जो अन्याय का विरोध कर सके वही युवा है : डाॅ. नंदकिशोर आचार्य

मरू-मंथन शिविर में युवाओं के साथ डाॅ.नंदकिशोर आचार्य ने किया संवाद

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर। ‘‘जो अन्याय का विरोध कर सके वही युवा है। आप जहां भी है, जिस परिस्थिति में हैं वहीं से अन्याय का विरोध करने के लिए तेैयार हो सकते हैं।’’ ये उद्बोधन सुप्रसिद्ध कवि-चिंतक डाॅ.नंदकिशोर आचार्य ने उरमूल सीमांत बज्जू में युवावर्ग के साथ मुख्य वक्ता के रूप में संवाद स्थापित करते हुए व्यक्त किए।

अवसर था – उरमूल सीमांत, बज्जू द्वारा डाॅ. आचार्य के साथ सीमांत कार्यालय बज्जू में डेजर्ट रिसोर्ट सेन्टर और उरमूल सीमांत बज्जू द्वारा सहआयोजित ‘मरू मंथन’ शिविर में सहभागी विभिन्न राज्यों से आए युवावर्ग के बौद्धिक अभिमुखीकरण के तहत ‘समाज विकास में युवाओं की भूमिका’ विषयक संवाद का। अपनी तरह के विशिष्ट आयोजन में विभिन्न राज्यों से आए युवावर्ग के साथ डाॅ. आचार्य ने जिस तरह से सहज एवं तथ्यपरक संवाद स्थापित किया उससे युवाओं की जिज्ञासाओं को अभिव्यक्त होने का सार्थक अवसर बन सका।
डाॅ. आचार्य ने अपने वक्तव्य में कहा कि युवा शब्द का समाज विकास की दृष्टि में केवल जैविक युवा होनेे अथवा युवावय मात्र से अभिप्राय नहीं है। हम जिस समाज में रहते हैं वहां अपनी निजी परिस्थितियों की जगज सामूहिक परिस्थितियों एवं समय की मांग के अनुसार युवावर्ग की क्या जिम्मेवारी है और वे उसके प्रति अपने युवत्व को कैसे प्रमाणित करते हैं -समाज का विकास उसी पर निर्भर करता है।
डाॅ. आचार्य ने समाज की व्याख्या करते हुए बताया कि समाज को यदि किसी समूह मात्र तक सीमित करते हैं तो वह समाज नहीं ‘समज’ है। समाज तो चेतनामय विचारवान व्यक्तियों का समूह होता है जो न्यायपूर्ण व्यवस्था के लिए निरंतर क्रियाशील रहता है और आज के संदर्भ में मैं समाज में परिवार, राज्य, राष्ट्र, राजनीति, अर्थव्यवस्था आदि यहां तक कि जीने की मूलभूत आवश्यकता मुहैया करवाने वाली हर व्यवस्था को शामिल करता हूं।
डाॅ.आचार्य ने बहुत चिंता के साथ कहा कि आज के समाज को मनुष्यता की कसौटी पर आंके तो हम सब एक अन्यायपूर्ण समाज में रह रहे हैं। यह अन्याय हमारे घर-परिवार में स्त्री-पुरूष, बेटे-बेटी के साथ भेदपूर्ण व्यवहार से शुरू होकर राज्य एवं राष्ट्रीय स्तर पर हर व्यवस्था में अन्याय ही दृष्टिगत होता है और अन्याय भी पूर्ण रूप से हिंसा का ही एक रूप होता है। आज की अर्थव्यस्था अहिंसक अर्थव्यवस्था बनने से बचती है। गांधीजी ने तो राज्य को हिंसा का व्यवस्थित एवं संगठित रूप कहा है। मेरी दृष्टि में इन सबके लिए हमारी विश्वास प्रणाली – बिलीव सिस्टम ही पूर्णतः दोषी है। उन्होंने विश्व में हथियार-समृद्धि एवं सोशल कैपीटल की बढ़ती होड़ के संबंध में कहा कि हम प्रति व्यक्ति आय और जीडीपी बढ़ाने के खेल में अर्थव्यवस्था को बहुत-सी अनुपयोगी वस्तुओं में व्यर्थ करते जा रहे हैं। जिसे शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी आवश्यकताआंे पर खर्च ही नहीं किया जाता। हिंसा को हिंसा से नहीं सौहार्द से ही समाप्त किया जा सकता है।
उन्होंने पर्यावरणिक ह्रास के संदर्भ में कहा कि देश में दिखावटी विकास का लाभ तो कोई और लेता है और इसकी कीमत किसी और को चुकानी पड़ती है।
उन्होंने विभिन्न समाजसुधारकों की ‘‘ सूई के छेद में से ऊंट का निकलना संभव है, लेकिन किसी धनवान का स्वर्ग में जाना संभव नहीं है ’’ और ‘‘ आॅल प्रोपर्टी इज थैप्ट ’’ जैसी उक्तियों के माध्यम से उन्होंने कहा कि हमारी मान्यता बन गई है कि ताकत तो राज्य में है। इस दृष्टि से समाज एवं राज्य के संचालकों में घटती सेवा भावना का खमियाजा भावी पीढ़ी को भुगतना पड़ेगा।
उक्त संदर्भ में उन्होंने युवाओं को संबोधित करते हुए कहा कि युवा वह है जो अपने निर्णय स्वयं लेता है। आप जहां भी अन्याय देखें उसका विरोध करें। असल में तो अन्याय का विरोध करने के लिए तैयार होने वाला ही युवा है – चाहे उसकी उम्र कितनी भी हो। युवा होना उग्र होना नहीं है। हमें अपनी परिस्थितियों को समझकर अन्यायमुक्ति के लिए धैयपूर्ण प्रयास करना चाहिए। इसके लिए सम्मानपूर्वक असहमति बेहतर विकल्प हो सकता है।


