विनय एक्सप्रेस विशेष आलेख । असंख्य राजस्थानियों की धड़कनों के प्रतिनिधि गीत ‘धरती धोरां री’ तथा ‘पातल‘र पीथळ’ के रचयिता साहित्य मनीषी, महाकवि श्री कन्हैयालाल सेठिया राजस्थानी, हिन्दी, उर्दू व अंग्रेजी के कालजयी साहित्यकार हैं। आपने अपनी रचनाओं के माध्यम से देशभक्ति, गाँधी दर्शन, राजस्थानी संस्कृति, सामाजिक विषमताओं, आमजन की परिवेदनाओं का सजीव चित्रण किया। सेठिया जी समाजसेवी, स्वतंत्रता सेनानी, मानवीय मूल्यों के प्रबल समर्थक भी थे। आप राजस्थानी भाषा को संवैधानिक मान्यता दिलाने के लिए आजीवन प्रयासरत रहे।
श्री कन्हैयालाल सेठिया का जन्म 11 सितम्बर 1919 को सुजानगढ़ में तथा निधन 11 नवम्बर 2008 को कोलकाता में हुआ। आपके राजस्थानी में 16, हिन्दी में 18 व उर्दू में 2 ग्रंथ प्रकाशित हैं। राजस्थान परिषद, कोलकाता द्वारा आप द्वारा रचित समग्र साहित्य को चार खंडों में प्रकाशित किया गया है। आपकी रचनाओं के अनेक भाषाओं में अनुवाद हो चुके हैं। आपकी सुदीर्घ साहित्य-यात्रा के पड़ाव सदैव समसामयिक परिवेश से जुड़े रहे हैं। महात्मा गाँधी के आदर्शों को आत्मसात कर सेठियाजी ने शोषित वर्ग के पक्ष में आवाज़ उठाई। तत्कालीन रियासती शासन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों का उत्पीड़न देखकर वे अत्यधिक विचलित हुए और सामंतशाही का विरोध करने का संकल्प ले लिया।
सुजानगढ़ में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत सेठियाजी आगे की पढ़ाई हेतु कलकत्ता चले गए। साहित्य के प्रति आपकी रुचि छात्र जीवन से ही थी व सन् 1941 में प्रकाशित आपकेे पहले हिन्दी काव्य-संग्रह ‘वनफूल’ ने आपको साहित्य जगत में एक संवेदनशील कवि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। उनकी राजनैतिक चेतना सन् 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में अधिक मुखरित हुई। ‘कुण जमीन रो धणी’ कविता में आपने कृषक समुदाय की पीड़ा को वाणी दी। आपकी राजस्थान के नवनिर्माण में भी महती भूमिका रही है। सामाजिक उत्थान की दिशा में भी सेठियाजी ने अनुकरणीय कार्य किये हैं। अस्पृश्यता का उन्होंने कड़ा विरोध किया। उनके भगीरथ प्रयासों से पेयजल समस्या, अकाल समस्या, वृक्षारोपण कार्य आदि के समाधान में काफी सहायता मिली। भारतीय साहित्य-संस्कृति के उन्नयन में सेठियाजी का योगदान अविस्मरणीय है। शिक्षा के क्षेत्र में भी सेठियाजी ने अतुलनीय कार्य किया व अनेक शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में उनकी महती भूमिका रही।
डॉ. लक्ष्मीमल्ल सिंघवी के शब्दों में- श्री सेठियाजी एक श्रेष्ठ कवि, संवेदनशील सर्जक ही नहीं, यशस्वी लोकसेवक भी हैं। हमारे देश के स्वतंत्रता-संग्राम के अंतिम चरण में वे सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हुए। उन्होंने कलकत्ता मेंं अपनी ग़द्दी मेें कतिपय क्रान्तिकारियों को प्रश्रय भी दिया। राजस्थान के देशी राज्यों के विलय और एकीकरण के समय उन्होंने महत्त्वपूर्ण रचनात्मक भूमिका निभाई। विकास के कार्यक्रमों मेें, चाहे वे कार्यक्रम शिक्षा के क्षेत्र में हों, चाहे ग्रामीण विकास के क्षेत्र में हो, चाहे राजस्थान नहर के विस्तार के निमित्त हाें और चाहे पर्यावरण और वृक्षारोपण के अभियान मेंं, श्रीयुत सेठियाजी ने सदैव हरावल में रहकर सशक्त और ओेजस्वी नेतृत्व दिया है। राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता के लिए वे सम्पूर्णतया सन्नद्ध रहे हैं। जब राजस्थान के निर्माण के बाद उन्होंने अपना सुविख्यात बोधगीत धरती धोरां री लिखा तो उन्होंने सदा के लिए हर राजस्थानी के हृदय में अपने लिए एक विशेष स्थान आरक्षित कर लिया। वे भावों के सागर में पनडुब्बी हैं, शब्दों और अर्थों को एकसाथ पिरोनेवाले कलाकार हैं और मनुष्यता के तथा करुणा और प्रेम के दार्शनिक हैं। राजस्थानी, हिन्दी और उर्दू तीनों भाषाओं का प्रयोग उन्होंने अप्रतिम सामथ्र्य और अधिकार के साथ किया है और अभिव्यक्ति को कई नए आयाम दिये हैं।
