कळपै है मायड़ भासा राजस्थानी : अबै तो समझौ चेतौ बापू री भोम जाया थे राज रा पाटवी, भाषा पर केन्द्रित विशेष काव्य धारा सम्पन्न हुई

विनय एक्सप्रेस समाचार, बीकानेर. प्रज्ञालय संस्थान एवं राजस्थानी युवा लेखक संघ द्वारा मातृभाषा राजस्थानी को समर्पित दो दिवसीय समारोह ‘आपणी भाषा-आपणी ओळखाण’ के तहत ‘भाषा’ विषय पर केन्द्रित देर रात तक चली विशेष काव्य धारा का आयोजन किया गया। जिसमें मातृभाषा भाषा को केन्द्र में रखकर भाषा मान्यता एवं भाषा के विभिन्न पहलूओं को रेखांकित करते हुए एक से एक उम्दा रचनाओं का वाचन सृजन सदन में हुआ।

समारोह की अध्यक्षता करते हुए राजस्थानी मान्यता आंदोलन के प्रवर्तक एवं वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि वैसे तो मातृभाषा को लेकर सतत् आयोजन संस्था करती रही है।

रंगा ने इस अवसर पर काव्य धारा में अपनी काव्य रचना ‘मायड़ भासा बनाव पाटवी पेश की- कळपै है मायड़ भासा राजस्थानी/अबै तो समझौ/चेतौ बापू रा वंशज/अर बापू री भोम जाया थे/राज रा पाटवी के माध्यम से राजस्थानी भासा की मान्यता पीड को साझा किया।

इसी क्रम में समारोह के मुख्य अतिथि कवि एवं वरिष्ठ शिक्षाविद् संजय सांखला ने मातृभाषा को समर्पित अपनी कविता-हमे गर्व है हमारी राजस्थानी पर/राजस्थानी से बना है राजस्थान/हम मृत्यु तक मातृभाषा ही बोलेंगे पेश कर मातृभाषा कि आन बान शान को रेखांकित किया।

समारोह के विशिष्ठ अतिथि वरिष्ठ कवि कथाकार प्रमोद शर्मा ने राजस्थानी मातृभाषा को समर्पित ताजा रचना ऐ सगळा भोळा है/जका आपसरी मांय विस्वास करै पेश कर मातृभाषा रे प्रति हुवणवाळा बेवजह हमला और उनमें वैश्विक दौर में फैल रहे विकारों को उकेरा।

वरिष्ठ शायर वली मोहम्मद गौरी ने अपनी ताजा गजल खुब पढूला/बाबू बणूला/या म्हैं बणूलां अफसर रे. पेश कर भाषा के माध्यम से नई पीढी के सपनों को रेखांकित किया। वरिष्ठ शायर इरशाद अज़ीज़ ने एक ताजा नज्म पेश कर -मेरे पास भाषा है/रचता रहूंगा कविताएं, गजल, गीत बचा लूंगा पेश कर भाषा के महत्व के साथ-साथ एक रचनाकार के दायित्व निवर्हन को उकेरा।

वरिष्ठ शायर कवि कासिम बीकानेरी ने अपनी ताजा गजल-भाषा ही शान है/भाषा ही मान है हम सबका अभिमान है पेश कर भाषा के वैभव को रेखंकित करते हुए भाषा मान्यता को परवान चढाई। वहीं वरिष्ठ युवा शायर मोईनुद्दीन मोईन ने अपनी ताजा गजल के उम्दा शेर पेश कर मातृभाषा के प्रति अपने समर्पित भाव को उकेरा।

युवा कवि विप्लव व्यास ने अपनी सस्वर प्रस्तुति देते हुए धरती धोरा री मै गावां/मांगा मानता मांगा सुनाकर राजस्थानी भाषा की मान्यता के वाजब हक को स्वर दिए। इसी कडी में वरिष्ठ कवि जुगल किशोर पुरोहित ने राजस्थानी भाषा को समर्पित मधुर कंठ से गीत की शानदार प्रस्तुति देकर भाषा हमारी धरोहर है को रेखांकित किया।

व्यंग्य के कवि बाबूलाल छंगाणी ने व्यंग्य की तीखे स्वर तेवर के साथ राजस्थानी को मान्यता नहीं देना दुख पहलु बताया साथ ही मातृभाषा को नमन किया। युवा कवि गिरिराज पारीक ने मातृभाषा राजस्थानी को केन्द्र में रखकर भाषा नहीं तो पहचान नहीं पेश कर भाषा के महत्व को सबके सामने रखा। युवा कवि गंगा विश्न बिश्नोई ने अपनी ताजा राजस्थानी कविता के माध्यम से संवैधानिक एवं राजभाषा के हक का पुरजोर शब्दो ंमें समर्थन किया।

युवा कवि आयुष अग्रवाल ने अपनी नई रचना- आ भाषा पुरखा री/खेजडी रै रूंखा री पेशकर भाषा के साथ-साथ राजस्थानी की मरू संस्कृति को भी उकेरते हुए अपनी बात रखी।

भाषा को केन्द्र में रखकर इस विशेष काव्य धारा में कवि-शायर कैलाश टॉक ने राजस्थानी मातृभाषा को समर्पित ताजा रचनाओं की प्रस्तुति देते हुए भाषा के हर पक्ष को रखा।

प्रारंभ में सभी का स्वागत वरिष्ठ शिक्षाविद् राजेश रंगा ने करते हुए कहा कि सस्था का सौभाग्य है कि मातृभाषा राजस्थानी के लिए गत ढाई दशकों की समृद्ध परंपरा में विश्व मातृभाषा दिवस पर दो दिवसीय समारोह रखा गया है।

काव्य धारा में भवानी सिंह, अशोक शर्मा, कार्तिक मोदी, तोलाराम सारण, अख्तर, सुनील व्यास, हरिनारायण आचार्य, नवनीत व्यास, आशिष रंगा, अविनाश व्यास, श्रीकिशन, हनुमान छिंपा, किशोर जोशी, सीमा पालीवाल, प्रीति व्यास सहित अनेक राजस्थानी मातृभाषा के समर्थकों ने काव्य धारा में गरिमामय साक्षी दी।

कार्यक्रम का सफल संचालन वरिष्ठ शायर कासिम बीकानेरी ने किया सभी का आभार संस्थान के युवा रचनाकार आशिष रगा ने ज्ञापित किया।