राजनीति में रहे अहिंसा नीति – आचार्य महाश्रमण : सत्य के मार्ग पर चलकर आपके मन्त्र का अनुसरण करूंगा :- बेनीवाल

धर्म सभा में भाग लेकर पूर्व मंत्री बेनीवाल ने आचार्य महाश्रमण जी से लिया आशीर्वाद 

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर-लूणकरनसर। रिपोर्ट भैराराम तर्ड।
दया, करुणा व अनुकम्पा ऐसे तत्व हैं जो आदमी की चेतना को अच्छा बनाते है। अहिंसा की साधना के लिए दया का भाव बड़ा महत्वपूर्ण तत्व है। व्यक्ति के मन में यह भाव रहना चाहिए कि मेरे कारण किसी की हिंसा न हो, किसी को भी कष्ट न हो। जिसमें दया का भाव होता है वह किसी को कष्ट नहीं देता। साधुओं को तो दयामूर्ति कहा गया है वे अहिंसा के पुजारी होते है। मन, वचन और काया से भी किसी के प्रति हिंसा न हो तो दया का भाव साकार हो सकता है। उपरोक्त उद्गार अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी ने मंगलवार को लूणकरणसर में उपस्थित धर्मसभा में प्रदान किये। मुख्यमुनि महावीर कुमार जी, साध्वीप्रमुखा विश्रुतविभा जी, साध्वीवर्या संबुद्धयशा जी ने भी सारगर्भित वक्तव्य दिया।

इस अवसर पर स्वागत के क्रम में पूर्व मन्त्री वीरेन्द्र बेनीवाल ने अपने विचार रखते हुए कहा कि दो दिन पहले कालू मे मुनीवर आप से आशीर्वाद प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ आपने कहा कि सत्य के मार्ग पर चलिए यह मार्ग आज के समय मे बहुत कठिन है लेकिन इस मार्ग पर चलते रहिए । आपके आर्शीवाद स्वरूप मिले इस मन्त्र पर चलने की मैं पूर्णतः कोशिश करूंगा । ग्राम पंचायत की ओर से पूर्व प्रधान गोविंदराम गोदारा एवं उपसरपंच गणेशराम सौलंकी ने आचार्यश्री को अभिनंदन पत्र भेंट किया।

कल सोमवार सायं आचार्य श्री का यहां पदार्पण हुआ था। शांतिदूत के आगमन से पूरे नगर में आध्यात्मिक उल्लास छाया हुआ है। तेरापंथ के 11 वें अनुशास्ता बनने के पश्चात आचार्य श्री महाश्रमण का यह दूसरी बार लूणकरणसर में आगमन हुआ है जिससे जैन श्रद्धालुओं के साथ-साथ अन्य समुदायों में भी आचार्य श्री के आगमन को लेकर हर्ष का माहौल है। बोथरा भवन के प्रांगण में प्रेरणा देते हुए आचार्य श्री महाश्रमण ने आगे कहा की सत्य बोलना अच्छा है, पर जो सत्य दूसरे की हिंसा, कष्ट का कारण बने वहां चुप रहना ही श्रेयस्कर होता है। दया एक ऐसा गुण है जो अहिंसा को नए प्राण प्रदान करती है | भारत देश में लोकतंत्र है। लोकतंत्र में हर व्यक्ति को हर अधिकार प्राप्त है, स्वतंत्रता है, धर्म निष्पेक्षता है। किन्तु स्वतंत्रता में स्वच्छन्दता नहीं होनी चाहिए। हर जगह एक सीमा में अनुशासन का अंकुश रहना चाहिए। आज राष्ट्रनीति हो या राजनीति, न्यायनीति हो सभी में अहिंसा नीति का समावेश होना जरूरी है।

speedo

लूणकरणसर आगमन के संदर्भ में आचार्यश्री ने कहा- यहां लूणकरणसर में आना हुआ। आचार्य श्री महाप्रज्ञा जी के साथ भी यहां आना हुआ था। यहां वयोवृद्ध साध्वी पानकुमारी जी (द्वितीय) से भी मिलना हो गया। वे जीवन के दसवें दशक में है। खूब स्वाध्याय करती रहे और चित्तसमाधि में रहे। जनता में भी आध्यात्मिक गतिविधियां संचालित होती रहे, मंगलकामना।

तत्पश्चात कार्यक्रम में साध्वी श्री मंगलयशा जी ने गुरुचरणों में अपने भाव रखे एवं साध्वी वृन्द ने गीत का संगान किया। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष संतोकचन्द भूरा, आचार्य महाश्रमण प्रवास व्यवस्था समिति अध्यक्ष हंसराज बरडिया, तेरापंथ युवक परिषद अध्यक्ष नरेंद्र नाहटा, तेरापंथ महिला मंडल अध्यक्ष श्रीमती चंद्रादेवी भूरा, श्रीकांत डागा, योगेंद्र बाफना, मोनिका नौलखा, हंसराज बोथरा, प्रदीप बोथरा, नमिषा बोथरा, प्रेम प्रकाश बैद, विजेंद्र बैद श्रीमती नीतू बैद, श्रीमती अरुणा जैन आदि ने भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मंडल, कन्या मंडल, बोथरा परिवार एवं अनूप कुमार परिवार ने पृथक-पृथक रूप में गीतों का संगान किया। कन्या मंडल ने आचार्यश्री से संकल्पों को स्वीकार किया। ज्ञानशाला के बच्चों ने अभिवंदना में प्रस्तुति दी।