श्री कन्हैयालाल सेठिया के सृजनात्मक साहित्य में भारतीय मनीषा की सार्थक अभिव्यक्ति मिली है। मनीषी साहित्यकारों में उनका वरिष्ठ स्थान है। उनका साहित्य एक ओर जनजीवन से गहराई के साथ जुड़ा है, दूसरी ओर भारतीय चिन्तन और दर्शन का मर्म ही उनके साहित्य का अन्तरंग अन्तस्थल है। वाक् और अर्थ सम्पृक्त होकर श्री सेठिया की साहित्य-यात्रा को जनचेतना के जीवन्त यथार्थ की वीथियों में ले जाते हैं और उतने ही सहज रूप से सौन्दर्य-बोध के उत्तुंग गिरिशृंगों पर और तत्त्व-दर्शन के महासमुद्र की अतल गहराईयों तक। उनका काव्य समय के प्रवाह पर मनुष्य-चेतना का सेतु है। गागर में सागर भरकर श्री सेठिया की कविता जब जीवन के पनघट पर खड़ी होती है तो लगता है कि मनुष्य के अभ्यंतर का रहस्य मूत्र्त होकर आपसे साक्षात्कार कर रहा है। मनुष्य के अभ्यंतर की छवि के नखचित्रों की शोभायात्रा श्री सेठिया की एक अद्वितीय उपलब्धि है।
सेठिया जी ने ‘पातल‘र पीथळ’ कविता में महाराणा प्रताप के संघर्ष का मार्मिक चित्रण किया है- ‘अरे घास री रोटी ही जद वन बिलावड़ो ले भाज्यो/नान्हो-सो अर्मयो चीख पड़्यो, राणा रो सोयो दुख जाग्यो/हूं लड़्यो घणो हूं सह्यो घणो, मेवाड़ी मान बचावण नै।’ राजस्थान की महिमा का गुणगान करते हुए वे ‘धरती धोरां री’ कविता में लिखते हैं- ‘आ तो सुरगां नै सरमावै, ईं पर देव रमण नै आवै, ईं रो जस नर नारी गावै, धरती धोरां री!’। ‘जलम भौम’ कविता में उन्होंने लिखा-‘ईं धरती रो रुतबो ऊँचो, आ बात कवै कूंचो कूंचो’। वहीं ‘चेतावणी’ कविता में वे कहते हैं-‘मायड़ भासा बोलतां/जिण नै आवै लाज/इस्या कपूतां स्यूं दुखी/आखो देस समाज’। ‘पुरुषार्थ’ कविता में वे मनुष्य को कर्मठ बनने का आह्वान करते हैं-‘कुछ भी हो प्रारब्ध भले ही, तुम अपना पुरुषार्थ न हारो। बाधाएँ आएँगी लेकिन, निर्भय हो उनको ललकारो’। ‘निग्र्रन्थ’ श्री सेठियाजी के दार्शनिक काव्य की श्रेष्ठ उपलब्धि है। ‘अहिंसा’ कविता में अहिंसा की परिभाषा देते हुए कवि ने सन्दर्भ की सम्पूर्णता का निर्वाह किया है-’नहीं है/हिंसा का/नकारात्मक बोध/अहिंसा/एक मौलिक शोध/चिन्त्य है जिसमें/दृष्टि से परे/दर्शन/जीवन से परे/आत्मा/जिसकी मीमांसा/अनेकान्त/भूमिका/सर्वोदय!’। ‘ताजमहल’ ग़ज़ल में वे लिखते हैं-‘सहर के दामन में गिरा अख़्तर है ताज/दरियाए-जमन की नथ का गुहर है ताज’।
महाकवि श्री सेठिया को अनेक पुरस्कारों-सम्मानों से नवाजा गया। उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा मूर्तिदेवी पुरस्कार, हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सर्वोच्च सम्मान ‘साहित्य वाचस्पति’, मेवाड़ फाउंडेशन द्वारा महाराणा कुंभा पुरस्कार, राजस्थान फाउंडेशन द्वारा ‘प्रवासी राजस्थान-गौरव’ सम्मान, केन्द्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली, राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर सहित अनेक संस्थाओंं द्वारा पुरस्कृत व सम्मानित किया गया। भारत सरकार के फिल्म डिवीजन ने ‘पदचापः प्रज्ञापुरुष की’ नाम से आपके व्यक्तित्व-कृतित्व पर फिल्म बनाई व यू.एस. कांग्रेस ऑफ लाइब्रेरी ने श्री सेठिया को संसार के अतिविशिष्ट कवियों की सूची में स्थान दिया। आपकी कविता ‘धरती धोरां री’ पर अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त निदेशक गौतम घोष द्वारा निर्देशित वृत्तचित्र पर ‘स्वर्ण कमल’ सम्मान मिला। एच.एम.वी. द्वारा महान् गायक मोहम्मद रफी की आवाज़ में ‘धरती धोरां री’ की रिकॉर्डिंग की गई। राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर द्वारा श्री सेठिया के जन्मशती वर्ष 2019 के उपलक्ष्य में अकादमी की राजस्थानी भाषा की मासिक पत्रिका ‘जागती जोत’ में उनके व्यक्तित्व-कृतित्व पर विशेषांक निकाला गया।
अनेक मूर्धन्य मनीषियों ने आपके साहित्य-कर्म की प्रशंसा की है। श्री रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा-‘आपकी कविताएं आनंद देती हैं और हिन्दी के भविष्य के विषय में आशा और उत्साह’। डॉ. रामकुमार वर्मा ने लिखा- ‘आपकी रचनाओं में जितनी सरसता है, उतनी गहराई भी और प्रवाह तो गंगा की धारा की भांति है’। श्री सुमित्रानंदन पंत ने लिखा था-‘आपकी कविता तथा कला का मणि-कांचन संयोग मुझे बहुत पसंद आया। ऎसे संयोजित रूप से अपनी भावनाओं तथा चिंतन स्फुरणों को काव्याभिव्यक्ति देकर आपने रचना सौष्ठव का अत्यंत सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया है।’ डॉ. हरिवंशराय बच्चन के शब्दों में-‘आपकी कविता क्या मंत्र ही हैं ये- छोटे-छोटे सूत्रों में जीवन का गहन रहस्य’।