इतिहास के पन्नों पर नजर: मानसिंह प्रथम की भूमि पर बना ताजमहल, पढ़ें पूरी खबर

आगरा का मशहूर ताजमहल आमेर महाराजा मानसिंह प्रथम की आगरा स्थित मान हवेली पर बना है।

विनय एक्सप्रेस समाचार, जयपुर| आगरा का मशहूर ताजमहल आमेर महाराजा मानसिंह प्रथम की आगरा स्थित मान हवेली पर बना है। ताजमहल को बनाने वाले शिल्पकार, कारीगर,मजदूर और मकराना से संगमरमर भेजने की व्यवस्था भी मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम ने की थी। बेगम मुमताज महल उर्फ अरजूमंद बानो बेगम का 6 जून 1631 को निधन होने के बाद बादशाह ने बेगम की याद में ताजमहल का निर्माण करने की योजना बनाई थी। मानसिंह प्रथम की यमुना किनारे बनी मान हवेली उनके वंशज मिर्जा राजा जयसिंह प्रथम के अधिकार में थी।

शिल्पकारों ने इस जगह को ताजमहल के लिए उपयुक्त स्थान माना। इस जगह पर यमुना नदी के मुड़ने पर ताज महल को पानी का धक्का भी कम लगता है। शाहजहां के समकालीन दो इतिहासकारों अब्दुल हमीद लाहौरी और मुहम्मद सालिह कम्बो की ताजमहल निर्माण से संबंधित कृतियों का डॉ. रामनाथ आदि इतिहास के प्रोफेसरों ने अपने निष्कर्ष में लिखा है कि यह जमीन मूल रूप से आमेर के राजा मानसिंह की थी। इतिहासकार लिखते हैं कि ताजमहल मूल रूप से एक राजपूत महल या मंदिर था और शाहजहां ने इसे मकबरे में परिणत कर लिया।

22 वर्ष लगे और 20,000 मजदूर जुटे
पीटर मंडी अंग्रेज यात्री 1631-32 में आगरा में रहा। उसने लिखा कि शाहजहां अपनी मृतक बेगम के ताजमहल बनवा रहा है। बेगम की बुरहानपुर में मौत हुई थी। इमारत में सोना और चांदी साधारण धातु की तरह लगाया जा रहा है। साधारण पत्थरों के स्थान पर संगमरमर का उपयोग हो रहा है। फ्रांसीसी जौहरी टेरवनियर सन 1640-41 और अंत में 1665 में आया था और उसने लिखा कि ताजमहल बनने में 22 वर्ष लगे 20000 आदमियों ने काम किया।

पांच शाही फरमान हुए थे जारी
ताजमहल को लेकर शाहजहां ने जय सिंह को पांच फरमान जारी किए। तीन फरमान बीकानेर के अभिलेखागार में और दो फरमान जयपुर महाराजा के पास है। 21 जनवरी 1632 के फ़रमान में जय सिंह को लिखा गया कि संगमरमर को आगरा पहुंचाने के लिए जितनी भी गाड़ियां मिलें भाड़े पर ले ली जाए और उन्हें तुरंत मकराना भेज दिया जाए। अल्लाहदाद को संगमरमर पहुंचाने की व्यवस्था करने भेज दिया है। 9 सितंबर 1632 के दूसरे फरमान में मलूक शाह को मकराना की नई खानों से संगमरमर लाने के लिए आमेर भेजा जाना लिखा गया।

21 जून 1637 को तीसरे फरमान में कहा गया कि संगतराशों को आमेर और राजनगर में नहीं रोका जाए। इससे मकराना में संगमरमर निकालने में खनिकों की कमी हो जाती है। जितने भी कारीगर मिलें उन्हें मकराना के मुसद्दी के पास भेज दिया जाए। 18 दिसंबर 1633 के चौथे व पांचवें फरमान में चार मकानों का ब्यौरा है, जो मिर्जा राजा जयसिंह को ताजमहल के लिए दी गई जमीन के बदले दिए गए थे। इनमें राजा भगवानदास की हवेली, माधव सिंह की हवेली, रूप जी की हवेली, स्वरूप सिंह के पुत्र चांद सिंह की हवेली शामिल है।

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