डाॅ. आचार्य ने अपने वक्तव्य का समापन उन्होंने प्रख्यात विचारक थोरो की उक्ति से किया कि ‘‘ आप मनुष्य पहले हैं या कुछ और। यदि मनुष्य पहले हैं तो मनुष्य धर्म से बढ़कर कोई कार्य नहीं हो सकता।’’।
संवाद के अंत में आयोजित खुला प्रश्न सत्र में बहुत-से युवाओं ने कुछ  मुख्य प्रश्न इस प्रकार से रखे –
जब रामायण एवं महाभारत में विशाल युद्ध हुए तब भी गांधीजी महाभारत, गीता एवं रामायण जैसी पुस्तकों से क्यों प्रभावित हुए?
हम अपने परिवार वालों के अन्याय का विरोध किस तरह से करें?
यदि अन्याय का विरोध करने से हमें जान-माल का नुकसान हो रहा हो तो हम क्या करें?
समाज में फैले इतने बड़े अन्याय को हम कैसे रोक सकते हैं?
इस प्रकार के बहुत-से प्रश्नों का उत्तर देते हुए डाॅ. आचार्य ने कहा कि प्रश्न कोई भी हो सबसे पहले हमें यह सोचना चाहिए कि हम स्वयं उस प्रश्न के उत्तर के बारे में क्या कितना सकारात्मक सोचते हंै। गांधीजी गीता, रामायण अथवा महाभारत जैसी पुस्तकों में उल्लेखित युद्ध-हिंसा से नहीं अपितु उनमें उल्लेखित त्याग एवं समाजहित की भावनाओं से प्रभावित थे। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि सत्य हमेशा कानून से बड़ा होता है। जहां तक सामाजिक अन्याय का विरोध करने की बात है वहां हमें उग्रता की जगह सम्मानपूर्वक असहमति का व्यवहार अपनाना चाहिए। फिर भी यदि हमें किसी प्रकार का नुकसान उठाना पड़ता है तो अन्यायपूर्ण व्यवस्था में हम नुकसान ही तो उठा रहे होते हैं।
प्रारंभ में उरमूल सीमांत परिवार की ओर से सचिव सुनील लहरी ने मुख्यवक्ता डाॅ.नंदकिशोर आचार्य एवं मुख्य अतिथि वरिष्ठ इंजीनियर अशोक खन्ना का शाॅल ओढ़ाकर सम्मान किया।
मुख्यअतिथि अशोक खन्ना ने कहा कि कोविड-19 के विकट और लंबे दौर के पश्चात् डेजर्ट रिसोर्ट सेन्टर और उरमूल सीमांत बज्जू द्वारा युवाओं के लिए इस प्रकार के रचनात्मक एवं विचारवान संवाद आहूत करना सहभागी युवाओं के लिए बहुत सार्थक मंच सिद्ध हुआ और डाॅ. आचार्य के नेतृत्व में उन्हें अपनी जिज्ञासाओं को अभिव्यक्त करने एवं अपनी विचारदृष्टि को परिपक्व करने का प्रभावी मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
उरमूल सीमांत की अध्यक्षा सुशीला ओझा ने  सामाजिक विकास में युवाओं को अपनी सकारात्मक भूमिका निर्वाह करने का संदेश दिया।
इस अवसर पर जन शिक्षण संस्थान, बीकानेर के निदेशक ओम प्रकाश सुथार ने आगंतुकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए  कहा कि अपने काम में कुशल होना सबसे बड़ा योग है। इसलिए बेरोजगारी के विकट दौर में युवा हाथ के हुनर से आत्मनिर्भर बनकर सामाजिक विकास की राह में प्रभावी भूमिका निभा सकता है।