलना किसी भी एक बड़े बहुत बड़े उद्योगपति से की जा सकती है जिसने अभी अभी एक बहुत बड़ी कंपनी का टेकओवर किया हो I लेकिन एक बात तो है कि वह उद्योगपति अभी भी संतुष्ट नहीं हुआ होगा I उसकी दिवाली की शॉपिंग हमारी कहानी के हीरो की शॉपिंग से अलग होगी I वह केवल कंपनी थोड़ी खरीद रहा है वह तो उस कंपनी के साथ उस में काम करने वाले जाने कितने ही मजदूरों के भविष्य, सपने, अरमान भी खरीद रहा होगा I उसके दिमाग में यह लिस्ट बिल्कुल तैयार थी कि वह अपने साथ लाए हुए सामान में से कौन-कौन सा सामान अपने घर वालों के इस्तेमाल के लिए छोड़ कर चला जाएगा और खुद शहर में जाकर थोड़ा सा संघर्ष और कर लेगा क्योंकि क्या फर्क पड़ता है अगर फिर से वही से शुरुआत करनी पड़ जाए जहां से उसने कुछ साल पहले गांव को छोड़कर संघर्ष करना शुरू किया था I

जीवन सभी के लिए सूरज बडजात्या और करण जौहर की फिल्मों की तरह चमचमाता नहीं होता, वो बहुत सारे मेहनतकश और संघर्ष करते लोगो की आँखों में धसे सपनो की तरह झिलमिल करता श्याम बेनेगल की आर्ट सिनेमा का कोई बेचारा पात्र होता हैI सूरज बडजात्या और श्याम बेनेगल के सिनेमा के दो अलग-अलग जीवन और पात्र दो अलग-अलग भारत को भी दिखाते है I

अब दिवाली तो दिवाली है, सूरज बडजात्या-करन जौहर की हो या फिर श्याम बेनेगल की। सबको थोड़ी या ज्यादा सही पर खुशी और उत्साह दे ही जाती है I